चीन की ‘यूरिया-रेयर अर्थ मेटल’ खुन्नस का राज: क्या भारत की तेज ग्रोथ से डर गया ड्रैगन?

चीन का ‘यूरिया-रेयर अर्थ मेटल’ वाला गेम: क्या सच में भारत की तेज़ रफ्तार से घबरा गया ड्रैगन?

अरे भाई, चीन ने तो हाल ही में एक ऐसा चाल चला है जिसने पूरी दुनिया के अर्थशास्त्रियों की नींद उड़ा दी! बात क्या है? बीजिंग ने अचानक ‘यूरिया-रेयर अर्थ मेटल्स’ (वो rare धातुएं जिन पर पूरी मॉडर्न टेक्नोलॉजी टिकी है) के निर्यात पर रोक लगाने का ऐलान कर दिया। और सच कहूं तो, ये कोई आम व्यापारिक फैसला नहीं लग रहा। देखा जाए तो ये तो सीधे भारत की तरफ निशाना साधता हुआ कदम है। खासकर तब, जब हमारा देश दुनिया की सबसे तेज ग्रोथ रेट वाली इकोनॉमी बन चुका है। सवाल यह है – क्या चीन को हमारी जवान आबादी और बढ़ती इकोनॉमिक ताकत से डर लगने लगा है? चलो, इसकी पूरी कहानी समझते हैं।

पूरा माजरा क्या है? चीन की बूढ़ी होती जनसंख्या vs भारत का युवा जोश

यार, ये सिर्फ कुछ धातुओं का मामला नहीं है। असल में तो ये चीन और भारत की पूरी इकोनॉमिक स्टोरी का अंतर है। एक तरफ चीन की वर्किंग पॉपुलेशन बूढ़ी हो रही है – जैसे कोई बैटरी धीरे-धीरे डिस्चार्ज हो रही हो। वहीं हमारे यहां? 65% लोग 35 साल से कम उम्र के! ये डेमोग्राफिक डिविडेंड हमें लंबे समय तक ग्रोथ का फायदा देगा। और चीन? उसकी ग्रोथ रेट पिछले कुछ सालों से लगातार सुस्त पड़ रही है। अब समझ आया ना पूरा खेल?

अब बात करें इन यूरिया-रेयर अर्थ मेटल्स की। ये कोई मामूली चीज़ नहीं हैं भाई! इलेक्ट्रिक कारों से लेकर सैन्य उपकरणों तक, हाई-टेक इंडस्ट्री से लेकर रिन्यूएबल एनर्जी तक – हर जगह इनकी जरूरत पड़ती है। और हैरानी की बात ये कि चीन दुनिया का 90% उत्पादन कंट्रोल करता है। यानी उसके हाथ में एक तरह का ‘टेक्नोलॉजी का तिलिस्म’ है।

ताजा अपडेट: चीन की चाल और भारत का जवाब

पिछले कुछ हफ्तों में क्या-क्या हुआ? चीन ने अचानक इन धातुओं के निर्यात के लाइसेंसिंग प्रोसेस को इतना कठिन बना दिया कि ये प्रैक्टिकली एक बैन ही हो गया। हमारी सरकार ने इसे सीधे ‘इकोनॉमिक वॉर’ बताया है। और हमने भी बैठे नहीं हैं – अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों के साथ नए डील्स पर बातचीत शुरू कर दी है।

इंडस्ट्री की प्रतिक्रिया क्या है? CII का कहना है कि “हां, ये चैलेंज तो है, लेकिन हम लोकल प्रोडक्शन बढ़ाकर इससे निपट सकते हैं।” वहीं डिफेंस एक्सपर्ट्स की राय है कि “चीन सीधे हमारे डिफेंस और टेक सेक्टर को टारगेट कर रहा है।” और चीन का बहाना? वो कहते हैं ये तो अपने घरेलू इंडस्ट्री को प्रोटेक्ट करने का फैसला है। हां जी, ठीक वैसे ही जैसे कोई कहे कि मैं तो बस हवा खाने निकला था!

आगे क्या होगा? ग्लोबल सप्लाई चेन पर भूचाल?

अब ये सब होगा क्या? शॉर्ट टर्म में तो हमें अफ्रीका और साउथ अमेरिका जैसी जगहों से नए सप्लायर ढूंढने होंगे। और लॉन्ग टर्म? PLI स्कीम के तहत खुद का प्रोडक्शन बढ़ाना होगा।

पर असल खतरा तो ग्लोबल सप्लाई चेन को है। अगर चीन-भारत टेंशन बढ़ा तो इलेक्ट्रॉनिक्स और ग्रीन एनर्जी सेक्टर को बड़ा झटका लग सकता है। कल्पना करो – जिन कंपनियों को ये मेटल्स चाहिए, उन्हें अपनी पूरी manufacturing प्रक्रिया ही बदलनी पड़ सकती है। एकदम बवाल!

आखिरी बात: मुसीबत या मौका?

सच तो ये है कि चीन का ये कदम भारत को कमजोर करने की प्लानिंग लगती है। पर याद रखो, हमने ऐसे ही मौकों को अवसर में बदलने का हुनर दिखाया है। आज हमारे पास विकल्प हैं – नए इंटरनेशनल पार्टनरशिप से लेकर खुद का प्रोडक्शन बढ़ाने तक। शायद ये हमारे लिए एक wake-up call है – जो हमें टेक्नोलॉजी और manufacturing में आत्मनिर्भर बनने की राह पर और तेजी से धकेल दे। कहते हैं ना, नेसेसिटी इज द मदर ऑफ इनोवेशन!

यह भी पढ़ें:

चीन की ‘यूरिया-रेयर अर्थ मेटल’ वाली चाल और भारत – असली सवाल क्या हैं?

1. चीन ने अचानक यूरिया-रेयर अर्थ मेटल्स पर बैन क्यों लगा दिया?

देखिए, चीन का यह मूव कोई नई बात नहीं है। असल में, यूरिया-रेयर अर्थ मेटल्स (rare earth metals) तो आजकल हर हाई-टेक चीज़ की जान हैं – चाहे वो स्मार्टफोन हों, मिसाइल टेक्नोलॉजी हो या फिर इलेक्ट्रिक कारें। और चीन? वो तो इसमें दुनिया का बादशाह है! तो सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ़ इकोनॉमिक मूव है या फिर कोई गहरी स्ट्रैटेजी? मेरे ख़्याल से तो चीन अपनी ताकत का इस्तेमाल करके दूसरे देशों को अपने इशारों पर नचाना चाहता है। बिल्कुल वैसे ही जैसे कोई बच्चा अपने खिलौने दूसरों से छुपा लेता है।

2. क्या सच में भारत की ग्रोथ से चीन घबरा गया है?

अरे भाई, सच कहूँ तो हमारी ग्रोथ तो अब धीरे-धीरे दमदार हो रही है! मैन्युफैक्चरिंग से लेकर टेक्नोलॉजी तक – हर जगह भारत की धमक सुनाई दे रही है। और चीन? वो तो इस बात से परेशान है कि अगर भारत ने यूरिया-रेयर मेटल्स में आत्मनिर्भरता हासिल कर ली, तो उसका ‘बॉस’ वाला अंदाज़ खत्म हो जाएगा। पर सच तो यह है कि चीन को डर है हमारी बढ़ती ताकत से। और होना भी चाहिए, है न?

3. भारत के पास क्या सच में यूरिया-रेयर मेटल्स हैं?

हाँ हैं, लेकिन… यहाँ एक बड़ा ‘लेकिन’ है! तमिलनाडु, ओडिशा, झारखंड – इन राज्यों में हमारे पास कुछ रिजर्व ज़रूर हैं। पर चीन के मुकाबले? वहाँ तो ये मेटल्स नदियों की तरह बहते हैं! मज़ाक नहीं कर रहा। हमें इन मेटल्स को निकालने और प्रोसेस करने के लिए भारी निवेश की ज़रूरत है। वैसे, एक अच्छी खबर यह है कि हमारे यहाँ इनकी खोज अभी जारी है।

4. भारत इस गेम में कैसे जीतेगा?

तो अब सवाल यह उठता है कि हम चीन की इस चाल का क्या जवाब दें? सबसे पहले तो हमें ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे दोस्त देशों के साथ मिलकर काम करना होगा। दूसरा, हमें अपने यहाँ माइनिंग टेक्नोलॉजी में भारी निवेश करना होगा। और सबसे ज़रूरी? रिसर्च एंड डेवलपमेंट! वैसे, मेरा मानना है कि यह चुनौती हमारे लिए एक मौका भी है – खुद को साबित करने का। जैसे कोच्चि का वह छोटा सा बच्चा जो स्कूल में हमेशा दूसरे नंबर पर आता था, लेकिन आज बड़ा बिज़नेसमैन बन गया। कुछ वैसा ही!

एक बात और – यह सिर्फ़ मेटल्स की लड़ाई नहीं है। यह तो हमारे भविष्य की लड़ाई है। सोचिए, अगर हम यह जंग जीत गए, तो? कल्पना कीजिए!

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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