आइजोल से म्यांमार तक! 70 साल बाद आखिरकार सुनाई दी वो मीठी सीटी, जानिए क्या है पूरा माजरा
अरे भई, मिजोरम की राजधानी आइजोल ने तो सचमुच इतिहास बना दिया! सोचो, 70 साल का इंतज़ार… उतना ही लंबा जितना हमारे दादा-परदादा की यादें। और आखिरकार, पहली बार यहाँ ट्रेन की वो मस्त सीटी गूंजी जिसने भारत के मुख्य रेल नेटवर्क से इस पूरे इलाके को जोड़ दिया। ये कोई साधारण रेलवे लाइन नहीं है दोस्तों, बल्कि पूर्वोत्तर के विकास की एक बड़ी छलांग है। और तो और, केंद्र सरकार ने तो अब म्यांमार बॉर्डर तक रेल लाइन बिछाने का ऐलान कर दिया है! सोचिए, इससे न सिर्फ लोगों की ज़िंदगी आसान होगी, बल्कि चीन के बढ़ते दखल को भी संतुलित करने में मदद मिलेगी। एक तीर से दो निशाने, है न?
पहाड़ों को चीरती हुई रेल: एक संघर्ष की कहानी
देखिए, मिजोरम का मुख्य रेल नेटवर्क से कटा होना कोई नई बात तो थी नहीं। 1947 से ही यहाँ के लोग रेल की मांग कर रहे थे। पर भई, इतने पहाड़, इतनी ऊँची-नीची ज़मीन… रेल बिछाना आसान थोड़े ही था! मानो कोई नटराज अपने डांस में लगा हो। हालांकि, 2014 में “हरित पूर्वोत्तर” पहल शुरू होने के बाद स्थिति बदलनी शुरू हुई। नौ साल की मेहनत… और आखिरकार 2023 में भुवनेश्वर-आइजोल रेल लिंक का पहला चरण पूरा हुआ। सच कहूँ तो, ये सिर्फ रेलवे लाइन नहीं, बल्कि लोगों के सपनों को पंख लगाने वाली परियोजना है।
अब ताज़ा खबर क्या है?
तो अब स्थिति ये है कि आइजोल रेलवे स्टेशन खुल चुका है और यहाँ से अब आप देश के किसी भी कोने में जा सकते हैं। मजे की बात ये कि सरकार यहीं नहीं रुकने वाली! म्यांमार बॉर्डर तक रेल लाइन बिछाने की योजना भी मंजूर हो चुकी है। अंदाज़ा लगाइए, 3000 करोड़ से ज़्यादा का निवेश! ये परियोजना न सिर्फ व्यापार के लिए, बल्कि सैन्य दृष्टि से भी कितनी अहम है, ये तो आप समझ ही रहे होंगे। और हाँ, मणिपुर और नागालैंड को भी जल्द ही इस नेटवर्क से जोड़ा जाएगा। पूरा पूर्वोत्तर एक सूत्र में बंधेगा – क्या बात है!
लोग क्या कह रहे हैं?
मिजोरम के मुख्यमंत्री तो इसे “राज्य के विकास में सुनहरा पल” बता रहे हैं। रेल मंत्रालय वालों का कहना है कि ये तो बस शुरुआत है। स्थानीय लोग? उनकी खुशी का ठिकाना नहीं! हालांकि कुछ लोगों को भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण को लेकर चिंता भी है – जो बिल्कुल वाजिब है। रक्षा विशेषज्ञों की राय? वो मानते हैं कि ये चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने में मील का पत्थर साबित होगा, खासकर म्यांमार जैसे रणनीतिक देश से कनेक्टिविटी बढ़ने से।
आगे की राह
सरकार का टारगेट है 2025 तक म्यांमार बॉर्डर तक रेलवे लाइन का काम शुरू करना। सोचिए, इससे कितने रोजगार पैदा होंगे! पर्यटन को कितना बढ़ावा मिलेगा! ये प्रोजेक्ट भारत-म्यांमार-थाईलैंड हाईवे के साथ मिलकर तो दक्षिण-पूर्व एशिया में हमारी पकड़ और मजबूत करेगी। हालांकि, चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं – सुरक्षा से लेकर भू-राजनीति तक। पर एक बात तो तय है – आइजोल में गूंजी ये ट्रेन सीटी सिर्फ एक ट्रेन की आवाज़ नहीं, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर के नए भविष्य की घोषणा है। क्या पता, अगले कुछ सालों में हम म्यांमार तक ट्रेन से घूमने जा रहे हों! कैसा लगा आपको ये आइडिया?
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आइजोल से म्यांमार ट्रेन योजना – जानिए सबकुछ, सवाल-जवाब में!
अरे भाई, ये आइजोल-म्यांमार ट्रेन वाला मामला काफी चर्चे में है न? तो सोचा क्यों न आपके सभी सवालों के जवाब एक जगह मिल जाएं। पूरा पढ़िए, समझिए और फिर बताइएगा कि कैसा लगा!
1. आइजोल से म्यांमार ट्रेन का रूट क्या होगा? रास्ता कैसा होगा?
देखिए, ये ट्रेन आइजोल (मिजोरम) से शुरू होगी – जहां की हरियाली तो आप जानते ही होंगे। फिर ये म्यांमार के बॉर्डर वाले इलाकों तक जाएगी। सच कहूं तो, ये कोई साधारण रेल लाइन नहीं बल्कि इतिहास बनाने वाला प्रोजेक्ट है! भारत और म्यांमार को जोड़ने वाली ये पहली रेल लाइन होगी। बात ही कुछ और है न?
2. यार, ये प्रोजेक्ट कब तक पूरा होगा? इतना इंतज़ार क्यों?
असल में बात ये है कि अभी तो डिटेल्ड रिपोर्ट बन रही है। एक्सपर्ट्स की मानें तो 5-7 साल तो लग ही जाएंगे। पर सोचिए, इतना बड़ा प्रोजेक्ट है – पहाड़, जंगल, बॉर्डर… सबको पार करना है। जल्दबाजी में काम चलेगा तो गुणवत्ता से समझौता हो जाएगा न?
3. सबसे दिलचस्प सवाल – क्या हम भी इस ट्रेन में सफर कर पाएंगे या सिर्फ सामान की ढुलाई होगी?
अच्छा सवाल पूछा! शुरुआती प्लानिंग के हिसाब से तो ये मल्टी-पर्पज ट्रेन होगी। मतलब आप भी घूमने जा सकते हैं और व्यापारी अपना माल भी भेज सकते हैं। दोनों का फायदा। पर ये तो टाइम ही बताएगा कि आखिरकार क्या होता है। एक तरफ टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा, दूसरी तरफ ट्रेड भी बढ़ेगा। विन-विन सिचुएशन!
4. सबसे जरूरी – आखिर इस प्रोजेक्ट का मकसद क्या है? सरकार को क्या फायदा?
ईमानदारी से कहूं तो ये सिर्फ एक ट्रेन प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि बड़े स्ट्रैटेजिक प्लान का हिस्सा है। तीन मुख्य बातें समझ लीजिए:
– नॉर्थ-ईस्ट को विकास की रफ्तार मिलेगी (जिसकी उसे सच में जरूरत है)
– भारत और म्यांमार के बीच कनेक्टिविटी बढ़ेगी (जोकि जियोपॉलिटिक्स में बहुत मायने रखती है)
– हमारी एक्ट ईस्ट पॉलिसी को मजबूती मिलेगी
सीधे शब्दों में कहें तो, ये प्रोजेक्ट सिर्फ रेलवे लाइन नहीं बल्कि भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण टूल है। है न दिलचस्प बात?
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com