Site icon surkhiya.com

कंगाल पाकिस्तान की हालत! अपनी इकलौती चीज बेचने पर मजबूर, 7 हजार लोगों की नौकरी खतरे में

bankrupt pakistan selling last asset 7000 jobs at risk 20250709105434363577

कंगाल पाकिस्तान की हालत! अपनी आखिरी ज़मीन-जायदाद तक बेचने को मजबूर, 7 हज़ार परिवारों की रोटी दांव पर

असल में बात ये है कि पाकिस्तान सरकार फिर से उसी गड्ढे में गिरती नज़र आ रही है जिससे निकलने की कोशिश वो सालों से कर रही है। और इस बार तो हालत ये है कि उन्हें अपनी ‘फैमिली सिल्वर’ यानी पाकिस्तान स्टील मिल्स तक बेचनी पड़ रही है। सोचिए, जिस देश में पहले से ही बेरोजगारी आसमान छू रही हो, forex reserves नाम की कोई चीज़ बची न हो, और IMF के कर्ज़ से भी पेट न भर रहा हो – वहां ये फैसला कितना दर्दनाक होगा? सबसे बुरा? इससे सीधे 7,000 से ज़्यादा लोगों की नौकरी खतरे में पड़ जाएगी।

कहानी एक डूबती अर्थव्यवस्था की

देखिए, पाकिस्तान का ये आर्थिक संकट कोई नया नहीं है। ये तो वही पुरानी कहानी है जिसमें हर साल नया अध्याय जुड़ता जाता है। विदेशी कर्ज़, घाटे का व्यापार, और राजनीतिक उठापटक – ये तीनों मिलकर क्या-क्या नहीं कर डालते! जून 2023 तक तो उनका कुल विदेशी कर्ज़ 126 अरब डॉलर को पार कर चुका था। यानी GDP का लगभग 90%! अब आप ही बताइए, ऐसे में सरकार के पास चारा क्या बचता है?

मज़े की बात ये है कि ये सारा मामला 1970 के दशक की गलतियों की देन है। जुल्फिकार अली भुट्टो ने 1973 में PSM की नींव रखी थी, जिसे उस वक्त औद्योगिक विकास का प्रतीक माना जाता था। लेकिन भ्रष्टाचार और लापरवाही ने इस ‘हीरा’ को ‘काँच’ बना दिया। क्या कहें – इंसान की लालच ही उसकी सबसे बड़ी दुश्मन होती है।

PSM बिकाऊ क्यों?

अब सवाल ये उठता है कि आखिर PSM को बेचने की नौबत क्यों आई? दरअसल, ये कराची के पास फैली 18,000 एकड़ की यूनिट पिछले 10 साल से सिर्फ़ घाटा ही कमा रही है। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि रोज़ाना 100 मिलियन रुपये का नुकसान! यानी हर महीने एक छोटा सा स्कैम जितना पैसा डूब रहा है। वित्त मंत्रालय के एक बाबू ने तो यहाँ तक कह दिया – “अब तो पानी सिर से ऊपर बह रहा है साहब!”

बिक्री की प्रक्रिया PPC संभाल रहा है, और चीनी कंपनियाँ इस डील पर नज़र गड़ाए बैठी हैं। पर एक सच ये भी है कि मजबूरी में बेची जाने वाली चीज़ का भाव कभी अच्छा नहीं मिलता। ये तो वैसे ही है जैसे बारिश में भीगते हुए अपना छाता बेचना।

राजनीति गरमाई, मज़दूर सड़कों पर

इस फैसले ने पाकिस्तान की राजनीति में तूफान ला दिया है। PTI वाले तो मानो आग बबूला हो गए हैं – “ये तो राष्ट्रीय सम्पत्ति की बलि चढ़ाने जैसा है!” वहीं दूसरी ओर, PSM के कर्मचारियों ने सड़कें गरमा दी हैं। यूनियन लीडर खालिद कुरैशी का कहना है – “हमारी तो जान ही चली जाएगी भाई!” सच कहूँ तो सरकार ने इन मज़दूरों को बिना किसी बैकअप प्लान के धक्के दे दिए हैं।

आगे क्या?

अर्थशास्त्री डॉ. अशफाक हसन कहते हैं – “ये तो प्लास्टर करने जैसा है, इलाज नहीं।” सच भी तो है – PSM बेच देने से तुरंत तो कुछ पैसा आ जाएगा, लेकिन लंबे समय में ये पाकिस्तान की औद्योगिक रीढ़ को ही तोड़ देगा। और IMF वालों का तो पहले से ही मूड खराब चल रहा है। अगर ये डील सही दाम पर नहीं हुई, तो फिर तो पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय साख और भी धराशायी हो जाएगी।

अंत में…

PSM की बिक्री तो बस एक लक्षण है, बीमारी नहीं। बिना सही आर्थिक सुधारों के, ये तो वैसे ही है जैसे बुखार में पैरासिटामॉल खा लेना – असली इन्फेक्शन तो वैसे ही रह जाता है। सच तो ये है कि पाकिस्तान को अब राजनीति से ऊपर उठकर सोचना होगा। वरना… अरे भई, वरना तो स्थिति और भी भयानक हो सकती है। और ये कहने के लिए मुझे अर्थशास्त्री होने की ज़रूरत नहीं!

यह भी पढ़ें:

कंगाल पाकिस्तान की हालत! – कुछ सवाल जो दिमाग में आते हैं

1. पाकिस्तान की economy इतनी बुरी स्थिति में कैसे पहुंची?

देखिए, मामला सिर्फ corruption या foreign debt का नहीं है। असल में तो यह एक snowball effect है – जैसे बर्फ का गोला लुढ़कता जाता है, वैसे ही हालात बिगड़ते जा रहे हैं। सरकारी नाकामी, बेरोजगारी, और अराजकता ने मिलकर इसे और बढ़ावा दिया है। सच कहूं तो, यहां तक पहुंचने में दशकों लगे हैं।

2. पाकिस्तान को अपनी कौन-सी ‘गहने’ बेचने पड़ रहे हैं?

अरे भाई, जब घर चलाने के लिए रुपये न हों तो और क्या करोगे? Airports से लेकर सरकारी कंपनियां तक – सब कुछ बिकाऊ है! पर सवाल यह है कि क्या यह अस्थायी समाधान है? क्योंकि एक बार strategic assets बेच दिए तो फिर…

3. 7,000 लोगों की नौकरियां क्यों डूब रही हैं?

इसे ऐसे समझिए – जब कोई नया मालिक आता है तो पहला काम क्या करता है? खर्च काटता है न! और सबसे आसान तरीका? कर्मचारियों को निकाल दो। PIA जैसी कंपनियों में तो यह तूफान आने वाला है। दुखद, पर सच्चाई।

4. क्या पाकिस्तान इस गड्ढे से निकल पाएगा?

ईमानदारी से? मुश्किल लग रहा है। हालांकि experts कहते हैं reforms से सुधार हो सकता है, पर देखा जाए तो यह सिर्फ कागजी बातें हैं। Ground reality? हर दिन नया संकट। नया विवाद। और आम आदमी की तकलीफें बढ़ती जा रही हैं। क्या आपको लगता है इस स्थिति में जल्द सुधार होगा?

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

Exit mobile version