चैटबॉट्स का डार्क साइड: क्या AI हमारी भावनाओं से खिलवाड़ कर रहा है?
भई, AI (Artificial Intelligence) ने तो हमारी जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया है। लेकिन सच कहूं तो, ये जो चैटबॉट्स हमें ‘इमोशनल सपोर्ट’ देने का दावा करते हैं, वो कई बार हमारी मानसिक सेहत के साथ रूसी रूलेट खेल रहे होते हैं। हाल के कुछ स्टडीज तो यही बता रही हैं कि ये AI दोस्त हमें भ्रमित करने के साथ-साथ आत्महत्या जैसे खतरनाक विचारों तक ले जा रहे हैं। सोचिए, जिस चीज पर हम भरोसा करते हैं, वही हमारे लिए खतरा बन जाए!
कहां से शुरू हुई ये पूरी कहानी?
देखिए, ChatGPT और Replika जैसे चैटबॉट्स ने तो जैसे थेरेपी का नकाब पहन लिया है। खासकर उन लोगों के लिए जो असली थेरेपिस्ट के पास जाने से कतराते हैं। पर सच्चाई ये है कि ये बॉट्स… अरे भई, इन्हें क्या पता हमारे दिल का दर्द? ये तो बस प्री-प्रोग्राम्ड जवाब उगल देते हैं। मजे की बात ये कि पिछले दो साल में तो ऐसे केस सामने आए हैं जहां लोगों की हालत और बिगड़ गई। क्या आप मानेंगे कि एक मशीन आपको डिप्रेशन से बाहर निकालने की बजाय और अंदर धकेल दे?
रिसर्च ने क्या खोज निकाला?
The Washington Post की एक रिपोर्ट तो चौंका देने वाली है। पता चला कि ये चैटबॉट्स हर किसी को एक ही तरह के जनरलाइज्ड जवाब देते हैं – जैसे कोई रटा-रटाया पाठ। और तो और, कुछ मामलों में तो इनकी बातें सुनकर लोगों में आत्महत्या के विचार तक बढ़ गए! सोचिए, आप अपनी परेशानी बता रहे हैं और जवाब में मिल रहा है कोई कॉपी-पेस्ट वाला उत्तर। बिल्कुल वैसे ही जैसे किसी गमगीन इंसान को ‘चिंता न करो’ कह देना।
एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?
मनोचिकित्सकों की राय बिल्कुल स्पष्ट है – ये चैटबॉट्स किसी भी हालत में असली थेरेपी की जगह नहीं ले सकते। पर समस्या ये है कि जब आपके पास कोई सस्ता विकल्प हो तो… है न? टेक कंपनियों को तुरंत इन बॉट्स को और सेंसिटिव बनाने की जरूरत है। वरना स्थिति और भी बिगड़ सकती है।
आगे का रास्ता क्या है?
असल में, इसका समाधान दो तरफा है। एक तरफ तो टेक कंपनियों को इन बॉट्स को और स्मार्ट बनाना होगा। दूसरी तरफ, हमें भी ये समझना होगा कि AI अभी इंसानी दिल की गहराइयों तक नहीं पहुंच पाया है। कुछ मानसिक स्वास्थ्य संगठन तो अब जागरूकता अभियान चला रहे हैं। शायद यही सही रास्ता है – टेक्नोलॉजी और ह्यूमन टच का सही मिश्रण।
अंत में बस इतना – AI भले ही कितना भी स्मार्ट हो जाए, पर इंसानी दिल की धड़कन को समझना अभी उसके बस की बात नहीं। तब तक… थोड़ा सावधान रहना ही बेहतर है, है न?
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AI Chatbots का ये बढ़ता क्रेज देखकर मन में एक सवाल ज़रूर आता है – क्या हम Technology पर ज़्यादा निर्भर होते जा रहे हैं? सच कहूँ तो, ये ट्रेंड थोड़ा डरावना लगता है, खासकर तब जब Mental Health जैसे नाज़ुक मुद्दे पर इसका असर दिखने लगे।
हाल ही में कुछ Researchers ने चेतावनी दी है – और सुनने लायक बात है। Technology का इस्तेमाल तो ठीक है, लेकिन बिना सोचे-समझे? बिल्कुल नहीं। AI से बात करते वक्त थोड़ा Alert रहना ही समझदारी है।
एक तरफ तो ये Chatbots हमारी मदद करते हैं… पर दूसरी तरफ? ईमानदारी से कहूं तो, Mental Health से खिलवाड़ करने का जोखिम भी तो है। #सावधानी की ज़रूरत तो है ही – आखिरकार, आपकी सेहत से बढ़कर कुछ नहीं, है न?
क्या आपने कभी गौर किया है कि ज़्यादा देर तक AI से बात करने के बाद आपको अजीब सा महसूस होता है? मुझे तो लगता है ये सिर्फ मेरी ही Feeling नहीं है…
AI चैटबॉट्स के खतरों पर एक सच्ची बातचीत: जानें वो सब जो आपको पता होना चाहिए
1. क्या AI चैटबॉट्स हमें गलत रास्ते पर ले जा सकते हैं?
देखिए, यहां बात समझने वाली है। AI चैटबॉट्स तो बड़े चालाकी से इंसानों जैसी बातें कर लेते हैं, लेकिन क्या आपने कभी नोटिस किया? इनकी जानकारी कई बार वैसी ही होती है जैसे आधा पका हुआ ऑमलेट – देखने में तो ठीक लगे, लेकिन खाओगे तो पेट खराब! मेरा मतलब, ये कभी-कभी गलत या अधूरी जानकारी दे देते हैं। और हां, users तो confuse हो ही जाते हैं। सच कहूं तो इन bots का जवाब सुनकर लगता है जैसे कोई PhD होल्डर बात कर रहा हो, पर reality? उतनी reliable नहीं होती।
2. क्या सच में AI चैटबॉट्स डिप्रेशन को बढ़ावा दे सकते हैं?
अरे भई, यह सवाल तो गंभीर है। मैंने पिछले दिनों एक research पेपर पढ़ा था – हैरान कर देने वाली बातें थीं। कुछ cases में तो ये chatbots sensitive मुद्दों पर ऐसे respond करते हैं जैसे कोई बिना ट्रेनिंग का काउंसलर हो। सोचिए, जो लोग पहले से ही depression या anxiety से जूझ रहे हैं, उन पर इसका क्या असर पड़ेगा? हालांकि, सभी chatbots ऐसे नहीं होते। पर… एक बात तो तय है – थोड़ा caution तो बनता ही है।
3. इन AI चैटबॉट्स के नुकसान से बचने का कोई तरीका?
तो अब सवाल यह उठता है कि हम अपनी सुरक्षा कैसे करें? सबसे पहले तो ये – AI chatbots पर पूरी तरह depend करना वैसा ही है जैसे कच्चे धागे से बने पुल पर चलना। Serious topics के लिए professional help लेना ही समझदारी है। और हां, chatbot की दी गई information को हमेशा verify करें – गूगल बाबा से पूछ लें कम से कम! Parents और guardians के लिए तो मेरा सीधा सा मैसेज है – बच्चों की online activity पर नज़र रखिए। आखिरकार, सावधानी ही सुरक्षा है न?
4. क्या सच में सभी AI चैटबॉट्स खतरनाक हैं?
नहीं यार, ऐसा बिल्कुल नहीं है! यहां black और white वाली बात नहीं है। कई platforms ने तो बढ़िया safety measures लागू किए हैं – जैसे harmful content को filter करना। पर… एक बात बताऊं? किसी भी chatbot के responses को blind trust देना वैसा ही है जैसे किसी अंजान शख्स को अपना ATM पिन बता देना। थोड़ा तो aware रहना पड़ेगा, है न? बस इतना ही।
Source: NY Post – US News | Secondary News Source: Pulsivic.com