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“अकबर का शासन: क्रूरता और सहिष्णुता का अनोखा मिश्रण, एनसीईआरटी की किताब में खुलासा!”

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अकबर का शासन: क्रूरता और सहिष्णुता का वो दिलचस्प मेल, जिसे NCERT अब उजागर कर रहा है!

सुनकर थोड़ा अजीब लगता है न? हम सबने तो किताबों में पढ़ा है कि अकबर ‘महान’ थे, सबको साथ लेकर चलने वाले… लेकिन अब NCERT की नई किताबें कुछ और ही कहानी बयां कर रही हैं। 8वीं क्लास की सोशल साइंस की किताब में हुए बदलावों ने तो जैसे इतिहास की पूरी समझ ही बदल दी है। असल में, अब अकबर के शासन को ‘क्रूरता और सहिष्णुता का मिश्रण’ बताया जा रहा है। ये वो बात है जो पहले कभी खुलकर नहीं कही गई।

देखिए, मामला ये है कि NCERT की किताबों में मुगल शासकों को लेकर हमेशा से एक तरफा नजरिया रहा है। खासकर अकबर को तो जैसे ‘सेक्युलरिज्म का मसीहा’ बना दिया गया था। लेकिन अब? अचानक ही उनकी नीतियों के काले पन्ने भी खुलने लगे हैं – हिंदू मंदिरों को तोड़ने की बात हो या फिर जजिया कर जैसे मुद्दे। सच कहूं तो, ये बदलाव थोड़ा झटके जैसा है। NCERT का कहना है कि ये ‘संतुलित दृष्टिकोण’ अपनाने की कोशिश है। पर सवाल ये उठता है कि क्या सच में?

अब जरा इन बदलावों पर गौर करें। किताब में अकबर के समय की धार्मिक नीतियों के विवादित पहलुओं को जोड़ा गया है। कुछ historians तो इसका स्वागत कर रहे हैं – उनका मानना है कि अब तक इतिहास को गुलाबी चश्मे से देखा जाता रहा। वहीं दूसरी तरफ, कुछ लोगों को लग रहा है कि ये सब किसी राजनीतिक एजेंडे के तहत हो रहा है। बातचीत गरमा गई है – शिक्षाविदों से लेकर राजनेताओं तक सबके अपने-अपने तर्क हैं।

मजे की बात ये है कि इस पर दोनों तरफ के लोगों के अपने-अपने पॉइंट्स हैं। एक तरफ वो लोग हैं जो कहते हैं कि अब छात्रों को असली इतिहास पढ़ने को मिलेगा, बिना किसी छंटाई के। वहीं विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार इतिहास को अपने हिसाब से मोड़ना चाहती है। और हां, कुछ activists तो अब और आगे जाकर दूसरे शासकों के बारे में भी ऐसी ही समीक्षा की मांग कर रहे हैं। सचमुच, ये बहस अब सिर्फ अकबर तक सीमित नहीं रही।

अब सवाल ये है कि आगे क्या? इसके बाद तो और किताबों में भी बदलाव की संभावना है। इतिहास हमेशा से ही एक नाजुक मुद्दा रहा है – जैसे कोई पुलाव हो जिसमें हर कोई अपने पसंद की चीजें डालना चाहता है। Teachers और छात्रों के लिए ये नई चुनौती है, पर शायद यही वक्त है जब हम इतिहास को नए नजरिए से देखना सीखें।

आखिर में, एक बात तो साफ है – NCERT के इस कदम ने सिर्फ अकबर के शासन पर ही नहीं, बल्कि पूरे भारतीय इतिहास को देखने के तरीके पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना ये है कि ये बहस कहां तक जाती है… और क्या हमारी अगली पीढ़ी को एक अलग ही इतिहास पढ़ाया जाएगा। दिलचस्प होगा, है न?

अकबर का राज… क्या कहें, एक ऐसा दौर जहाँ क्रूरता और सहिष्णुता का मेल देखने को मिलता है। NCERT की किताबें तो इस बारे में बताती ही हैं, लेकिन असल सवाल यह है – क्या हम इसे सिर्फ ‘अच्छा’ या ‘बुरा’ कहकर खारिज कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं।

देखिए, इतिहास कभी black and white नहीं होता। अकबर जैसे शासकों में विरोधाभास तो होगा ही – एक तरफ़ जहाँ उनकी नीतियाँ उदार थीं, वहीं कुछ फ़ैसले हैरान कर देने वाले थे। पर यही तो ख़ूबसूरती है न?

आज के दौर में जहाँ हर चीज़ को extreme में देखने की आदत हो गई है, अकबर की यह विरासत हमें एक सबक देती है – सत्ता, धर्म और संस्कृति के बारे में संतुलित नज़रिया रखने का। थोड़ा सोचिए, क्या आज के नेताओं को यहाँ से कुछ सीखना चाहिए? शायद हाँ… शायद नहीं… पर बात करने लायक़ तो है ही!

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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