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बिहार में 17 दिन में 51 हत्याएं: सरकारी आंकड़ों और जमीनी हकीकत का अंतर

बिहार में 17 दिन में 51 हत्याएं: जब आंकड़े और हकीकत की खाई चौड़ी होती जा रही है

सुनकर हैरानी होगी, लेकिन बिहार में पिछले 17 दिनों में 51 हत्याएं हुई हैं! ये सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि एक डरावनी सच्चाई है जो राज्य की कानून-व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा करती है। सबसे हैरतअंगेज मामला तो पटना के उस अस्पताल का है, जहां दिनदहाड़े पांच बंदूकधारियों ने भर्ती गैंगस्टर चंदन मिश्रा को ठिकाने लगा दिया। सोचिए, अस्पताल जैसी जगह पर भी सुरक्षा नहीं? ये घटना न सिर्फ पुलिस व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि आने वाले विधानसभा चुनावों के माहौल को भी गरमा रही है।

कहानी कुछ और, हकीकत कुछ और

असल में देखा जाए तो बिहार में अपराध दर तो हमेशा से उतार-चढ़ाव भरी रही है। लेकिन पिछले कुछ दिनों में हिंसा का ये तांडव… एकदम चौंकाने वाला। सरकारी रिपोर्ट्स और जमीनी हालात में जमीन-आसमान का फर्क। अस्पताल वाली घटना तो जैसे इस फर्क को और भी गहरा कर गई। भई, अस्पताल तो वो जगह होती है जहां पुलिस की नजर होनी चाहिए न? लेकिन यहां तो अपराधियों ने खुल्लमखुल्ला अपनी ताकत दिखा दी। सवाल यह है कि आखिर ये हिम्मत कहां से आ रही है?

क्या चल रहा है अभी?

इन 51 हत्याओं के पीछे गैंगवॉर, जमीन के झगड़े और पर्सनल दुश्मनियां – सब कुछ है। पटना अस्पताल कांड के बाद पुलिस ने दो लोगों को पकड़ा जरूर है, लेकिन मुख्य आरोपी अभी भी फरार हैं। और तो और, विपक्ष ने तो सरकार को घेर ही लिया है। उनका कहना है कि कानून-व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। वहीं सत्ता पक्ष इन्हें अलग-थलग घटनाएं बता रहा है। मजे की बात ये कि ये सब उस वक्त हो रहा है जब चुनावी माहौल गरमाने वाला है।

राजनीति गरमाई, प्रतिक्रियाएं तीखी

इस मामले पर राजनीतिक बयानबाजी देखने लायक है। RJD के तेजस्वी यादव तो जैसे आग बबूला हो गए – “सरकार तो अपराधियों के सामने घुटने टेक चुकी है। ये आंकड़े साबित करते हैं कि बिहार जंगलराज की तरफ बढ़ रहा है!” वहीं JDU प्रवक्ता का जवाब – “हर मामले की जांच हो रही है। हम किसी को नहीं छोड़ेंगे।” पुलिस वालों का कहना है कि अस्पताल कांड उनके लिए चुनौती है, लेकिन वे जल्द ही सभी आरोपियों को पकड़ लेंगे। पर सवाल ये है कि कब तक?

अब आगे क्या?

चुनाव नजदीक हैं, और कानून-व्यवस्था बड़ा मुद्दा बनने वाला है। पुलिस को अपनी सुरक्षा व्यवस्था पर फिर से सोचना होगा – खासकर अस्पतालों और पब्लिक प्लेसिज पर। अगर हिंसा यूं ही बढ़ती रही, तो शायद राज्य में अधिक सुरक्षा बल तैनात करने पड़ें। और राजनीतिक दलों की बहस? वो तो और भी तीखी होगी। सच कहूं तो, ये सारा मामला आम बिहारवासी के मन में डर बैठा रहा है।

आखिर में बस इतना कि बिहार में ये बढ़ती हत्याएं सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन चुकी हैं। सरकारी आंकड़े और जमीनी सच्चाई के बीच की ये खाई न सिर्फ सिस्टम पर सवाल उठाती है, बल्कि आम आदमी को असुरक्षित भी बना रही है। सच तो ये है कि अब सवाल सिर्फ आंकड़ों का नहीं, बल्कि जिंदगियों का है।

यह भी पढ़ें:

बिहार में हत्याओं का वो सच जो कोई नहीं बताना चाहता – आपके सवाल, हमारे जवाब

1. अरे भईया, बिहार में 17 दिन में 51 हत्याएं? ये कैसा रिकॉर्ड है?

सुनकर हैरानी होती है ना? पर असलियत यही है। मामले कहीं criminal gangs से जुड़े हैं, तो कहीं पड़ोसियों की जानी दुश्मनी। Police तो property disputes को मुख्य वजह बता रही है, लेकिन ground reality कुछ और ही कहानी कहती है। सच तो ये है कि जब political rivalry का तड़का लग जाए, तो आग में घी डालने जैसा हो जाता है।

2. सरकारी आंकड़े और असलियत में इतना फर्क क्यों?

यहां तो खेल ही अलग चल रहा है! देखिए ना, कैसे कुछ cases को ‘accidental death’ के रजिस्टर में धकेल दिया जाता है। Local media की रिपोर्ट्स और NGOs के data तो सरकारी बयानों को झुठलाते नजर आते हैं। ईमानदारी से कहूं तो, ये वही पुराना तरीका है – आंकड़ों की जुगाली करके सच्चाई को छुपाने का।

3. सरकार इन हालात पर काबू पाने के लिए क्या कर रही है?

कागजों पर तो बड़े-बड़े दावे… special police teams का गठन, CCTV cameras की बाढ़। लेकिन सच पूछो तो? Opposition वालों का कहना है कि ये सब ‘दिखावटी एक्शन’ है। असल मुद्दा ये है कि जब तक political will साफ नहीं होगी, तब तक ये नाटक चलता रहेगा।

4. क्या सच में बिहार की हालत पहले से भी खराब हो गई है?

अब यहां दो राय हैं। Experts की मानें तो crime rate तो हमेशा ऊपर-नीचे होता रहता है। पर इस बार का spike थोड़ा ज्यादा डरावना लगता है। वहीं सरकार अपने पुराने रिकॉर्ड घुमा-फिराकर साबित करने में लगी है कि सब कंट्रोल में है। सच क्या है? शायद इन दोनों के बीच कहीं।

Source: NDTV Khabar – Latest | Secondary News Source: Pulsivic.com

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