चीन vs भारत: क्रिटिकल मिनरल्स से लेकर डिफेंस तक… ड्रैगन हमें रोक पाएगा क्या?
सच कहूं तो आज भारत की ग्रोथ स्टोरी किसी बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर से कम नहीं! दुनिया की टॉप-3 इकोनॉमी बनने की रेस में हम अच्छी स्पीड से दौड़ रहे हैं। लेकिन यहां एक मजेदार सवाल उठता है – क्या चीन हमें आगे बढ़ने से रोक पाएगा? देखिए, ड्रैगन ने क्रिटिकल मिनरल्स और डिफेंस टेक्नोलॉजी जैसे फील्ड्स में हमारे ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सपने को थोड़ा टेढ़ा करने की कोशिश की है। और यह टकराव अब सिर्फ दो देशों का मसला नहीं रहा – पूरी दुनिया की इकोनॉमी इससे प्रभावित हो सकती है।
पूरा माजरा क्या है? दो एशियाई जायंट्स की कहानी
पिछले 10 सालों में भारत और चीन की होड़ किसी क्रिकेट मैच के सुपर ओवर जैसी हो गई है। चीन ने अफ्रीका और साउथ अमेरिका में लिथियम, कोबाल्ट जैसे क्रिटिकल मिनरल्स पर कब्जा जमा लिया है। ये वो चीजें हैं जिनके बिना आजकल की टेक्नोलॉजी, रिन्यूएबल एनर्जी या फिर डिफेंस इंडस्ट्री चल ही नहीं सकती। वहीं दूसरी तरफ, हमारी सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे स्लोगन्स के साथ नए रास्ते तलाशने शुरू कर दिए हैं। और यहीं से दोनों देशों की राहें आपस में टकराने लगी हैं।
असली युद्ध तो यहाँ हो रहा है: मिनरल्स और डिफेंस टेक
हाल में भारत ने ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना और चिली जैसे देशों के साथ कुछ जबरदस्त डील्स की हैं। मकसद साफ है – चीन पर निर्भरता कम करना। लिथियम और कोबाल्ट जैसी चीजों की सीधी सप्लाई चाहिए ना! साथ ही, सेमीकंडक्टर और ड्रोन टेक्नोलॉजी में हमने बड़े-बड़े इन्वेस्टमेंट किए हैं। और चीन को यह बिल्कुल पसंद नहीं आया। उन्होंने इंटरनेशनल फोरम्स पर हमारी डिफेंस डील्स को ब्लॉक करने की पूरी कोशिश की। लेकिन क्या यह सब करके वो हमें रोक पाएंगे?
एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं? जानिए असली सच
हमारे देश के विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की ये चालें भारत की ग्रोथ को रोक नहीं पाएंगी। जैसे कि एक डिफेंस एनालिस्ट ने मुझे बताया – “हम नए रास्ते ढूंढ रहे हैं। अमेरिका, EU जैसे पार्टनर्स के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।” वहीं चाइनी मीडिया तो हमें लेकर बड़े मजेदार कमेंट्स कर रहा है – कहते हैं हम “वेस्टर्न देशों पर डिपेंडेंट हैं, जो लंबे समय तक चलने वाला मॉडल नहीं है।” इंटरनेशनल लेवल पर भी लोगों को चिंता है कि यह प्रतिस्पर्धा ग्लोबल सप्लाई चेन को प्रभावित कर सकती है, खासकर टेक और डिफेंस सेक्टर में।
आगे क्या? भविष्य की रणनीति
अब अगर फ्यूचर की बात करें तो भारत का प्लान क्लियर है – अमेरिका और EU जैसे दोस्तों के साथ मिलकर चीन के डोमिनेंस को कम करना। वहीं ड्रैगन भी बैठा नहीं रहेगा – वो इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन्स के जरिए हमारी डील्स को चुनौती देता रहेगा। अगर हम अपनी मिनरल और टेक्नोलॉजी सप्लाई चेन को मजबूत करने में कामयाब हो गए, तो न सिर्फ आत्मनिर्भर बनेंगे बल्कि चीन के लिए सच्ची टेंशन भी बन जाएंगे। यह लड़ाई अब बॉर्डर्स से बाहर निकल चुकी है, और इसका असर पूरी दुनिया देखेगी। सच कहूं तो… एकदम धमाल होने वाला है!
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चीन का दबाव बढ़ रहा है, यह तो सच है। क्रिटिकल मिनरल्स से लेकर डिफेंस सेक्टर तक – ड्रैगन अपनी चाल चल रहा है। लेकिन भारत भी पीछे नहीं है, दोस्तों! हमने अपनी innovation को बढ़ावा देने और strategic partnerships को मजबूत करने में काफी प्रगति की है। मानो या न मानो, यह हमारे लिए एक तरह का वॉर-रूम तैयार करने जैसा है।
अब सवाल यह है कि क्या हम आगे बढ़ पाएंगे? देखिए, अगर हम अपनी technological self-reliance पर काम करते रहे और डिफेंस capabilities को बेहतर बनाते रहे, तो चीन की बाधाओं को पार करना कोई बहुत बड़ी बात नहीं। हालांकि, यह आसान भी नहीं होगा। ईमानदारी से कहूं तो यह संघर्ष सिर्फ हमारी resilience की ही नहीं, बल्कि global stage पर हमारी positioning की भी परीक्षा है। और मुझे लगता है, हम इसके लिए तैयार हैं। कम से कम कोशिश तो पूरी हो रही है!
एक बात और – यह सब कुछ overnight नहीं होगा। पर धीरे-धीरे, कदम दर कदम… शायद हम वहां पहुंच जाएं। क्या आपको नहीं लगता?
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com