चंपा विश्वास की चीखें: बिहार का वो काला अध्याय जो आज भी दर्द देता है
असल में देखा जाए तो बिहार की राजनीति में कुछ मामले ऐसे होते हैं जो कभी पूरी तरह दफन नहीं होते। चंपा विश्वास केस भी उन्हीं में से एक है – 90 के दशक की वो दर्दनाक कहानी जो आज भी हमारी व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है। अभी हाल में फिर से ये मामला चर्चा में आया है, और सच कहूं तो इसकी वजहें बेहद चौंकाने वाली हैं। क्या आपको नहीं लगता कि ये केस सिर्फ एक महिला की पीड़ा नहीं, बल्कि पूरे system की विफलता की कहानी है?
वो दौर जब कानून ही बेकानून हो गया था
याद कीजिए 90 का दशक। बिहार। लालू यादव का राज। और ‘जंगलराज’ शब्द जो सचमुच अपना अर्थ साबित कर रहा था। चंपा विश्वास, एक आईएएस अधिकारी की पत्नी, जिन्हें दो साल तक लगातार… हम यहां उन ब्यौरों में नहीं जाएंगे जो अब भी रोंगटे खड़े कर देते हैं। लेकिन सबसे डरावना पहलू? आरोपियों में वो लोग शामिल थे जिनके पास सत्ता का पूरा संरक्षण था। राजनीति और अपराध का वो घिनौना गठजोड़ जिसने पूरी व्यवस्था को ही पंगु बना दिया था।
अब क्यों फिर चर्चा में है ये मामला?
तो सवाल यह है कि 30 साल बाद ये केस फिर हॉट टॉपिक क्यों बन गया? दरअसल, कुछ नए सबूत सामने आए हैं। कुछ गवाहों ने फिर से बयान दिए हैं। मीडिया reports के मुताबिक, कुछ आरोपियों को तो सजा मिल गई, लेकिन है ना हैरानी की बात – कुछ बड़े नाम अभी भी फरार हैं! और तो और, कानून की खामियों का फायदा उठाकर कई लोग बच निकले। ये सब देखकर लगता है जैसे समय थम सा गया हो।
राजनीति का पुराना खेल या न्याय की नई उम्मीद?
अब जरा राजनीतिक हलचल पर नजर डालिए। विपक्ष तो मानो जैसे ‘मैंने तो कहा था’ मोड में आ गया है। वहीं महिला संगठन और human rights activists का गुस्सा देखने लायक है। पीड़िता के परिवार का तो emotional बयान आपको भी झकझोर देगा। पर सच तो ये है कि ये मामला अब सिर्फ एक criminal case नहीं रहा – ये तो एक political weapon बन चुका है। क्या आपको नहीं लगता कि असली मुद्दा कहीं पीछे छूट रहा है?
आगे क्या? कुछ सवाल जो हम सबसे पूछे जाने चाहिए
तो अब स्थिति ये है कि:
– क्या इस बार न्याय मिल पाएगा?
– क्या वाकई law and order में सुधार होगा?
– या फिर ये मामला भी वोट बैंक की राजनीति में उलझकर रह जाएगा?
ईमानदारी से कहूं तो जवाब किसी के पास नहीं। लेकिन एक बात तो तय है – चंपा विश्वास का केस अब सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि हमारी system की कमजोरियों का प्रतीक बन चुका है।
अंत में: सिर्फ एक कहानी नहीं, एक सबक
देखिए, इस पूरे मामले से एक बात तो साफ होती है – जब सत्ता और अपराध हाथ मिला लेते हैं, तो आम आदमी के लिए न्याय पाना मुश्किल नहीं, नामुमकिन हो जाता है। आज जब ये केस फिर हमारे सामने है, तो सवाल ये नहीं कि ‘तब क्या हुआ था’… सवाल ये है कि ‘अब हम क्या करने वाले हैं?’ क्योंकि अगर हम अब भी सबक नहीं सीखते, तो फिर… खैर, आप समझ ही गए होंगे।
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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com