चीनी टैंकों से घिरा वो 23 साल का भिक्षु और दलाई लामा की वो रात: जब इतिहास ने करवट ली
सुनो, 23 मार्च 1959 की वो रात… जिसने न सिर्फ तिब्बत का भाग्य बदल दिया, बल्कि एक युवा भिक्षु को दुनिया का सबसे चर्चित धार्मिक नेता बना दिया। सोचिए, महज 23 साल की उम्र में जब चीनी टैंक आपके महल को घेर लें, तो कैसा लगेगा? दलाई लामा के सामने वाकई जीवन-मृत्यु का सवाल था। और हैरानी की बात ये कि उनका फैसला सिर्फ उन्हें ही नहीं, पूरे तिब्बत को बचाने वाला साबित हुआ। 13 दिनों की वो भागने की कहानी तो जैसे किसी हॉलीवुड फिल्म का प्लॉट लगती है – लेकिन ये सच्ची घटना है, दोस्तों!
असल में ये सब 1950 से ही शुरू हो गया था। चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया और फिर धीरे-धीरे उसकी आत्मा को कुचलना शुरू कर दिया। स्थानीय लोगों का गुस्सा बढ़ता गया… और 1959 आते-आते स्थिति ऐसी बन गई कि ल्हासा की सड़कों पर खून बहने लगा। तभी दलाई लामा को समझ आ गया – अब यहाँ रुकना मौत को दावत देना है।
कल्पना कीजिए उस रात की – अंधेरा, ठंड, और हर पल डर कि चीनी सैनिक पकड़ लेंगे। 13 दिनों तक पहाड़ों में भटकते रहे, भूखे-प्यासे… प्रकृति का कहर झेला… पर भारत पहुँच ही गए। और फिर नेहरू जी ने जो किया, वो तो इतिहास है! उन्होंने न सिर्फ शरण दी, बल्कि भारत-चीन रिश्तों का नक्शा ही बदल दिया। बहादुरी की मिसाल, सच में।
दुनिया की प्रतिक्रिया? वाह, क्या दिलचस्प था वो दृश्य! एक तरफ तिब्बती समुदाय की आँखों में आशा… दूसरी तरफ चीन का गुस्सा। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में तूफान आ गया। कुछ देश चीन के खिलाफ खड़े हो गए, तो कुछ ने उसका साथ दिया। पर एक बात तय थी – अब तिब्बत का मुद्दा ग्लोबल हो चुका था।
आज? 60 साल बाद भी ये कहानी जिंदा है। धर्मशाला में तिब्बती संस्कृति की धड़कन सुनाई देती है। दलाई लामा की मुस्कान दुनिया भर में मानवता का प्रतीक बन चुकी है। पर सच ये भी है कि चीन का दबदबा कम नहीं हुआ। ये संघर्ष सिर्फ तिब्बत की आजादी की नहीं, बल्कि उन सभी लोगों की आवाज है जो अपनी पहचान के लिए लड़ रहे हैं। और हाँ, ये कहानी हमें याद दिलाती है कि कभी-कभी एक रात… एक फैसला… पूरे इतिहास की दिशा बदल देता है।
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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com