क्या राष्ट्रपति से बिना बताए मिलना इतना आसान है? धनखड़ केस की पूरी कहानी
21 जुलाई की रात कुछ ऐसा हुआ जिसने राष्ट्रपति भवन के सारे नियम-कायदों को हिलाकर रख दिया। सोचिए, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक राष्ट्रपति मुर्मू से मिलने पहुंच गए! ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं है भाई। security वाले तो हैरान रह गए, अफसरों के होश उड़ गए। सवाल यह है कि आखिर क्या मजबूरी थी जो इतनी बड़ी औपचारिकता को ताक पर रख दिया गया?
पूरा मामला: नियम तोड़ना या फिर जरूरी कदम?
देखिए, राष्ट्रपति भवन में तो बड़े-बड़े लोगों को भी पहले appointment लेना पड़ता है। ये सिर्फ सुरक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि राष्ट्रपति के schedule को मैनेज करने के लिए भी जरूरी है। लेकिन यहां तो उल्टी गंगा बह गई! धनखड़ साहब ने सारे नियम धरे के धरे रह गए। अब political circles में बहस छिड़ गई है – क्या सच में कोई emergency थी या फिर ये नियमों की धज्जियां उड़ाने वाली बात है?
रात का वो हंगामा: क्या हुआ था असल में?
अभी तक तो official तौर पर कुछ भी साफ नहीं हुआ है कि दोनों नेताओं के बीच क्या बातचीत हुई। कुछ sources का कहना है कि कोई बड़ा national issue था जिस पर तुरंत चर्चा जरूरी थी। पर सच क्या है? वहीं दूसरी तरफ, कुछ लोग इसे सीधे-सीधे protocol की अवहेलना बता रहे हैं। और राष्ट्रपति भवन की चुप्पी तो पूरे मामले को और भी रहस्यमय बना रही है।
हंगामा कितना बड़ा? राजनीति से लेकर ट्विटर तक!
Opposition वालों ने तो इस मौके को हाथों-हाथ ले लिया है। सरकार से जवाब मांग रहे हैं। constitutional experts भी दो गुटों में बंट गए हैं – कुछ कह रहे हैं emergency में नियम ढीले होने चाहिए, तो कुछ इसे खतरनाक मान रहे हैं। और social media पर तो मामला स्टोव बन चुका है! कुछ लोग इसे “देश के लिए अच्छा कदम” बता रहे हैं, तो कुछ की नजर में ये “सत्ता का नंगा नाच” है।
अब आगे क्या? कुछ तो होगा!
Analysts की मानें तो जल्द ही कोई न कोई clarification आने वाला है – या तो राष्ट्रपति भवन से या फिर उपराष्ट्रपति कार्यालय से। अगर मामला और उछला तो संसद में भी बहस हो सकती है। और तो और, भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए protocol में बदलाव की मांग भी उठ सकती है। कुछ तो यहां तक कह रहे हैं कि ये सरकार के अंदरूनी तनाव का संकेत है।
अंत में बस इतना कि ये घटना सिर्फ transparency की जरूरत ही नहीं दिखाती, बल्कि एक बड़ा सवाल भी खड़ा करती है – क्या नियम और जरूरत के बीच कोई middle path हो सकता है? अगले कुछ दिनों में इसके और भी राजनीतिक नतीजे देखने को मिल सकते हैं। वैसे मेरी निजी राय? थोड़ा इंतजार करना चाहिए, सच सामने आएगा ही।
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अक्सर लोगों के मन में यह सवाल आता है – क्या देश के सबसे ऊंचे पदों पर बैठे लोगों से बिना appointment के मिल पाना मुमकिन है? सच तो यह है कि यह उतना ही मुश्किल है जितना कि बिना टिकट मूवी हॉल में घुस जाना… लेकिन कुछ exceptions तो हर जगह होते ही हैं न?
1. क्या वाइस प्रेसिडेंट धनखड़ से अचानक मुलाकात हो सकती है?
सुनकर हैरान हो जाएंगे, पर हां – कभी-कभार ऐसा हो जाता है। लेकिन यह कोई आम बात नहीं। असल में देखा जाए तो 99% मामलों में official appointment लेना ही पड़ता है। पर कुछ ऐसी special परिस्थितियां… जैसे कोई emergency हो या फिर वीआईपी लोगों का case – जहां rules थोड़े flexible हो जाते हैं।
2. धनखड़ वाला केस क्या था? सच्चाई जानकर चौंक जाएंगे!
याद है वह viral हुआ मामला? कुछ students और activists अचानक वाइस प्रेसिडेंट जगदीप धनखड़ से मिलने पहुंच गए थे। बिना किसी prior information के! है न दिलचस्प? इसके बाद तो security को लेकर क्या-क्या बवाल हुआ, सोचकर ही सिहरन होती है।
3. क्या राष्ट्रपति भवन में कोई भी आ-जा सकता है?
अरे भई नहीं यार! यह कोई local market थोड़े ही है। एकदम साफ कहूं तो – बिना permission के तो छोड़िए, proper verification के बिना तो आप gate के पास भी नहीं ठहर सकते। High-security zone है यह, जहां हर कदम पर strict rules लागू होते हैं। और हां, unauthorized entry की कोशिश करेंगे तो legal trouble में फंसने का पूरा चांस है।
4. ऐसे मामलों में असली प्रक्रिया क्या होती है?
चलिए समझते हैं step-by-step:
– सबसे पहले official channels से request करनी पड़ती है
– फिर security teams background check करती हैं
– उसके बाद protocol officers verify करते हैं
– और अंत में approval या rejection का फैसला होता है
कुल मिलाकर यह पूरी प्रक्रिया उतनी ही strict है जितनी कि आप सोच रहे होंगे। लेकिन यह सब सुरक्षा के लिए जरूरी है, है न?
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com