कांग्रेस का OBC सम्मेलन: इंदिरा और राजीव के ज़माने में कितने OBC सांसद थे? असलियत जानकर चौंक जाएंगे!
भई, कांग्रेस का ये नया OBC वाला नाटक… मतलब सम्मेलन… ने तो फिर से राजनीति में हलचल मचा दी है। बात-बात पर OBC समुदाय के लिए प्रतिबद्धता दिखाने की बात करते हैं, लेकिन सच क्या है? असल में देखा जाए तो इंदिरा जी और राजीव गांधी के समय में कांग्रेस ने OBC नेताओं को कितनी जगह दी, ये सवाल अब मुंह बाए खड़ा है। और आंकड़े तो कुछ और ही कहानी बयां करते हैं – जो आज कांग्रेस के दावों से बिल्कुल मेल नहीं खाती।
पहले समझिए पूरा कॉन्टेक्स्ट
1980-90 का दशक OBC राजनीति का गोल्डन एरा माना जाता है – खासकर मंडल कमीशन के बाद। लेकिन उससे पहले? हालात बिल्कुल अलग थे। कांग्रेस तब ‘सबका साथ, सबका विकास’ वाली लाइन चलाती थी – मतलब जाति के नाम पर खुलकर बात नहीं होती थी। और सबसे बड़ी दिक्कत? उस ज़माने में OBC का कोई official डेटा ही नहीं था! तो गिनती कैसे होती? यही वजह है कि आज जब कांग्रेस OBC कार्ड खेल रही है, तो लोग पुराने रिकॉर्ड्स उछाल रहे हैं। समझ गए ना माजरा?
इंदिरा-राजीव युग: OBC नेताओं को कितनी जगह मिली?
अब जरा नंबर्स पर नजर डालते हैं। इंदिरा गांधी के समय (1966-77 और 1980-84) में लोकसभा में OBC सांसदों की संख्या 10-15% से ज्यादा नहीं थी। और ये तब जब देश की आबादी का बड़ा हिस्सा OBC था! राजीव गांधी के दौर (1984-89) में भी कोई खास सुधार नहीं हुआ। सच कहूं तो कांग्रेस उस वक्त regional parties के मुकाबले OBC नेताओं को टिकट देने में काफी पीछे थी। है ना मजेदार बात? आज जो OBC लीडरशिप की बात कर रहे हैं, वो तब कहां थी?
राजनीतिक रिएक्शन: कौन क्या बोला?
अब सुनिए मजा। कांग्रेस वाले कह रहे हैं – “हम तो हमेशा से OBC के वेल-विशर रहे हैं, लेकिन डेटा नहीं था।” भाजपा वालों ने तो जमकर फायर किया – “दशकों तक अनदेखा किया, अब चुनाव देखकर याद आया?” कई OBC नेता भी कह रहे हैं कि कांग्रेस को अपने पुराने रिकॉर्ड पर शर्म आनी चाहिए। पर सवाल ये है कि क्या ये सब सिर्फ बयानबाजी है या कुछ ठोस होगा?
भविष्य पर क्या असर पड़ेगा?
ये बहस सिर्फ इतिहास तक सीमित नहीं है। तीन बड़े इम्पैक्ट हो सकते हैं:
1. क्या कांग्रेस को इससे वोट मिल पाएंगे? शक की नजर से देख रहा हूं।
2. जाति आधारित census की मांग फिर तेज होगी – ये तो तय है।
3. अब हर पार्टी OBC वोट के लिए नए-नए ऑफर लाएगी। देखते हैं कौन क्या लाता है!
आखिर में इतना ही – ये बहस सिर्फ आंकड़ों की नहीं, OBC समुदाय की बढ़ती ताकत की है। कांग्रेस अगर सच में बदलाव चाहती है तो सिर्फ सम्मेलन करके नहीं बचेगी। ठोस कदम चाहिए। और हां… ये बहस अभी और गरम होने वाली है। क्या आप तैयार हैं?
कांग्रेस OBC सम्मेलन और गांधी परिवार: कुछ सवाल, कुछ जवाब, और थोड़ी सी पोलिटिक्स!
1. इंदिरा गांधी के दौर में OBC सांसदों की हालत क्या थी? सच बताऊं?
देखिए, 60-70 के दशक की बात है – उस ज़माने में OBC मुद्दे को लेकर वैसी चर्चा ही नहीं थी। इंदिरा जी के कार्यकाल (1966-77 और फिर 1980-84) में संसद में OBC सांसदों की संख्या… ईमानदारी से कहूं तो बहुत ही कम। आंकड़ों पर नज़र डालें तो शायद 10-15% से ज़्यादा नहीं। हैरानी की बात नहीं, क्योंकि तब तक तो मंडल कमीशन की रिपोर्ट आई भी नहीं थी।
2. राजीव गांधी का दौर: क्या OBC representation में कोई बदलाव आया?
अब यहां दिलचस्प बात ये है कि राजीव गांधी के समय (1984-89) में थोड़ा सुधार ज़रूर हुआ। मंडल कमीशन की गूंज तो थी, लेकिन कांग्रेस पार्टी के अंदर OBC नेताओं की संख्या अभी भी… यूं कहें कि ‘दिल्ली दूर थी’। एक तरफ तो सामाजिक न्याय की बातें हो रही थीं, दूसरी तरफ पार्टी के अंदरूनी ढांचे में बड़ा बदलाव नहीं दिखा।
3. सवाल ये उठता है – क्या कांग्रेस ने OBCs के लिए कुछ खास किया?
बिल्कुल! छात्रवृत्ति हो या शिक्षा में आरक्षण, कुछ initiatives ज़रूर लिए गए। पर सच कहूं? ये उतने व्यापक नहीं थे जितने आज देखने को मिलते हैं। असल में OBC empowerment का बड़ा नारा तो बाद में BJP और regional parties ने उठाया। कांग्रेस की योजनाएं? कुछ वैसी ही जैसे मेहमानों के आने पर ड्राइंग रूम की सफाई की जाती है – सतही, लेकिन ज़रूरी!
4. आजकल कांग्रेस का OBCs के प्रति रवैया: असली बदलाव या चुनावी चाल?
अभी की बात करें तो कांग्रेस OBC representation को लेकर serious दिख रही है। Rahul Gandhi जी OBC सम्मेलन कर रहे हैं, tickets का वादा कर रहे हैं… पर सवाल ये है कि क्या ये सब बहुत देर से हो रहा है? BJP तो यही कहती है – “अब जब चूल्हा ठंडा हो गया तो…” वैसे मैं कहूंगा कि देर आयद दुरुस्त आयद, लेकिन public कितना मानेगी? ये तो वोट बॉक्स ही बताएगा!
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com