BRICS मंच पर ब्राजील के राष्ट्रपति का बयान – “दुनिया को सम्राट नहीं चाहिए!”
अरे भाई, BRICS शिखर सम्मेलन का आखिरी दिन और ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा ने ऐसा बम फोड़ा कि पूरी दुनिया के कान खड़े हो गए! सीधे-सीधे कह दिया – “दुनिया को किसी राजा की जरूरत नहीं।” अब ये बयान सुनकर आप सोच रहे होंगे कि ये तो बस एक राजनीतिक बयान है, लेकिन असल में ये अमेरिकी डॉलर के खिलाफ एक तीर की तरह है। और हां, ट्रंप साहब के ताजा बयानों का जवाब भी बिल्कुल चटखारे लेकर दिया गया है।
अब थोड़ा पीछे चलते हैं। देखिए न, BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) वाले तो लंबे समय से अमेरिकी डॉलर के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे हमारे यहाँ पुराने जमाने में सामंतों के खिलाफ किसान लड़ा करते थे। पिछले कुछ सालों से ये देश मिलकर डॉलर के विकल्प ढूंढ रहे हैं – और अब ट्रंप के बयानों के बाद लूला ने साफ-साफ लाइन खींच दी है। वैसे ये कोई नई बात नहीं, लूला तो पहले भी कई बार इस मुद्दे पर बोल चुके हैं। लेकिन इस बार जोर कुछ ज्यादा ही था!
सम्मेलन में अपने भाषण के दौरान लूला ने जो कहा, वो सुनने लायक था। बिल्कुल साफ शब्दों में कहा – “डॉलर पर निर्भरता कम करो भाई!” और BRICS देशों से कहा कि अपनी-अपनी मुद्राओं में ज्यादा व्यापार करो। अब ये सिर्फ आर्थिक बात नहीं रही, बल्कि राजनीतिक गोलची भी हो गई। अमेरिका को सीधा संदेश – “हम तुम्हारे बाप नहीं!”
अब इसके बाद तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएं आईं, सुनिए। भारत ने अभी तक कुछ नहीं कहा – हमारे वाले तो हमेशा की तरह ‘वेट एंड वॉच’ पॉलिसी पर चल रहे हैं। लेकिन एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि ये BRICS की रणनीति को मजबूती देगा। रूस तो झट से खुलकर सामने आ गया – उनके विदेश मंत्रालय ने इसे “ग्लोबल इकॉनमी के लिए बढ़िया कदम” बताया। अमेरिका वाले? अभी तक चुप्पी… पर अंदर से जरूर परेशान होंगे। policy makers की नींद उड़ गई होगी!
अब आगे क्या? देखिए, इसके बाद तो BRICS देश और ज्यादा मिलकर काम करेंगे। अपनी मुद्राओं में ट्रेड बढ़ाने की कोशिशें तेज होंगी। और पश्चिमी देश? उनकी प्रतिक्रिया देखने लायक होगी। क्योंकि ये तो सीधे-सीधे डॉलर के साम्राज्य को चुनौती है। एक्सपर्ट्स की मानें तो आने वाले समय में वैश्विक अर्थव्यवस्था का पूरा नक्शा ही बदल सकता है।
तो दोस्तों, लूला का ये बयान कोई साधारण बयान नहीं है। ये BRICS की ताकत दिखाने वाला बयान है। अमेरिका को चुनौती देने वाला बयान है। और शायद इतिहास में वो मोड़ साबित होगा जब दुनिया ने डॉलर के बिना चलने की राह पकड़ी। अब देखना ये है कि अमेरिका और उसके दोस्त इसका जवाब कैसे देते हैं। एकदम मजेदार टाइम्स आने वाले हैं। सच में!
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BRICS मंच पर ब्राजील के राष्ट्रपति का बयान – और क्यों यह मायने रखता है?
BRICS क्या है? और भई, यह हमारे लिए क्यों मायने रखता है?
देखिए, BRICS कोई नया ट्रेंडिंग हैशटैग नहीं है। ये पांच देशों – Brazil, Russia, India, China और South Africa का एक ग्रुप है जो साथ मिलकर काम करते हैं। अब सवाल यह है कि क्यों? तो बात यह है कि जब Western देशों का दबदबा हो, तो developing countries की आवाज़ भी तो सुनी जानी चाहिए न? यही इसकी असली ताकत है। और हां, यह सिर्फ economy की बात नहीं है – politics से लेकर social issues तक, सब कुछ इसमें शामिल है।
“दुनिया को सम्राट नहीं चाहिए” – ये बयान क्यों दिया गया?
असल में बात यह हुई कि US के former President Donald Trump ने कुछ ऐसी-वैसी बातें कह दीं। आपको याद होगा, उन्होंने धमकी दी थी कि अगर वो फिर से President बने तो… (आप समझ ही गए होंगे)। तो ब्राजील के राष्ट्रपति ने इसका जवाब BRICS मंच से दिया। और सही दिया! उनका कहना था – भई, यह दुनिया किसी एक देश की जागीर नहीं है। Equality और cooperation की बात करो, domination की नहीं। सीधी सी बात है न?
वो कौन सी धमकी थी जिसने इतना बवाल मचा दिया?
ऐसे समझिए – Trump साहब ने कहा था कि अगर वो वापस आए तो US की policies और भी strict हो जाएंगी। मतलब, “हमारा रूल चलेगा” वाली बात। अब इसमें नया क्या है? वैसे भी तो… लेकिन ब्राजील के राष्ट्रपति ने इसे गंभीरता से लिया और साफ कह दिया कि यह दुनिया किसी एक की नहीं है। बिल्कुल सही! क्योंकि आज का युग collaboration का है, dictatorship का नहीं।
BRICS का आगे क्या? क्या यह वाकई में कुछ बदल पाएगा?
अब यहां मैं थोड़ा optimistic हूं। देखिए न, BRICS देशों की economy तेजी से बढ़ रही है। China और India तो क्या बताऊं… Russia और Brazil भी पीछे नहीं हैं। और जब economic power होगा, तो political influence तो automatically आएगा न? Western dominance के alternative के तौर पर BRICS काफी मजबूत position में आ रहा है। मेरा मानना है कि अगले 5-10 सालों में global trade से लेकर diplomacy तक, हर जगह BRICS की भूमिका बढ़ने वाली है। पर यह भी सच है कि चुनौतियां कम नहीं हैं। लेकिन उम्मीद तो है न?
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com