बांग्लादेश में फिर सुर्खियां: “जिहाद चाहिए…” वाले नारों ने क्यों बढ़ाई चिंता?
अरे भाई, बांग्लादेश में तो हालात फिर से गर्म होते दिख रहे हैं। कल्पना कीजिए – ढाका की एक मस्जिद से अचानक “जिहाद चाहिए, जिहाद से जीना है” जैसे नारे गूंज उठे! सुनकर ही रूह कांप जाए। और तो और, जमात-ए-इस्लामी जैसे बैन्ड संगठन अब खुलेआम सड़कों पर उतर आए हैं। सच कहूं तो, ये सब देखकर लगता है जैसे पुराने दिन वापस आ रहे हैं।
आखिर कहां से शुरू हुई ये पूरी गड़बड़?
देखिए, पिछले 10 साल से तो बांग्लादेश सरकार ने इन उग्रवादियों पर शिकंजा कसा हुआ था। लेकिन 2023 के बाद से… हालात बदले। जेलों से सैकड़ों कट्टरपंथी छूट गए। और अब? उनका हौसला बुलंद होता दिख रहा है। ऐसा लगता है जैसे कोई बांध टूटा हो और पानी चारों तरफ फैल रहा हो।
क्या-क्या हुआ असल में?
सबसे हैरान करने वाली बात? ढाका की उस मस्जिद में तो खुलेआम खुद को “militant” बताने वालों ने नारे लगाए! ये कोई छुपी हुई बात नहीं रही। और फिर जमात-ए-इस्लामी की वो रैली… भई यार, इतनी बड़ी संख्या में लोग जुटे कि सुरक्षा एजेंसियों के पसीने छूट गए। अब तो security forces को और ज्यादा तैनात करना पड़ा है।
किसका क्या रिएक्शन?
सरकार वालों का कहना है – “ये stability के लिए खतरा है।” पर सवाल यह है कि क्या सिर्फ बयानबाजी से काम चलेगा? वहीं मानवाधिकार वालों की चिंता अलग – उन्हें लगता है कि militants पर नजर रखनी चाहिए। और आम जनता? वो तो डरी हुई है। एक शख्स ने कहा भी – “अगर अभी नहीं संभले, तो…” बात अधूरी छोड़ दी। समझदार समझ जाएगा।
आगे क्या हो सकता है?
एक्सपर्ट्स की राय है कि सरकार बड़ा operation कर सकती है। मगर यहां दिक्कत ये है – अगर ऐसा हुआ तो political crisis और बढ़ सकता है। और हां, भारत समेत पड़ोसी देश भी इस पर नजर गड़ाए बैठे हैं। क्योंकि regional security का सवाल है न! अंतरराष्ट्रीय community भी चिंतित है… पर क्या वो सिर्फ चिंता जताने तक सीमित रहेगी?
असल में सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या बांग्लादेश फिर से उसी रास्ते पर जा रहा है जहां religious extremism ने पहले भी तबाही मचाई थी? सरकार के लिए ये आग में घी डालने जैसा है। awareness और strict action… दोनों ही जरूरी हैं। पर क्या ये काफी होगा? वक्त ही बताएगा।
बांग्लादेश में आजकल एक बड़ी मुश्किल खड़ी हो रही है। कुछ आतंकी गुट ‘जिहाद’ के नाम पर क्या-क्या नहीं कर रहे! नारेबाजी से लेकर हिंसा भड़काने वाले बयान तक – यह सब सिर्फ़ समाज में तनाव ही नहीं बढ़ा रहा, बल्कि पूरे देश की शांति को खतरे में डाल रहा है। अब सवाल यह है कि इससे कैसे निपटा जाए?
मेरा मानना है कि सरकार और आम जनता को मिलकर काम करना होगा। वैसे भी, अकेले सरकार के भरोसे ऐसी समस्याएं नहीं सुलझतीं। लेकिन इतना आसान भी नहीं है। क्योंकि जब नफ़रत की आग फैलती है, तो उसे रोकना उतना ही मुश्किल हो जाता है जितना कि हाथ से निकलते हुए पानी को थामना।
एक तरफ तो ये आतंकी गुट अपनी बात को धर्म से जोड़कर पेश कर रहे हैं, दूसरी तरफ असल में इनका मकसद कुछ और ही है। राजनीति? पावर? कौन जाने! पर इतना तो तय है कि इनकी वजह से आम बांग्लादेशी की ज़िंदगी मुश्किल हो रही है।
तो हल क्या है? मेरे ख़्याल से जागरूकता और एकजुटता ही इसका जवाब हो सकती है। जब तक लोग इनकी चाल समझेंगे नहीं, तब तक कुछ नहीं होगा। और हां, social media पर फैल रही झूठी खबरों से भी सावधान रहना होगा। क्योंकि आजकल तो एक शेयर बटन ही कितनी बड़ी आग लगा देता है – सोचिए!
बांग्लादेश में आतंकियों के नारे – जानिए पूरी कहानी
‘जिहाद चाहिए’ जैसे नारे… असल में हो क्या रहा है?
देखिए, बात यह है कि बांग्लादेश में कुछ ऐसे गुट सक्रिय हैं जो अपनी हिंसक सोच को बेचने के लिए ऐसे नारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। मस्जिदों से लेकर सड़कों तक – ये लोग जिहाद को कुछ ऐसे पेश करते हैं जैसे कोई फैशन स्टेटमेंट हो। और सबसे डरावना? युवाओं को अपने जाल में फंसाने की ये पूरी मशीनरी। सच कहूं तो, ये brainwashing से कम नहीं।
क्या ये सिर्फ बांग्लादेश की समस्या है?
अरे नहीं भाई! ये तो वैश्विक मुद्दा है। हालांकि बांग्लादेश में पिछले कुछ सालों में ये trend कुछ ज्यादा ही दिख रहा है। पर सच यह है कि जहां-जहां radical groups का प्रभाव है, वहां-वहां ऐसी बयानबाजी आम है। थोड़ा गौर करें तो middle east से लेकर europe तक… हर जगह का अपना स्टोरी है।
समाज पर पड़ रहा असर – कितना गंभीर?
एक तरफ तो ये समाज में डर फैला रहा है, वहीं दूसरी तरफ religious tensions को हवा दे रहा है। और सबसे दुखद? बेकसूर लोगों की जिंदगी दांव पर लग जाती है। युवाओं को गलत रास्ते पर धकेलना… ये सिर्फ security threat नहीं, बल्कि पूरी पीढ़ी को बर्बाद करने जैसा है। सोचिए, अगर आपका भाई या बेटा ऐसे नारों से प्रभावित हो जाए तो?
सरकार की तरफ से क्या हो रहा है?
अच्छी बात यह है कि बांग्लादेश सरकार ने anti-terrorism operations को गंभीरता से लिया है। Strict action भी हो रहा है। पर क्या ये काफी है? Social media पर hate speech को monitor करने की कोशिश तो चल रही है, लेकिन ये लड़ाई आसान नहीं। जैसे तैसे करके हालात संभाले जा रहे हैं।
एक बात और – ये सिर्फ सरकार का काम नहीं, समाज को भी जागना होगा। आखिरकार, prevention is better than cure… है न?
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