बांग्लादेश में इस्लामिक शासन की आहट? या सिर्फ़ राजनीति का एक नया दांव?
दोस्तों, बांग्लादेश की राजनीति में ये दिनों कुछ ज़्यादा ही हलचल है। अभी कुछ दिन पहले ही कुछ ऐसी ख़बरें आई हैं जो सच में चौंकाने वाली हैं। सुना है जमात-ए-इस्लामी ने BNP को खत्म करने और देश में इस्लामिक शासन लाने की पूरी प्लानिंग कर ली है। सच कहूँ तो ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। और तो और, जमात वालों ने तो खुलकर BNP पर बैन लगाने की धमकी तक दे डाली! राजनीति के जानकार कह रहे हैं कि अगर ये सच हुआ तो बांग्लादेश का लोकतंत्र हिल जाएगा।
पीछे की कहानी: राजनीति का वो पुराना खेल
असल में देखा जाए तो जमात-ए-इस्लामी का नाम हमेशा से विवादों में रहा है। कितनी बार इन पर हिंसा फैलाने के आरोप लग चुके हैं। और BNP? ये तो हसीना सरकार के सबसे बड़े विरोधी रहे हैं। पिछले कुछ सालों में हसीना ने जमात को काफी दबाया था, लेकिन लगता है अब ये लोग नए अंदाज़ में वापसी करने वाले हैं। क्या ये सच में मुमकिन है? या फिर सिर्फ़ डराने की कोशिश?
जमात की असली मंशा क्या है?
अंदरूनी सूत्रों की मानें तो जमात ने BNP को कमज़ोर करने की पूरी साजिश रच ली है। सिर्फ़ बैन की मांग ही नहीं, बल्कि विरोध प्रदर्शन की धमकी भी! और सबसे डरावनी बात ये कि उन्होंने कुछ बड़े धार्मिक नेताओं को भी अपने साथ कर लिया है। अब सोचिए, अगर ये सच हुआ तो क्या होगा? माहौल कितना गरम हो जाएगा!
कौन क्या बोला? सबके अपने-अपने तर्क
BNP वालों ने तो इसे सीधे-सीधे “राजनीतिक षड्यंत्र” बता दिया है। उनका कहना है जमात सिर्फ़ अशांति फैलाना चाहता है। वहीं सरकार की तरफ से भी साफ़ चेतावनी आई है – कोई भी गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। मानवाधिकार वालों की भी नींद उड़ गई है, उन्हें डर है कि कहीं हिंसा न भड़क जाए। सच में, स्थिति बड़ी नाज़ुक है।
आगे क्या? अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता
एक्सपर्ट्स की राय है कि अगर जमात और BNP का ये टकराव बढ़ा तो बांग्लादेश में बड़ी उथल-पुथल हो सकती है। एक तरफ तो सरकार जमात पर बैन लगा सकती है, लेकिन दूसरी तरफ इससे हिंसा और बढ़ सकती है। और तो और, ये मामला अब विदेशों में भी चर्चा का विषय बन गया है। क्योंकि अगर बांग्लादेश में कट्टरपंथ बढ़ा तो पूरे दक्षिण एशिया के लिए मुसीबत खड़ी हो जाएगी।
अभी तो ये पूरा मामला विकसित हो रहा है। लेकिन एक बड़ा सवाल ये है कि क्या बांग्लादेश वाकई इस्लामिक शासन की तरफ बढ़ रहा है? या फिर ये सब सिर्फ़ राजनीति का एक नया खेल है? सच्चाई शायद जल्द ही सामने आ जाए। फिलहाल तो सभी की निगाहें वहाँ की स्थिति पर टिकी हुई हैं।
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बांग्लादेश में हालात कुछ ऐसे बन रहे हैं कि लगता है जैसे किसी बड़े तूफ़ान की आहट हो। आपने देखा होगा, BNP और जमात-ए-इस्लामी जैसे गुट कैसे धीरे-धीरे अपनी जड़ें मज़बूत कर रहे हैं। सच कहूं तो, ये सिर्फ बांग्लादेश का मामला नहीं रहा – पूरे क्षेत्र की शांति दांव पर लगी है।
शेख हसीना के बाद क्या?
अभी तो शेख हसीना सत्ता में हैं, लेकिन असली सवाल तो ये है कि उनके बाद क्या होगा? राजनीतिक उथल-पुथल के बीच कट्टरपंथी ताकतों को मौका मिल सकता है। और ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं। सोचिए, अगर ये लोग सत्ता में आ गए तो?
एक तरफ़ तो लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की बातें होती हैं, दूसरी तरफ़… खैर, आप समझ ही रहे होंगे। इसलिए अब वक्त है सतर्क होने का। न सिर्फ बांग्लादेश के लिए, बल्कि हमारे जैसे पड़ोसी देशों के लिए भी।
मज़ाक नहीं, ये पूरा खेल… (बाकी आप खुद ही अंदाज़ा लगा सकते हैं)
बांग्लादेश में इस्लामिक शासन की आहट? – कुछ सवाल, कुछ जवाब
1. बांग्लादेश में इस्लामिक शासन की चर्चा क्यों हो रही है?
देखिए, बात यह है कि बांग्लादेश में पिछले कुछ महीनों से BNP और जमात-ए-इस्लामी जैसे ग्रुप्स काफी सक्रिय हो गए हैं। और सच कहूं तो, शेख हसीना के बाद क्या होगा – यह सवाल सबको परेशान कर रहा है। राजनीतिक हवाएं कुछ ऐसी चल रही हैं कि लोगों को इस्लामिक शासन की आशंका सताने लगी है। पर क्या यह सच में संभव है? चलिए समझते हैं…
2. BNP और जमात-ए-इस्लामी का क्या रोल है इस पूरे मामले में?
असल में, ये दोनों पार्टियां तो लंबे समय से इस्लामिक कानूनों की मांग करती आई हैं। है ना? उनका तर्क है कि हसीना सरकार जो सेक्युलर पॉलिसीज चला रही है, वो देश के मूल चरित्र के खिलाफ है। लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या जनता उनके इस एजेंडे को सपोर्ट करेगी? क्योंकि बांग्लादेश की युवा पीढ़ी तो काफी अलग सोच रखती है।
3. क्या शेख हसीना के बाद बांग्लादेश में इस्लामिक शासन आ सकता है?
सीधा जवाब? हां, संभावना तो है। अगर BNP-जमात गठबंधन सत्ता में आ गया तो। पर यहां एक ‘लेकिन’ जरूर है। सेक्युलर ताकतें अभी भी मजबूत हैं, और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया भी अहम होगी। मतलब, ऐसा नहीं कि रातों-रात सब कुछ बदल जाएगा। प्रोसेस धीमा होगा। शायद।
4. भारत के लिए इस स्थिति के क्या मायने हैं?
अरे भाई, यह तो हमारे लिए सिरदर्द बन सकता है। सोचिए – सीमा पार आतंकवाद बढ़ेगा, अवैध घुसपैठ की समस्या और गंभीर होगी। और सच कहूं तो, हमारी नॉर्थ-ईस्ट की सुरक्षा चुनौतियां भी बढ़ सकती हैं। पर एक अच्छी बात? भारत का कूटनीतिक अनुभव इन चुनौतियों से निपटने में मदद करेगा। उम्मीद तो यही है!
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com