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बिहार चुनावी संशोधन पर विवाद: विपक्ष ने चुनाव आयोग से मुलाकात कर ‘वोटबंदी’ का लगाया आरोप

बिहार चुनावों का नया विवाद: क्या सच में हो रही है ‘वोटबंदी’?

अभी तो बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियां चल ही रही थीं कि एक नया तूफान आ गया। 11 विपक्षी दलों ने मिलकर चुनाव आयोग के दरवाजे पर दस्तक दी है, और आरोप क्या लगाया? मतदाता सूची में संशोधन के नाम पर ‘Votebandi’! यानी जानबूझकर गरीबों और प्रवासी मजदूरों के वोट रोकने की साजिश। सच कहूं तो, यह सवाल सिर्फ बिहार का नहीं, हमारे पूरे लोकतंत्र का है।

पूरा मामला क्या है?

देखिए, चुनाव नजदीक है तो मतदाता सूची अपडेट होना तो नॉर्मल बात है। लेकिन इस बार… हालात कुछ अजीब हैं। विपक्ष का कहना है कि यह अपडेट ‘अंधेरे में’ हो रहा है। लाखों नाम गायब? खासकर उन लोगों के जो दूसरे राज्यों में रोटी कमाने गए हैं? ये तो वही बात हुई न – दूर के ढोल सुहावने!

असल में यह कोई नई बात भी नहीं। पिछले चुनावों में भी यही हुआ था – प्रवासी मजदूरों के पास voter card नहीं, वोट नहीं डाल पाए। पर इस बार तो आरोप और भारी है। विपक्ष कह रहा है कि सरकार जानबूझकर अपने विरोधियों के वोट काट रही है। सच्चाई क्या है? पता नहीं। लेकिन सवाल तो उठना ही चाहिए न?

अभी तक क्या हुआ?

कल ही की बात है – विपक्षी नेताओं का एक बड़ा ग्रुप चुनाव आयोग पहुंचा। उनका दावा? सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक तो 10 लाख वोटर गायब! और असल संख्या इससे भी ज्यादा हो सकती है। एकदम हैरान कर देने वाला। सच में।

चुनाव आयोग ने जवाब दिया है कि वे जांच करेंगे। पर विपक्ष को यह बयान कहां संतुष्ट करने वाला है? उन्हें तो पूरी प्रक्रिया पर ही शक है। और सच कहूं तो… आम आदमी का भी यही हाल है।

कौन क्या बोला?

राजद वालों ने तो सीधे-सीधे ‘षड्यंत्र’ शब्द इस्तेमाल कर दिया। उनका कहना है – “गरीबों को वोट से रोकने की साजिश!” वहीं भाजपा की प्रतिक्रिया? “बेबुनियाद आरोप!” कुछ NGOs भी अब मैदान में आ गए हैं, जो स्वतंत्र जांच की मांग कर रहे हैं।

मजे की बात यह है कि दोनों पक्ष चुनाव आयोग की निष्पक्षता की बात कर रहे हैं। एक कह रहा है आयोग सही है, दूसरा कह रहा है आयोग गलत है। तो भईया, सच क्या है?

अब आगे क्या?

सबकी नजरें अब चुनाव आयोग पर टिकी हैं। अगर विपक्ष के आरोप सही निकले तो? फिर तो बवाल होगा! कुछ एक्सपर्ट्स तो यहां तक कह रहे हैं कि इस मुद्दे पर आंदोलन भी हो सकता है।

चुनाव करीब हैं, तो अगले कुछ दिनों में कुछ भी हो सकता है। एक बात तो तय है – यह मामला सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं। पूरे देश के लोकतंत्र के लिए यह एक टेस्ट केस बन गया है। देखते हैं, चुनाव आयोग इस चुनौती को कैसे हैंडल करता है। वैसे… आपको क्या लगता है? सच किसके पक्ष में है?

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Source: Times of India – Main | Secondary News Source: Pulsivic.com

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