वेद, उपनिषद और प्राकृतिक खेती: अमित शाह रिटायरमेंट के बाद क्या करना चाहते हैं?
देखिए, अमित शाह जी ने तो एक बार फिर सबको चौंका दिया है! अहमदाबाद में हुए एक कार्यक्रम में उन्होंने अपने रिटायरमेंट प्लान्स शेयर किए – और सच कहूं तो, ये कोई आम प्लान नहीं हैं। वेद-उपनिषद की गहराई में जाना चाहते हैं वो, और साथ ही प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को लेकर जो बातें कहीं, वो तो असल में किसानों के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकती हैं। मतलब साफ है – राजनीति के बाद का जीवन भी कितना प्रोडक्टिव हो सकता है, ये शाह साहब सबको दिखाना चाहते हैं।
पहले समझ लेते हैं कौन हैं अमित शाह?
अरे भई, ये तो वो ही हैं जिन्हें देखते ही BJP के विरोधियों की नींद उड़ जाती है! मजाक छोड़िए, सच ये है कि देश के गृह मंत्री और BJP के सबसे तेज-तर्रार नेताओं में से एक हैं शाह। लेकिन यहां दिलचस्प बात ये है कि इस कड़क प्रशासक की छवि के पीछे एक ऐसा व्यक्ति भी है जो भारतीय दर्शन और संस्कृति में गहरी दिलचस्पी रखता है। पहले भी कई बार उन्होंने हमारी प्राचीन ज्ञान परंपराओं की बात की है। और प्राकृतिक खेती? सरकार पहले से ही इस पर काम कर रही है, लेकिन शाह जी का इसे ‘विज्ञान-आधारित प्रयोग’ बताना काफी मायने रखता है।
तो क्या है प्लान असल में?
बात ये है कि शाह साहब ने साफ-साफ कहा – वेद और उपनिषदों को समझना उनका पर्सनल गोल है। और सुनिए, ये कोई औपचारिकता नहीं है। उन्होंने इसे हमारी विरासत से जुड़ने का तरीका बताया है। पर साथ ही, प्राकृतिक खेती पर जोर देकर उन्होंने तो बाजी ही मार ली! ‘भविष्य का मॉडल’ बताया उन्होंने इसे – और सच में, जब पर्यावरण और किसानों की आय दोनों का फायदा हो, तो भला क्यों नहीं? अब देखना ये है कि ये बातें सिर्फ भाषण तक सीमित रहेंगी या जमीन पर उतरेंगी। वैसे ट्विटर से लेकर संसद तक चर्चा तो शुरू हो ही चुकी है!
किसने क्या कहा इस पर?
राजनीति है तो रिएक्शन तो आएंगे ही न! कुछ लोग तारीफों के पुल बांध रहे हैं – ‘अरे वाह, संस्कृति से जुड़ाव’ वगैरह-वगैरह। वहीं विपक्ष वालों का कहना है कि ‘ये सब दिखावा है, असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश’। धार्मिक संगठन? उन्हें तो मानो दिवाली मनाने का बहाना मिल गया – खुशी से झूम उठे हैं। और किसान नेताओं ने सीधा सवाल खड़ा कर दिया – “बातें अच्छी हैं, पर सरकार हमें प्रैक्टिकल सपोर्ट कब देगी?” सच कहूं तो, हर कोई अपने-अपने तरीके से इस बयान को देख रहा है।
आगे क्या हो सकता है?
अब तो सबकी नजरें शाह जी पर टिकी हैं। एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि शायद प्राकृतिक खेती को लेकर कोई बड़ी योजना आने वाली है। हो सकता है नए एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स भी खुलें जो हमारी प्राचीन शिक्षा को प्रमोट करें। कुछ तो ये भी मान रहे हैं कि ये एक ट्रेंड की शुरुआत हो सकती है – जब बड़े नेता राजनीति के बाद सांस्कृतिक क्षेत्र में आएंगे। सोचिए, कितना इंटरेस्टिंग टर्न होगा!
अंत में बस इतना कि अमित शाह ने अपने व्यक्तित्व का एक नया पहलू दिखाया है। वेद-उपनिषद से लेकर खेतों तक – रेंज तो देखिए! अब बस ये देखना बाकी है कि ये सब कितना रियल हो पाता है। क्योंकि हम भारतीय तो जानते ही हैं – बातें करने और करने में बहुत फर्क होता है। लेकिन उम्मीद तो अच्छी ही रखनी चाहिए, है न?
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सुनकर थोड़ा अजीब लगता है न? एक सख्त राजनेता जो वेद पढ़ने और खेती करने की बात कर रहा है। लेकिन असल में, ये प्लान्स काफी दिलचस्प हैं। आइए समझते हैं…
1. अमित शाह को रिटायरमेंट के बाद वेद-उपनिषद पढ़ने का शौक क्यों?
सच कहूं तो ये कोई नई बात नहीं। शाह साहब कई सालों से अपनी spiritual journey के बारे में बात करते आए हैं। और भई, वेद-उपनिषद तो हमारी संस्कृति की जड़ें हैं न! शायद वो ये समझना चाहते हैं कि हमारे पूर्वज क्या सोचते थे। Personal growth की बात हो तो, ये तो सोने पर सुहागा है।
2. Natural Farming? ये कहां से आ गया?
अरे भई, आजकल तो हर कोई organic खाने का दीवाना है न! शाह साहब भी शायद इसी लहर में बह गए। पर असल में, प्राकृतिक खेती सिर्फ trend नहीं है – ये तो हमारे दादा-परदादा की विरासत है। Chemical-free, sustainable…समझदारी की बात है। और साथ ही, गांवों को मजबूत करने का तरीका भी।
3. क्या ये मतलब है कि वो राजनीति से संन्यास ले रहे हैं?
अभी तक तो ऐसा कुछ नहीं लगता! Official तौर पर तो कोई announcement हुई नहीं। हो सकता है ये सिर्फ future की प्लानिंग हो। वैसे भी, आदमी को retirement के बाद कुछ तो करना होता है न? राजनीति में तो वो अभी पूरी तरह active हैं।
4. वेद और खेती का क्या रिश्ता है भला?
देखिए, ये कोई नई बात नहीं। हमारे वेदों में तो पूरा एक कृषि सूक्त ही है! प्राचीन भारत में खेती-बाड़ी को लेकर कितना गहरा ज्ञान था। आज की Natural Farming के कई तरीके तो सीधे वहीं से आए हैं। शाह साहब शायद इसी पुराने ज्ञान और नई सोच को जोड़ना चाहते हैं। स्मार्ट तरीका है, है न?
एक बात तो तय है – ये प्लान्स साधारण नहीं हैं। पर कौन जाने, शायद यही वो legacy हो जिसे वो तलाश रहे हैं। आपको क्या लगता है?
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com