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“BAP सांसद राजकुमार रोत का बड़ा बयान: ‘भील प्रदेश हमारा जन्मसिद्ध अधिकार’ | राजस्थान राजनीति”

BAP सांसद राजकुमार रोत का बयान: ‘भील प्रदेश हमारा हक़, अब और नहीं चलेगा यह अन्याय!’

अरे भाई, राजस्थान के आदिवासी इलाकों में फिर से हलचल शुरू हो गई है। और इस बार बात सिर्फ़ राजनीति की नहीं, बल्कि दशकों से चली आ रही एक जायज़ मांग की है। BAP के सांसद राजकुमार रोत ने तो जैसे बिल्कुल सही वक्त पर बात रख दी – “भील प्रदेश हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है!” सच कहूँ तो, ये कोई नई बात नहीं है, लेकिन 2024 के चुनावों से पहले इसका मतलब क्या है? समझने वाली बात तो ये है कि उन्होंने राजस्थान, MP, गुजरात और महाराष्ट्र के 49 जिलों को मिलाकर अलग राज्य की मांग फिर से ज़ोरदार तरीके से उठा दी है।

असल में देखा जाए तो ये मांग तो हमारे दादा-परदादा के ज़माने से चली आ रही है। 1920 में गुरु गोविंदगिरी ने जब पहली बार ‘भील राज्य’ की बात की थी, तब से लेकर 2013 के बड़े आंदोलन तक… कितनी बार ये मुद्दा उठा और दबाया गया? सरकारों ने हमेशा इसे टालने की कोशिश की। पर अब? अब BAP जैसे संगठन इसे चुनावी हथियार बना रहे हैं। और क्यों न बनाएं? जब बड़ी पार्टियाँ सिर्फ़ वोटों के लिए आदिवासियों को याद करती हैं।

रोत साहब ने तो इस बार सीधे-सीधे केंद्र सरकार को घेर ही लिया। उनका कहना है कि आदिवासियों के विकास के लिए अलग राज्य बनना ही होगा। और सच्चाई यही है! पर राजस्थान सरकार? वो तो मानो इस मुद्दे पर बहरे हो गई है। कोई जवाब नहीं, कोई एक्शन नहीं। ऐसे में स्थानीय स्तर पर क्या हो रहा है? बस अनिश्चितता और गुस्सा बढ़ता जा रहा है।

अब दिलचस्प बात ये है कि अलग-अलग पार्टियों की प्रतिक्रिया। BAP के नेता इसे ‘न्याय की लड़ाई’ बता रहे हैं। लेकिन कांग्रेस और BJP? उनका रुख अभी तक क्लियर नहीं हुआ। क्यों? क्योंकि दोनों को पता है कि आदिवासी वोट बैंक खिसक सकता है। कुछ संगठनों को लगता है कि ये सच्ची लड़ाई है, तो कुछ का मानना है कि ये सिर्फ़ राजनीतिक चाल है। पर सवाल ये है कि – क्या सच में आदिवासियों की आवाज़ सुनी जाएगी, या फिर ये सब चुनावी ड्रामा है?

आने वाले दिनों में ये मुद्दा और गरमा सकता है। खासकर जब 2024 के चुनाव नज़दीक आएंगे। BAP शायद और आंदोलन तेज़ कर दे। केंद्र सरकार को कुछ तो करना पड़ेगा – नहीं तो आदिवासी इलाकों में असंतोष और बढ़ेगा। और अगर ये आंदोलन वाकई जोर पकड़ लेता है? तो राजस्थान और आसपास के राज्यों की राजनीति ही बदल सकती है। एकदम नए समीकरण बन सकते हैं।

अंत में बस इतना कहूँगा – भील प्रदेश की मांग सिर्फ़ एक राजनीतिक मुद्दा नहीं है। ये आदिवासियों के अधिकारों, उनकी पहचान और न्याय की लड़ाई है। और अब तो ये चुनावी बहस का हिस्सा भी बन चुका है। जैसे-जैसे चुनावी रणनीतियाँ तेज़ होंगी, ये मुद्दा और गरमाता जाएगा। देखना ये है कि इस बार सरकार कितना सुनती है… या फिर हमें एक और लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी।

अब ये BAP सांसद राजकुमार रोत का बयान… सच कहूं तो मैंने पहले कभी नहीं सोचा था कि राजस्थान की राजनीति में ये एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है। भील प्रदेश की मांग अब सिर्फ़ कोई नारा भर नहीं रही – देखते-देखते ये एक जनआंदोलन का रूप लेती जा रही है। और सच पूछो तो? ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे धीमी आंच पर पकता हुआ कोई पकवान… जो अचानक से पूरे स्वाद के साथ तैयार हो जाता है।

अब सवाल ये उठता है कि आने वाले दिनों में ये मांग राज्य की सियासत को कैसे बदलेगी? क्योंकि हालात तो ये बता रहे हैं कि यहां की राजनीतिक तस्वीर पूरी तरह बदलने वाली है। मैं तो बस इतना कहूंगा – ये सिलसिला बेहद दिलचस्प होने वाला है।

और हां, अगर आपको भी राजस्थान की राजनीति में गहरी दिलचस्पी है, तो हमारे साथ जुड़े रहिए। क्योंकि यहां तो अभी बहुत कुछ होना बाकी है… सच में!

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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