एयर इंडिया हादसा: जब शवों की अदला-बदली ने फिर से दर्द दिया, परिवारों का गुस्सा फूटा
सोचिए, आपको अपने किसी अपने का शव मिले और सालों बाद पता चले कि वह आपका अपना था ही नहीं? यही दर्द झेल रहे हैं 1985 के एयर इंडिया प्लेन क्रैश के कुछ ब्रिटिश परिवार। उनका दावा है कि उन्हें जो अवशेष दिए गए, वो गलत थे। सच कहूँ तो, यह खबर सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं – 329 लोगों की जान लेने वाली वो त्रासदी फिर से सुर्खियों में है। भारत सरकार ने मामले को गंभीरता से लेते हुए यूके के साथ मिलकर जांच का वादा किया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या 38 साल बाद भी इन परिवारों को न्याय मिल पाएगा?
कनिष्का का दर्द: एक ऐसा हादसा जिसे भुलाया नहीं जा सका
23 जून 1985 की बात है। एयर इंडिया का फ्लाइट 182 (जिसे ‘कनिष्का’ कहते थे) आयरिश आतंकवादियों के निशाने पर आ गया। कनाडा से भारत आ रहा यह विमान अटलांटिक महासागर में गिर गया। 329 लोगों की एक साथ मौत – यह आंकड़ा आज भी दिल दहला देता है। विडंबना देखिए, उस समय DNA टेस्टिंग जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी। समुद्र से मिले अवशेषों की हालत तो और भी खराब। ऐसे में शायद गलतियाँ हो गईं। लेकिन क्या यह गलती इतनी बड़ी हो सकती है?
अब क्या? नई जांच की मांग और सरकारी प्रतिक्रिया
भारत सरकार ने मामले को ‘हाई प्रायोरिटी’ पर लिया है। विदेश मंत्रालय का कहना है कि वे यूके अधिकारियों के साथ मिलकर पूरा केस दोबारा खंगालेंगे। हालाँकि, अभी तक आधिकारिक तौर पर शवों की अदला-बदली की पुष्टि नहीं हुई है। पर एक परिजन का दर्द सुनिए: “तीस साल से मैं किसी और की कब्र पर फूल चढ़ा रहा था।” सच में, ये शब्द दिल को झकझोर देते हैं।
पीड़ित परिवार अब नए सिरे से DNA टेस्टिंग चाहते हैं। उनका कहना है कि चाहे कितना भी समय बीत जाए, सच सामने आना चाहिए। एक विधवा की बात तो और भी मार्मिक है: “मैंने जिसे अपना पति समझकर दफनाया, वो शायद कोई और था।” ऐसे में सवाल उठता है – क्या हमारी सिस्टम्स इतनी कमजोर हैं?
विशेषज्ञ क्या कहते हैं? और क्यों यह केस इतना अहम है?
एविएशन एक्सपर्ट डॉ. रवि शर्मा का कहना है कि “1980s में टेक्नोलॉजी लिमिटेड थी, पर प्रोटोकॉल में कोताही नहीं होनी चाहिए थी।” सच तो यह है कि यह मामला सिर्फ एक एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट से कहीं बड़ा है। यह हमारे disaster management systems पर सवाल खड़ा करता है।
परिवारों का गुस्सा समझा जा सकता है। कुछ तो यहाँ तक कहते हैं कि सरकारों ने जानबूझकर मामले को दबाया। एक बेटे का सवाल: “क्या मेरे पिता की असली कब्र मुझे कभी पता चल पाएगी?” ऐसे सवालों के जवाब कौन देगा?
आगे का रास्ता: क्या मिलेगा इंसाफ?
अब भारत-यूके की संयुक्त टीम नई जांच करेगी। कनाडा भी शामिल हो सकता है, क्योंकि ज्यादातर पीड़ित वहाँ के थे। संभावना है कि पुराने रिकॉर्ड्स चेक किए जाएँगे और नए DNA टेस्ट होंगे। पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह प्रक्रिया इन परिवारों के दर्द को कम कर पाएगी?
इस पूरे मामले ने एक बात तो साफ कर दी – disaster management के हमारे तरीकों में सुधार की जरूरत है। वैसे तो अब systems बेहतर हो गए हैं, लेकिन यह केस हमें याद दिलाता है कि मानवीय भूलों की कीमत कितनी भारी हो सकती है।
अंत में, सिर्फ एक ही सवाल मायने रखता है: क्या इन परिवारों को अंतत: वह शांति मिल पाएगी जिसकी वे तीन दशक से प्रतीक्षा कर रहे हैं? समय ही बताएगा।
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एयर इंडिया हादसे में शवों की अदला-बदली? सच में, यह सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जिन परिवारों ने अपनों को खोया, उनके दर्द की कल्पना भी नहीं की जा सकती… और फिर इस तरह की लापरवाही? असल में, सरकार के बयान से ज्यादा जरूरी था संवेदनशीलता दिखाना।
तो अब सवाल यह उठता है – क्या हम सच में ऐसी त्रासदियों में इंसानियत भूल जाते हैं? पीड़ित परिवारों का गुस्सा तो बिल्कुल वाजिब है। मेरा मतलब, सोचिए – आप अपने किसी अपने का शोक मना रहे हों, और पता चले कि वह शव तो किसी और का है? एकदम दिल दहला देने वाली बात।
हालांकि, अब सरकार को क्या करना चाहिए? देखा जाए तो दो चीजें सबसे जरूरी हैं – पहला, तुरंत और पारदर्शी कार्रवाई। दूसरा, इन परिवारों से सीधा संवाद। क्योंकि विश्वास टूटने के बाद, वापसी आसान नहीं होती।
और हां, एक बात और। ऐसे मामलों में ‘हम गलती स्वीकार करते हैं’ कहने से काम नहीं चलेगा। जिम्मेदारी लेनी होगी। वरना… अफसोस, ऐसी घटनाएं बार-बार होती रहेंगी।
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com