अंधविश्वास की भयानक कीमत: भूत उतारने के नाम पर पिटाई से मौत!
क्या आपने कभी सोचा है कि अंधविश्वास कितना खतरनाक हो सकता है? कर्नाटक के शिवमोग्गा जिले में जंबरघट्टा गाँव की यह घटना सुनकर रूह काँप जाती है। एक बेबस महिला की जान चली गई… सिर्फ इसलिए कि कुछ लोगों को लगा कि उस पर ‘भूत’ सवार है! सोशल media पर वायरल हुए वीडियो में देखा जा सकता है – डंडे की वो निर्मम चोटें, वो चीखें… और फिर सन्नाटा। ये सिर्फ एक मौत नहीं, बल्कि हमारे समाज पर एक बड़ा सवाल है। क्या हम वाकई 21वीं सदी में जी रहे हैं?
मामले की पृष्ठभूमि: कैसे बना ‘भूत’ का बहाना?
कहानी वही पुरानी… परिवार को लगा महिला ‘असामान्य’ व्यवहार कर रही है। बजाय डॉक्टर के पास ले जाने के, बुला लिया गया ओझा! और फिर शुरू हुआ वो नृशंस अत्याचार – भूत उतारने के नाम पर जान ले ली गई। सच कहूँ तो, ये कोई अकेला मामला नहीं। गाँवों में आज भी ऐसी कितनी ही औरतें हैं जो ‘झाड़-फूंक’ के नाम पर प्रताड़ित होती हैं। क्या कभी इनका हिसाब रखा गया है?
वायरल वीडियो और पुलिस की कार्रवाई
अच्छा हुआ वो वीडियो वायरल हुआ! नहीं तो शायद ये केस भी दब जाता। वीडियो देखकर तो मेरा दिल ही बैठ गया – इतनी बर्बरता! पुलिस ने तुरंत केस दर्ज किया है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने साफ कर दिया – ये कोई ‘भूत’ नहीं, बल्कि डंडे के वार थे जिन्होंने जान ले ली। पर सवाल ये है कि क्या सिर्फ केस दर्ज करना काफी है? ऐसे ओझाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों नहीं होती?
समाज और प्रशासन की प्रतिक्रिया
हर बार की तरह इस बार भी वही ढाक के तीन पात… पुलिस वाले कह रहे हैं “सख्त कार्रवाई होगी”, नेता बोल रहे हैं “जागरूकता फैलानी चाहिए”। पर असल सवाल तो ये है कि कब तक? कितनी और जानें जाएँगी? मानवाधिकार वालों का कहना सही है – ये शिक्षा की कमी है। पर क्या सिर्फ स्कूल खोल देने से काम चल जाएगा? गाँवों तक वैज्ञानिक सोच पहुँचाने की जरूरत है। वरना… वरना ऐसी खबरें आती रहेंगी।
आगे की राह: सजा और सुधार
तो अब क्या? केस चलेगा, शायद कुछ लोग जेल भी जाएँ। पर क्या इससे कुछ बदलेगा? मेरा मानना है कि सरकार को ऐसे मामलों में ज़ीरो टॉलरेंस दिखानी चाहिए। NGOs को चाहिए कि गाँव-गाँव जाकर लोगों को समझाएँ। पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी तो हम सबकी है – अगली बार जब कोई ‘भूत-प्रेत’ की बात करे, तो उसे टोकें। क्योंकि अंधविश्वास की कीमत अब और नहीं चुकानी चाहिए। बस।
एक बात और – अगर आपको लगता है कि ये सिर्फ ‘गाँव की समस्या’ है, तो गलत हैं। शहरों में भी कितने ही ‘बाबा’ और ‘तांत्रिक’ फल-फूल रहे हैं। वक्त आ गया है कि हम वैज्ञानिक सोच अपनाएँ। वरना… अगली बार खबर आपके परिवार की भी हो सकती है। डरावना है न? पर सच यही है।
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अंधविश्वास और भूत-प्रेत: क्या सच में कुछ होता है, या सिर्फ हमारे दिमाग का खेल?
देखिए, ये भूत-प्रेत वाली बातें सुनने में तो रोमांचक लगती हैं, लेकिन असल ज़िंदगी में इनके चक्कर में पड़ना कितना खतरनाक हो सकता है, ये शायद हम समझते ही नहीं। आज कुछ सवालों पर बात करते हैं जो हर उस शख्स के मन में आते हैं जिसने कभी न कभी ऐसी अफवाहें सुनी होंगी।
1. “भूत उतारने” के नाम पर मारपीट – ये सिलसिला कब थमेगा?
असल में बात ये है कि हमारे समाज में एक अजीब सी धारणा बन गई है। लोग सोचते हैं कि अगर किसी पर “भूत” का साया है तो उसे पीट-पीटकर भगाया जा सकता है। सच कहूं तो ये सोच उतनी ही पुरानी है जितना कि हमारा अंधविश्वास। लेकिन सवाल ये उठता है – क्या वाकई कोई वैज्ञानिक प्रमाण है इसका? बिल्कुल नहीं! ये तो बस हमारी अज्ञानता है जो किसी की जान लेने पर आमादा हो जाती है।
2. सच बताएं – क्या सच में कोई भूत होते हैं?
ईमानदारी से? मैं तो यही कहूंगा कि भूत वो होते हैं जिन्हें हम अपने दिमाग में बना लेते हैं। विज्ञान की नज़र से देखें तो भूत-प्रेत जैसी कोई चीज़ होती ही नहीं। जो लक्षण लोग “भूत का साया” समझ बैठते हैं, वो तो कभी anxiety disorder हो सकता है, कभी schizophrenia, या फिर कोई और मानसिक समस्या। मज़ाक नहीं – ऐसे में तो डॉक्टर के पास जाना चाहिए, न कि ओझा बाबा के पास!
3. अंधविश्वास की वजह से होने वाली हिंसा – कैसे रुके ये सब?
तो समाधान क्या है? पहली बात तो education। गांव हो या शहर, लोगों को समझाना होगा कि ये सब अंधविश्वास है। दूसरा, awareness campaigns चलाने होंगे – वो भी ऐसे जो लोगों तक सही तरीके से पहुंचे। और सबसे ज़रूरी? कानून का डंडा! जहां ऐसी घटनाएं होती हैं, वहां strict legal action लेना होगा। वरना ये सिलसिला थमने वाला नहीं।
4. अगर आपके साथ या आसपास ऐसा हो तो?
सुनिए, अगर आप किसी को ऐसी स्थिति में देखें तो सबसे पहले पुलिस को inform करें। Point तो ये है कि victim को medical help मिलनी चाहिए – क्योंकि चाहे भूत हो या न हो, मारपीट तो हुई है न? और हां, mental trauma का भी ख्याल रखना ज़रूरी है। थोड़ी सी समझदारी और साहस किसी की जान बचा सकता है। सोचिएगा ज़रूर!
अंत में बस इतना – अगली बार कोई भूत-प्रेत की बात करे तो थोड़ा सा common sense ज़रूर use कर लीजिएगा। 😉
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com