बस्तर में नक्सलियों का अंत? सरकार का ‘मानसून ऑपरेशन’ कितना कारगर होगा?
अब तो लगता है सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है। छत्तीसगढ़ से लेकर ओडिशा तक – चार राज्यों की सुरक्षा बलों ने मिलकर एक बड़ी कार्रवाई की प्लानिंग कर ली है। और नाम भी कितना सोच-समझकर रखा है – “ऑपरेशन मानसून”। मतलब साफ है, जैसे मानसून सब कुछ बहा ले जाता है, वैसे ही ये ऑपरेशन नक्सलियों को साफ कर देगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या वाकई ऐसा हो पाएगा? क्योंकि ये तो हम सब जानते हैं कि नक्सलवाद की समस्या कोई एक-दो दिन की नहीं है।
समस्या की जड़ें: क्यों फल-फूल रहा है नक्सलवाद?
ईमानदारी से कहूं तो बस्तर की कहानी बड़ी दुखद है। यहां के जंगलों में नक्सलियों का कब्जा इतना पुराना है कि अब तो ये स्थायी समस्या बन चुका है। पिछले कुछ सालों में तो हालात और भी बिगड़े हैं – सुरक्षा बलों पर हमले, आदिवासियों को निशाना बनाना… सरकार ने “सर्जिकल स्ट्राइक” से लेकर “SAMADHAN” जैसी नीतियां तो बनाईं, पर असल मसला रहा-सही वहीं का वहीं। अब देखना ये है कि इस बार का ‘मानसून’ कितना प्रभावी होगा।
क्या है इस बार की रणनीति? ड्रोन्स से लेकर सैटेलाइट तक!
असल में इस बार सरकार ने टेक्नोलॉजी पर भरोसा किया है। CRPF और STF के जवानों के साथ-साथ अब ड्रोन्स और सैटेलाइट डेटा भी मैदान में उतरने वाले हैं। 13 टॉप नक्सली नेताओं को टारगेट करने की योजना है – और ये पहली बार हो रहा है जब चार राज्य मिलकर एक साथ एक्शन ले रहे हैं। हालांकि, जंगल का इलाका होने के कारण चुनौतियां भी कम नहीं हैं। नक्सलियों को पता है कि कैसे जंगल का फायदा उठाना है।
क्या कह रहे हैं लोग? सरकार vs विपक्ष vs आदिवासी
दिलचस्प बात ये है कि गृह मंत्रालय इसे “फाइनल ब्लो” बता रहा है, लेकिन विपक्ष के कुछ नेताओं को शक है। उनका सवाल – कहीं ये ऑपरेशन आदिवासियों के खिलाफ तो नहीं हो जाएगा? और सच कहूं तो ये डर बिल्कुल बेबुनियाद भी नहीं है। बस्तर के गांव वालों की चिंता समझी जा सकती है – नक्सली जवाबी हमला कर सकते हैं। वहीं मानवाधिकार वालों की चिंता भी जायज है – नागरिकों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित होगी?
सफलता के बाद क्या? सिर्फ बंदूकें नहीं, विकास भी जरूरी
मान लीजिए ऑपरेशन सफल रहा, तो क्या? क्या सच में नक्सलवाद खत्म हो जाएगा? विशेषज्ञों का मानना है कि नक्सली नेता अक्सर “घेराबंदी से बच” निकलते रहे हैं। और यहां तो जंगल का फायदा भी है। सरकार ने वादा किया है कि ऑपरेशन के बाद विकास योजनाएं तेजी से लागू होंगी। पर हमने ये वादे पहले भी सुने हैं न? असल में जब तक गरीबी, बेरोजगारी और शोषण की समस्याएं रहेंगी, तब तक नक्सलवाद का खतरा बना रहेगा।
एक तरफ तो ये ऑपरेशन पूरे देश की सुरक्षा नीतियों को प्रभावित कर सकता है। वहीं दूसरी तरफ, ये सवाल भी बना रहेगा – क्या सच में इस बार अंत होगा नक्सलवाद का? आने वाले कुछ हफ्ते ही बताएंगे कि ये “मानसून” सिर्फ नाम का था या वाकई तूफान लेकर आया है।
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1. सरकार नक्सलियों से निपटने के लिए क्या कर रही है? असल में प्लान क्या है?
देखिए, बस्तर की समस्या कोई एक दिन की नहीं है। सरकार ने इसे लेकर कोई half-hearted approach नहीं अपनाया है। security forces की तैनाती तो है ही, साथ ही गाँव-गाँव में roads, schools जैसे development projects भी चल रहे हैं। मगर सबसे दिलचस्प बात? intelligence-based operations… यानी पहले से पता चल जाता है कि नक्सलवादी कहाँ छिपे हैं। एक तरह से यह politically भी उन्हें अलग-थलग करने की कोशिश है। समझ गए न?
2. ठीक है, पर क्या आम लोगों को कोई खतरा तो नहीं?
अच्छा सवाल! सरकार तो बार-बार कह रही है कि public safety उनकी पहली priority है। पर… हमेशा की तरह human rights वालों को शक है। उनका कहना है कि ऐसे operations में innocent लोग भी फंस सकते हैं। security forces की तरफ से SOPs follow करने के दावे हैं, पर क्या यह काफी है? ईमानदारी से कहूँ तो, जंगल के इन इलाकों में सब कुछ black and white नहीं होता।
3. अगर कोई नक्सली surrender करना चाहे तो?
अरे भई, सरकार ने तो बड़ी प्यारी policy बना रखी है! पैसा मिलेगा, रोजगार के लिए training… और cases भी वापस ले लिए जाएँगे। सच कहूँ तो, कई लोगों ने इस scheme का फायदा भी उठा लिया है। पर सवाल यह है कि क्या यह सबकुछ सच में काम कर रहा है? या फिर सिर्फ कागजों तक सीमित है?
4. भविष्य में इसके क्या नतीजे हो सकते हैं? सच्चाई तो यह है कि…
Experts की राय? अगर यह operation सफल रहा तो बस्तर के लिए golden chance होगा। पर… बड़ा पर हमेशा की तरह एक ‘पर’ जरूर है। सिर्फ बंदूकों से नक्सलवाद खत्म नहीं होगा। गरीबी, बेरोजगारी जैसे मूल issues पर भी काम करना होगा। नहीं तो कुछ सालों बाद फिर वही हालात। और हम फिर से उसी point पर वापस आ जाएँगे। सोचने वाली बात है न?
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com