सऊदी अरब पर चीन का दबाव! अमेरिका की नींद उड़ी, भारत-पाक के बीच क्या होगा?
अरे भाई, चीन ने तो मध्य पूर्व में बड़ा चाल चल दिया है! सऊदी अरब को लेकर उसकी नई रणनीति ने अमेरिका को परेशान कर दिया है। असल में बात ये है कि चीन ने सऊदी को ऑफर दिया है – अमेरिकी हथियारों से सस्ते, बिना किसी सवाल-जवाब वाले हथियार। और ये तो आप जानते ही हैं ना कि सऊदी अमेरिका का पुराना दोस्त रहा है? तो अब सवाल यह है कि क्या सऊदी इस ऑफर को मानेगा? सच कहूं तो ये सिर्फ हथियारों की बात नहीं, बल्कि भारत-पाकिस्तान के बीच के उस पुराने खेल से भी जुड़ा हुआ है।
अमेरिका का पुराना दोस्त अब दूर जा रहा है?
देखिए, सऊदी अरब तो वर्षों से अमेरिका का बेस्ट कस्टमर रहा है – तेल के साथ-साथ हथियारों का भी। लेकिन पिछले कुछ सालों से वो अपनी दोस्ती में थोड़ा विविधता लाना चाहता है। ठीक वैसे ही जैसे हम एक ही दुकान से सारा सामान नहीं खरीदते। चीन इस मौके का फायदा उठा रहा है। और सच तो ये है कि चीन पहले से ही पाकिस्तान और ईरान के साथ गले तक जुड़ा हुआ है। कश्मीर मुद्दे पर तो चीन का पाकिस्तान-पक्षपात तो जगजाहिर है ना? तो अब आप समझ सकते हैं कि ये डील भारत के लिए क्यों चिंता का विषय बन सकती है।
चीन का जादुई ऑफर: सस्ता, बिना शर्त, और… खतरनाक?
चीन का प्रस्ताव कुछ ऐसा है – ड्रोन, मिसाइल डिफेंस सिस्टम, और भी न जाने क्या-क्या… सब अमेरिकी प्रोडक्ट्स से सस्ते। और सबसे बड़ी बात? कोई झंझट नहीं। न मानवाधिकार का सवाल, न लोकतंत्र का ढोंग। अमेरिका तो हर हथियार बेचते समय नैतिकता का पाठ पढ़ाता है, पर चीन का सिद्धांत साफ है – “पैसा दो, सामान लो”। एक तरफ तो ये सऊदी के लिए फायदे का सौदा है, पर दूसरी तरफ अमेरिका की नींद उड़ गई है। और हां, इसका असर भारत-पाक के बीच के उस पुराने संतुलन पर भी पड़ सकता है। आखिर पाकिस्तान तो चीन का पक्का दोस्त है ना?
दुनिया क्या कह रही है? सबके अपने-अपने मतलब!
अमेरिका: “हम सऊदी के साथ रिश्ते मजबूत रखना चाहते हैं…” ये कहकर अमेरिका ने सऊदी को याद दिलाया है कि उनके हथियारों की क्वालिटी और सर्विस चीन से कहीं बेहतर है। पर सच कहूं? ये बात तो वो तब कह रहे हैं जब उनका मोनोपॉली खतरे में है।
सऊदी अरब: वो बस इतना कह रहे हैं कि “हम सबके साथ दोस्ती रखना चाहते हैं”। राजनीति की भाषा में इसका मतलब है – हम अमेरिका को नाराज नहीं करना चाहते, पर चीन का ऑफर भी आकर्षक है।
भारत: अभी तक चुप्पी। पर अंदर से सूत्र बता रहे हैं कि भारत अमेरिका और सऊदी से बात कर सकता है। असल चिंता? कहीं पाकिस्तान को इसका फायदा न मिल जाए।
चीन: उनका राग अलापना वही पुराना है – “हम किसी के मामले में दखल नहीं देते”। पर सच्चाई? चीन की महत्वाकांक्षाएं तो अब पूरी दुनिया में फैल रही हैं।
अंत में बस इतना कि ये सिर्फ हथियारों का सौदा नहीं, बल्कि एक बड़ा भू-राजनीतिक खेल है। और हम भारतीयों के लिए ये देखना दिलचस्प होगा कि आखिर सऊदी किसके साथ जाता है। क्योंकि इसका असर सीधे हमारे यहां तक आएगा – खासकर पाकिस्तान के संदर्भ में। समय बताएगा… पर इतना तो तय है कि चीन ने अपना दांव खेल दिया है!
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1. चीन सऊदी अरब को क्यों घेर रहा है? और अमेरिका की नींद उड़ी क्यों हुई?
देखिए, चीन ने पिछले कुछ सालों में सऊदी के साथ oil deals से लेकर हथियारों तक की खरीद-फरोख्त बढ़ा दी है। अब सवाल यह है कि अमेरिका इतना परेशान क्यों है? असल में, Middle East में पेट्रोडॉलर का खेल हमेशा से अमेरिका के हाथ में रहा है। लेकिन अब चीन ने यहां अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं – और यही बात वाशिंगटन को चुभ रही है। सोचिए, अगर oil ट्रेड में युआन का दबदबा बढ़ गया तो?
2. भारत-पाकिस्तान की लड़ाई से इसका क्या लेना-देना?
यहां तो मामला और भी दिलचस्प हो जाता है। आप जानते ही हैं कि चीन और पाकिस्तान एक-दूसरे के ‘ढाई-आखर’ हैं। CPEC जैसा प्रोजेक्ट तो बस शुरुआत है। अब अगर चीन सऊदी पर भी कंट्रोल पा लेता है, तो भारत के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। क्यों? क्योंकि फिर पाकिस्तान को मिलेगा दोहरा समर्थन – एक तरफ चीन का आर्थिक बल, दूसरी तरफ Middle East से धार्मिक-राजनीतिक बैकअप।
3. क्या भारत के लिए यह सच में खतरा है?
ईमानदारी से कहूं तो हां, पर पूरी तरह से नहीं। देखा जाए तो भारत ने भी अपने चालें चल रखी हैं। Israel के साथ रक्षा सौदे, UAE के साथ व्यापार समझौते – ये सब इसी खेल का हिस्सा हैं। हालांकि, एक चिंता की बात जरूर है। अगर चीन ने Middle East में अपनी पकड़ मजबूत कर ली, तो हमारे oil imports पर भी असर पड़ सकता है। और यह तो आप समझते ही होंगे कि तेल के दाम हमारी अर्थव्यवस्था के लिए क्या मायने रखते हैं!
4. अमेरिका इस पूरे खेल में कहां खड़ा है?
अरे भई, अमेरिका तो इस मैच में कप्तान की तरह खेल रहा है! वह एक तरफ तो सऊदी को अपने साथ रखने की कोशिश कर रहा है, दूसरी तरफ भारत को भी सपोर्ट दे रहा है। क्यों? क्योंकि वह जानता है कि Asia में बैलेंस ऑफ पावर बनाए रखने के लिए भारत ही चीन को टक्कर दे सकता है। पर सच कहूं तो, यह सब देखकर लगता है जैसे नया Cold War शुरू हो रहा है – बस इस बार मैदान Middle East का है।
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