बिहार का अनोखा स्कूल: छाता लगाकर पढ़ाते हैं टीचर, डर के बीच चलती है क्लास!

बिहार का ये स्कूल: जहाँ टीचर छाता लगाकर पढ़ाते हैं, और बच्चे डर के साथ पढ़ते हैं!

असल में बात ये है कि बिहार के जमुई जिले के एक छोटे से गाँव में एक प्राथमिक स्कूल है जो शिक्षा व्यवस्था की पूरी कहानी बयां कर देता है। सोचिए, बारिश के दिनों में यहाँ का नज़ारा क्या होता है? क्लासरूम के अंदर टीचर छाता लगाए students को पढ़ा रहे होते हैं! और हैरानी की बात ये नहीं कि वे बाहर पढ़ा रहे हैं, बल्कि ये कि स्कूल की छत इतनी जर्जर है कि अंदर भी बारिश होती है। मजबूरी में ये तरीका अपनाना पड़ता है।

एक ऐसी हकीकत जो डरा दे

देखा जाए तो ये कोई नई समस्या नहीं है। सालों से इस स्कूल को नजरअंदाज किया जा रहा है। दीवारों में दरारें? हाँ। छत से आसमान दिखता है? बिल्कुल। और बारिश आते ही तो पूरा क्लासरूम पानी-पानी हो जाता है। कॉपियाँ भीग जाती हैं, किताबें खराब हो जाती हैं… पर सवाल ये है कि क्या ये सब ठीक है?

गाँव वाले बताते हैं कि कितनी बार शिकायतें की गईं, लेकिन नतीजा? शून्य। अब तो parents भी डरने लगे हैं। कौन अपने बच्चे को ऐसी जगह भेजना चाहेगा जहाँ छत गिरने का डर हो? बारिश के दिनों में तो स्कूल आधा खाली रहता है।

टीचर्स की जंग

लेकिन इन हालात में भी स्कूल के टीचर्स ने हिम्मत नहीं हारी। एक टीचर ने मुझे बताया, “देखिए, हमारे सामने दो ही रास्ते थे। या तो बारिश में स्कूल बंद कर दें, या फिर छाते के सहारे पढ़ाएँ। हमने बच्चों की पढ़ाई को प्राथमिकता दी।” सच कहूँ तो, ये commitment सलाम करने लायक है।

कुछ parents ने खुद ही मरम्मत शुरू की, लेकिन पैसे की कमी के चलते बड़ा कुछ नहीं हो पाया। हाल ही में मीडिया में खबर आई तो प्रशासन ने आश्वासन दिया है। पर हम सब जानते हैं न कि आश्वासन और काम में कितना फर्क होता है?

लोग क्या कह रहे हैं?

इस मुद्दे पर reactions मिले-जुले हैं। एक parent का गुस्सा साफ झलक रहा था: “सरकार को school infrastructure की कोई चिंता नहीं है क्या?” वहीं दूसरी तरफ जिला शिक्षा अधिकारी का बयान आया – “हम priority के आधार पर काम करेंगे।” अब देखना ये है कि ये priority कब तक active रहती है।

अब आगे क्या?

प्रशासन ने budget का वादा तो कर दिया है। लेकिन parents का धैर्य खत्म हो रहा है। वे कह रहे हैं कि अगर जल्दी कुछ नहीं हुआ तो nearby schools में transfer कराएँगे। शिक्षा विभाग ने अब पूरे जिले के स्कूलों का survey करने का फैसला लिया है। शायद ये घटना उनकी आँखें खोल दे।

ये सिर्फ बिहार की नहीं, पूरे देश की कहानी है। गाँवों में शिक्षा का हाल बेहाल है। सवाल तो ये है कि क्या हमारे बच्चों को छातों के नीचे पढ़ना चाहिए? और सबसे बड़ा सवाल – प्रशासन के वादे और जमीनी हकीकत के बीच का ये फासला कब तक बना रहेगा?

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बिहार का ये अनोखा स्कूल: जहाँ छातों के नीचे चलती है पढ़ाई!

1. कहाँ है ये स्कूल और क्यों है खास?

सुनकर थोड़ा अजीब लगेगा, लेकिन बिहार के एक छोटे से गाँव में ये स्कूल है जहाँ teachers और students दोनों छाते लेकर पढ़ते-पढ़ाते हैं। सच कहूँ तो स्कूल की हालत देखकर दिल दुख जाता है – छत से पानी टपकता रहता है, दीवारें जर्जर… फिर भी पढ़ाई चलती रहती है। क्या इसे जज्बा कहें या मजबूरी?

2. सरकार ने क्या किया? कुछ हुआ या नहीं?

अरे भई, सरकारी वादों की तो बात ही क्या करें! Local authorities बस ‘काम चल रहा है’ वाली रट लगाए हुए हैं। Teachers की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी जो ऐसे हालात में भी बच्चों को पढ़ा रहे हैं। पर सवाल यह है कि कब तक?

3. बारिश में तो और भी बुरा हाल होता होगा?

असल में तो ये समस्या सालभर रहती है, लेकिन बारिश के मौसम में तो मानो मुसीबत ही आ जाती है। कल्पना कीजिए – एक तरफ teacher ब्लैकबोर्ड पर पढ़ा रहा है, दूसरी तरफ उसके हाथ में छाता! कई बार तो classes रद्द करनी पड़ती हैं। और हाँ, ये कोई एक-दो दिन की बात नहीं – पूरा मॉनसून सीजन ऐसे ही गुजरता है।

4. Parents क्या कह रहे हैं इस बारे में?

Parents का गुस्सा बिल्कुल जायज है। उन्होंने कितनी बार complaints दर्ज कराईं, protests किए… पर नतीजा? शून्य। एक parent ने तो मुझे बताया – “हमारे बच्चे भी तो किसी और के बच्चों की तरह safe environment में पढ़ने के हकदार हैं न?” सच कहूँ तो इस सवाल का जवाब किसके पास है?

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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