बथानी टोला नरसंहार: बिहार का वो काला दिन जब जातीय हिंसा ने ली 277 मासूमों की जान

बथानी टोला नरसंहार: जब बिहार की धरती ने खून के आँसू रोए

11 जुलाई 1996… एक तारीख जिसे भोजपुर के बथानी टोला गाँव वाले कभी नहीं भूल पाएंगे। सुबह की चुप्पी को चीरते हुए रणवीर सेना के बंदूकधारियों ने जो किया, उसे सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। 21 मासूम – ज़्यादातर दलित और मुस्लिम – बेरहमी से मार डाले गए। ये कोई सामान्य हिंसा नहीं थी, बल्कि जाति के नाम पर किया गया वो जघन्य अपराध जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।

वो खूनी सुबह क्यों आई?

असल में बात समझनी हो तो 90 के दशक का बिहार ही कुछ अलग था। नक्सलियों और जमींदारों की लड़ाई, जातीय तनाव, राजनीतिक खेल… ये सब मिलकर एक विस्फोटक मिश्रण बना रहे थे। रणवीर सेना? वो तो बस एक हथियार थी जमींदारों के हाथ में। 1992 के बारा नरसंहार ने तो जैसे बारूद का ढेर लगा दिया था। और सबसे डरावनी बात? कुछ राजनीतिक दलों की शह! है ना आश्चर्य की बात कि ऐसे गुंडे इतने बेशर्म हो सकते हैं?

इंसाफ का सफर: कितना लंबा, कितना अधूरा

16 साल। इतने लंबे वक्त के बाद 2012 में पटना High Court ने 23 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई। पर सच कहूँ तो? ये फैसला मानो नमक छिड़कने जैसा था। क्योंकि बड़े मछली तो बच निकले। और वो परिवार? जिन्होंने अपनों को खोया, उनके लिए ये इंसाफ नहीं, एक मज़ाक था। हालांकि आज रणवीर सेना का नाम लोग भूल चुके हैं, लेकिन उसकी विरासत? वो तो हर चुनाव में ज़िंदा हो जाती है।

समाज ने क्या किया? राजनीति ने क्या खेला?

देखिए, इस मामले ने सबके असली चेहरे दिखा दिए। Amnesty International जैसी संस्थाओं ने सरकार को घेरा। पर राजनीतिक दल? उन्हें तो बस वोट बैंक दिखाई दिया। कोई इसे सामाजिक असंतुलन बता रहा था, तो कोई इसे जाति की राजनीति का हथियार बना रहा था। और पीड़ित? वो तो बस मुआवज़े के नाम पर कुछ रुपयों में समेट दिए गए।

क्या ये कहानी अब खत्म हो गई?

सच तो ये है कि बथानी टोला की घटना आज भी बिहार की राजनीति में ज़िंदा है। Supreme Court का दरवाज़ा खटखटाने वाले पीड़ित परिवार बताते हैं कि इंसाफ की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई। और जातिगत नफ़रत? वो तो आज भी उतनी ही गहरी है, बस रूप बदल लिया है।

एक सवाल जो मन को कचोटता है: क्या हमने इस त्रासदी से कुछ सीखा? या फिर हमारी न्याय व्यवस्था और समाज अगले बथानी टोला का इंतज़ार कर रहे हैं? ये सवाल हर उस शख्स से है जो खुद को ‘सभ्य’ कहलाने का दावा करता है।

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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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