प्लासी की लड़ाई: वो एक दिन जिसने भारत का भाग्य ही बदल दिया
2 जुलाई 1757… वो तारीख जिसे याद करते ही गला सूख जाता है। प्लासी के मैदान में हुई वो लड़ाई कोई सामान्य युद्ध नहीं थी, बल्कि एक पूरी सभ्यता के भाग्य का फैसला था। सच कहूँ तो, ये लड़ाई नहीं, एक सुनियोजित धोखा था – जहाँ विश्वासघात और लालच ने मिलकर भारत की तकदीर के साथ खिलवाड़ किया। और हैरानी की बात ये कि ये सब कुछ महज कुछ घंटों में हो गया! आज जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो साफ समझ आता है कि ब्रिटिश राज की नींव असल में इसी दिन पड़ी थी।
कैसे पैदा हुई प्लासी की लड़ाई?
देखिए, कहानी शुरू होती है 1756 से, जब सिराजुद्दौला बंगाल की गद्दी पर बैठे। अब ये नवाब साहब कोई बूढ़े-खुसुर बाबू नहीं थे, बल्कि एक जवान, जोशीला शासक थे। और उनकी सबसे बड़ी गलती? उन्होंने British East India Company की चाल समझ ली थी। जब कलकत्ता में अंग्रेजों ने अवैध किलेबंदी शुरू की, तो सिराज ने उन्हें सबक सिखाने की ठानी। और सच कहूँ तो, उस वक्त तो उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ भी दिया। लेकिन… हमेशा की तरह यहाँ एक ‘लेकिन’ आ ही गया। अंग्रेजों को ये अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ, और उन्होंने पूरी तैयारी से वार करने का फैसला किया।
मीर जाफर का वो काला दिन
अब यहाँ आता है सबसे दर्दनाक हिस्सा। क्या आप जानते हैं कि प्लासी की लड़ाई में सिर्फ 23 अंग्रेज सैनिक मारे गए थे? है ना चौंकाने वाला आँकड़ा? इसकी वजह थी मीर जाफर – सिराजुद्दौला का अपना ही सेनापति! इस शख्स ने रॉबर्ट क्लाइव के साथ मिलकर ऐसी साजिश रची कि इतिहास ही बदल गया। 23 जून को जब लड़ाई शुरू हुई, तो मीर जाफर ने अपनी सेना को हाथ तक नहीं उठाने दिया। नतीजा? एक तरह से ये लड़ाई हुई ही नहीं। और फिर… सिराजुद्दौला का वो भयानक अंत। उनकी हत्या के बाद तो बंगाल अंग्रेजों की मुट्ठी में आ गया। सच में, कभी-कभी सोचता हूँ – अगर मीर जाफर ने धोखा न दिया होता तो आज हमारा इतिहास कैसा होता?
इतिहासकार क्या कहते हैं?
दिलचस्प बात ये है कि अंग्रेज इतिहासकार इसे ‘एक छोटी सी झड़प’ बताते हैं। छोटी सी झड़प? सच में? जिस लड़ाई ने पूरे देश को 200 साल की गुलामी में धकेल दिया, उसे झड़प कहना… है ना मजाक? प्रोफेसर रोमिला थापर जैसे विद्वान मानते हैं कि ये भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की असली शुरुआत थी। और सच तो ये है कि उस वक्त की जनता अंग्रेजों के खिलाफ थी, लेकिन हमारे अपने ही लोगों ने… वो भी सत्ता के लालच में… देश को धोखा दे दिया। क्या ये सबक आज के लिए भी प्रासंगिक नहीं है?
आज के संदर्भ में प्लासी की लड़ाई
सोचिए, एक लड़ाई जिसने पूरे उपमहाद्वीप का नक्शा बदल दिया! इसके बाद तो British East India Company का दबदबा बढ़ता ही गया। और सबसे बड़ी बात – इसने भारतीय रियासतों के बीच फूट को और गहरा कर दिया। आज जब हम प्लासी की लड़ाई को याद करते हैं, तो ये सिर्फ इतिहास नहीं, एक चेतावनी है। एक सबक कि कैसे आंतरिक फूट और स्वार्थ किसी देश की आजादी को खतरे में डाल सकते हैं। और सबसे डरावना सवाल – क्या हमने वाकई इससे सबक लिया है?
आज जब हम 2 जुलाई को याद करते हैं, तो सिर्फ एक लड़ाई को याद नहीं कर रहे। हम याद कर रहे हैं उस दिन को, जब भारत की तकदीर का एक नया अध्याय लिखा गया। सिराजुद्दौला की मौत सिर्फ एक शासक का अंत नहीं थी… ये शुरुआत थी उस लंबे संघर्ष की, जो 1947 में जाकर खत्म हुआ। और शायद… सिर्फ शायद… अगर प्लासी का नतीजा कुछ और होता, तो आज हम किसी और तरह के भारत में जी रहे होते। सोचने वाली बात है, है ना?
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1. प्लासी की लड़ाई (Battle of Plassey) कब हुई और क्यों ये इतनी मशहूर है?
तारीख थी 23 जून 1757। सुबह-सुबह की बात है जब ईस्ट इंडिया कंपनी और सिराजुद्दौला की फौजें आमने-सामने हुईं। लेकिन असल में ये कोई बड़ी लड़ाई नहीं थी – हैरानी की बात है न? पर इसका असर ऐसा हुआ जैसे पहले डोमिनो को धक्का दे दिया हो। क्योंकि इसके बाद तो अंग्रेजों ने बंगाल पर कब्जा कर लिया, और फिर… बाकी इतिहास तो आप जानते ही हैं।
2. सिराजुद्दौला की मौत – क्या सच में उनके अपने ही लोगों ने धोखा दिया?
दुखद सच ये है कि हां। महज एक हफ्ते बाद, 2 जुलाई 1757 को उनकी हत्या कर दी गई। और सबसे बड़ी आघात की बात? ये काम किया उनके खुद के सेनापति मीर जाफर ने – वही जिस पर सिराज को पूरा भरोसा था। सोचिए, अंग्रेजों ने मीर जाफर को नवाब बनाने का लालच दिया होगा, और उसने अपने मालिक को ही मरवा डाला। राजनीति, है न?
3. अंग्रेज कैसे जीत गए? सच्चाई जानकर आपको झटका लगेगा
देखिए, तकनीकी रूप से अंग्रेजों के पास बेहतर तोपें थीं। लेकिन असली वजह? विश्वासघात। पूरी की पूरी साजिश! मीर जाफर और उसके साथियों ने लड़ाई के दौरान ही सिराज का साथ छोड़ दिया। कुछ इतिहासकार तो कहते हैं कि मीर जाफर की फौज ने जानबूझकर लड़ाई नहीं लड़ी। है न दिलचस्प?
4. प्लासी के बाद अंग्रेजों ने कैसे पूरे भारत पर कब्जा जमाया?
एक तरफ तो बंगाल पर कब्जे ने उन्हें अमीर बना दिया – सोने की चिड़िया वाली बात याद है न? लेकिन असली चालाकी ये थी कि उन्होंने इस पैसे से अपनी सेना को मजबूत किया। धीरे-धीरे, चालाकी से, जैसे कोई शतरंज खेल रहा हो। पहले बंगाल, फिर दक्षिण, और फिर… खैर, बाकी कहानी तो आप जानते ही हैं।
सच कहूं तो, प्लासी की लड़ाई सिर्फ एक लड़ाई नहीं थी। ये तो एक पूरी साजिश थी जिसने हमारे देश का भविष्य बदल दिया। अजीब लगता है न कि एक छोटी सी लड़ाई इतना बड़ा मोड़ ले आई?
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com