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चीन का ब्रह्मपुत्र नदी पर मेगा डैम: भारत के लिए बड़ा खतरा या ड्रैगन की साजिश?

चीन का ब्रह्मपुत्र पर मेगा डैम: क्या यह सच में एक ‘वॉटर वॉर’ की शुरुआत है?

देखिए, चीन ने फिर से एक ऐसा कदम उठाया है जिसने पूरे दक्षिण एशिया को चौंका दिया है। हिमालय की गोद में बहने वाली ब्रह्मपुत्र (जिसे तिब्बत में यारलुंग त्संगपो कहते हैं) पर अब एक विशालकाय बांध बनाने की तैयारी चल रही है। और हैरानी की बात ये कि यह प्रोजेक्ट भारत-चीन बॉर्डर से महज कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर है! अब सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ एक बिजली परियोजना है या फिर पानी को strategic weapon बनाने की एक सोची-समझी रणनीति? मेरा मानना है कि यह मामला सामान्य इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट से कहीं आगे की बात है।

ब्रह्मपुत्र: सिर्फ एक नदी नहीं, जीवनरेखा

असल में बात समझने वाली ये है कि ब्रह्मपुत्र कोई आम नदी नहीं है। तिब्बत से निकलकर अरुणाचल और असम होते हुए बांग्लादेश तक पहुँचने वाली ये नदी करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी से जुड़ी है। सच कहूँ तो, असम का माजुली द्वीप हो या बांग्लादेश के मछुआरे – सभी की जिंदगी इसी नदी पर टिकी है। चीन पहले से ही कई छोटे hydropower projects बना चुका है, लेकिन ये नया मेगा डैम… ये तो गेम चेंजर साबित हो सकता है। और सबसे डरावनी बात? यह हमारे पहले से चल रहे सीमा विवादों को और भी उलझा सकता है।

क्या हो रहा है अभी?

तो स्थिति ये है कि चीन ने construction work शुरू कर दिया है। भारत सरकार ने EIA रिपोर्ट माँगी है, पर चीन का रवैया वैसा ही है – ‘हमें किसी से पूछने की ज़रूरत नहीं’। बांग्लादेश भी UN में मामला उठाने की तैयारी में है। पर्यावरणविदों की चिंता तो और भी गंभीर है – कह रहे हैं कि ये बांध हिमालय में भूकंप का खतरा बढ़ा सकता है। सोचिए, अगर ऊपर से बाढ़ आई तो असम और बांग्लादेश का क्या होगा?

राजनीति और जनता की प्रतिक्रिया

दिलचस्प बात ये है कि दोनों तरफ के दावे एकदम उलट हैं। भारत का कहना है कि हम hydro-diplomacy से मामला सुलझाएँगे, वहीं चीन का दावा है कि यह पूरी तरह environment-friendly प्रोजेक्ट है। लेकिन सच्चाई? असम और अरुणाचल के लोग सड़कों पर उतर आए हैं। उनका डर समझा जा सकता है – नदी का पानी अगर कम हुआ तो खेती-बाड़ी से लेकर मछली पालन तक सब चौपट हो जाएगा। और हाँ, विपक्ष तो सरकार पर ‘चीनपरस्त’ होने का आरोप लगा ही रहा है!

आगे की राह: क्या विकल्प हैं?

अब सवाल यह कि हम क्या कर सकते हैं? मेरी नज़र में तीन रास्ते हैं:
1. BRICS या UN जैसे प्लेटफॉर्म्स पर मुद्दा उठाना
2. नए water sharing agreements पर बातचीत शुरू करना
3. हमें अपना water management infrastructure मजबूत करना होगा

एक बात तो तय है – अब यह सिर्फ पर्यावरण का मुद्दा नहीं रहा। जब पानी पर नियंत्रण की बात आती है, तो यह सीधे-सीधे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ जाता है। और चीन को यह समझना होगा कि नदियाँ international borders नहीं मानतीं!

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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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