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“हरित क्रांति से युद्ध विजय तक: दलित परिवार के बाबूजी जगजीवन राम की प्रेरक जीवन गाथा”

हरित क्रांति से लेकर युद्ध तक: बाबू जगजीवन राम की वो कहानी जो आपको जाननी चाहिए

असल में, भारतीय इतिहास में कुछ नाम ऐसे होते हैं जो सिर्फ पन्नों पर नहीं, दिलों में छप जाते हैं। और बाबू जगजीवन राम उन्हीं में से एक थे। एक दलित परिवार से आकर देश की राजनीति के शिखर तक पहुँचना – ये कोई मामूली बात तो नहीं थी, है न? गाँधी जी के असहयोग आंदोलन से लेकर 1971 की जंग तक, इस शख्स ने वो मिसाल कायम की जो आज भी लाखों लोगों को हौसला देती है।

वो बचपन जो संघर्षों से भरा था

5 अप्रैल 1908। बिहार का एक छोटा सा गाँव चंदवा। कल्पना कीजिए, उस ज़माने में दलित परिवार में पैदा होना क्या मायने रखता था। स्कूल में पानी पीने तक के लिए अलग बर्तन! लेकिन जगजीवन राम ने इन सबको अपनी मेहनत से तोड़ दिया। BHU (बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी) तक का सफर उन दिनों कितना मुश्किल रहा होगा, सोचिए! और फिर अंबेडकर जी और गाँधी जी के विचारों ने उन्हें एक नई दिशा दी।

जब आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े

1930s का दशक। देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ। ऐसे में जगजीवन राम ने कांग्रेस जॉइन की और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। भारत छोड़ो आंदोलन? उसमें भी अग्रणी भूमिका। पर साथ ही, उनकी लड़ाई दो मोर्चों पर थी – एक तरफ अंग्रेज़ों के खिलाफ, दूसरी तरफ छुआछूत के खिलाफ। उनका मानना था – “सच्ची आज़ादी तभी आएगी जब दलित भी सिर उठाकर चल सकेंगे।” सच कहूँ तो, आज भी ये बात उतनी ही प्रासंगिक है।

मंत्री बनने से लेकर युद्ध जीतने तक

आज़ादी मिली तो जगजीवन राम ने नए भारत की नींव रखने में अहम भूमिका निभाई। देश के पहले श्रम मंत्री! पर असली कमाल तो तब हुआ जब वो कृषि मंत्री बने। हरित क्रांति? वो तो जैसे उनके हाथों ही पंख लग गई। किसानों की हालत सुधारने से लेकर अनाज के भंडार भरने तक – सब कुछ! और फिर 1971… जब पाकिस्तान के खिलाफ जंग हुई तो रक्षा मंत्री के तौर पर उनका नेतृत्व वाकई लाजवाब था। बांग्लादेश का जन्म होगा, ये तय करने में उनकी भूमिका को कौन भूल सकता है?

वो विरासत जो आज भी ज़िंदा है

पर्सनल लाइफ की बात करें तो जगजीवन राम हमेशा समाज सेवा में लगे रहे। “अखिल भारतीय रामायण मंच” बनाकर उन्होंने साबित किया कि संस्कृति सबको जोड़ती है। दलित समाज को मुख्यधारा में लाने की कोशिशें? वो तो उनकी ज़िंदगी का मकसद ही थी। भारत रत्न के लिए नामांकन तो बस एक औपचारिकता थी, असली सम्मान तो लोगों के दिलों में बसा हुआ है।

तो क्या सीख मिलती है?

सच पूछो तो, जगजीवन राम की ज़िंदगी हमें बताती है कि पृष्ठभूमि चाहे जो हो, इरादे मज़बूत हों तो मुकाम हासिल किया जा सकता है। आज के युवाओं के लिए तो वो एक लाइटहाउस की तरह हैं। समानता, न्याय और सशक्तिकरण का उनका सपना आज भी अधूरा है… पर उन्होंने रास्ता तो दिखा दिया!

कुछ सवाल जो अक्सर पूछे जाते हैं (FAQs)

  1. कैसे एक छोटे से गाँव का लड़का देश का रक्षा मंत्री बना?
  2. हरित क्रांति में उनका रोल कितना अहम था?
  3. 1971 की जंग में उनके फैसलों ने कैसे बदल दिया गेम?
  4. दलित समाज के लिए उन्होंने कौन से काम किए जो यादगार हैं?
  5. उन्हें मिले सम्मानों में सबसे खास क्या रहा?

दोस्तों, इस कहानी को पढ़कर कैसा लगा? जगजीवन राम साबित कर गए कि मुश्किलें चाहे जितनी भी हों, हौसला बड़ा हो तो सब कुछ मुमकिन है। और हाँ, अगर ये पोस्ट पसंद आई हो तो शेयर ज़रूर करें – क्योंकि ऐसी प्रेरणादायक कहानियाँ तो सबको पढ़नी चाहिए!

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1. कौन थे ये जगजीवन राम? और क्यों हैं इतने खास?

सच कहूं तो आज की पीढ़ी शायद ही जगजीवन राम जी को ठीक से जानती हो। ये कोई साधारण नेता नहीं थे – भारत के उप-प्रधानमंत्री रहे, दलित समाज का गौरव बने, और वो भी तब जब देश में जातिवाद सिर चढ़कर बोलता था। अब सवाल यह है कि क्या आप जानते हैं कि 1971 के युद्ध में हमारी जीत के पीछे इनका ही नेतृत्व था? या कि Green Revolution को सफल बनाने में इनका योगदान कितना बड़ा था? सच तो यह है कि हमने एक महान नेता को भुला दिया है।

2. हरित क्रांति? वो भी जगजीवन राम के बिना अधूरी थी!

1960s का दशक। भारत अनाज के लिए दूसरे देशों पर निर्भर। और फिर क्या हुआ? जगजीवन राम जी कृषि मंत्री बने और सब कुछ बदल गया। HYV seeds का इस्तेमाल, modern farming techniques – ये सब उन्हीं की देन है। पर क्या आप जानते हैं कि इन सुधारों के पीछे उनकी क्या सोच थी? असल में वो चाहते थे कि किसान, खासकर छोटे किसान, आत्मनिर्भर बनें। और देखा जाए तो यही तो Green Revolution का असली मकसद था।

3. 1971 की जंग: जब जगजीवन राम ने साबित कर दिया कि असली नेतृत्व क्या होता है

याद कीजिए 1971 का वो ऐतिहासिक समय। जगजीवन राम डिफेंस मिनिस्टर। पाकिस्तान से जंग। और फिर क्या? भारत की शानदार जीत! बांग्लादेश आजाद! पर क्या आपको पता है कि इस जीत के पीछे उनकी रणनीति कितनी अहम थी? उन्होंने न सिर्फ सेना का मनोबल बढ़ाया बल्कि युद्ध के दौरान कूटनीतिक फैसलों में भी अहम भूमिका निभाई। सच कहूं तो यह उनके करियर का सबसे golden chapter था।

4. दलित समाज के मसीहा: सिर्फ नारे नहीं, असली काम किया

आजकल तो हर कोई दलित हितैषी बनने का दावा करता है। लेकिन जगजीवन राम? उन्होंने पूरी life इसके लिए संघर्ष किया। Land reforms से लेकर education तक, government jobs में reservation से लेकर political representation तक – हर मोर्चे पर लड़ाई लड़ी। पर सबसे बड़ी बात? उन्होंने दलित समाज को सिर्फ वोट बैंक के तौर पर नहीं देखा, बल्कि उन्हें सच्ची ताकत दिलाने का काम किया। और यही तो असली सामाजिक न्याय है, है न?

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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