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“दीपक: राधिका के कातिल बाप की शाही जिंदगी – 17 लाख महीना, आलीशान फॉर्महाउस और खास रिवॉल्वर!”

दीपक यादव की कहानी: जब एक पिता ने अपनी ही बेटी की जान ले ली

गुरुग्राम का पॉश इलाका… वहां की चमक-दमक के पीछे छुपा एक ऐसा सच जिसने पूरे शहर को हिलाकर रख दिया। सोचिए, एक पिता अपनी ही बेटी को गोली मार दे? और वह भी पांच गोलियां? तीन तो सीधे राधिका यादव – एक होनहार टेनिस कोच – को लगीं। ये सिर्फ एक क्राइम स्टोरी नहीं है दोस्तों, ये तो हमारे समाज की उस कड़वी सच्चाई को फिर से उजागर कर देता है जहां पिता का अहं बेटी के सपनों से भारी पड़ जाता है।

क्या था पूरा मामला? प्रतिभा बनाम पिता का अहंकार

राधिका सिर्फ 24 साल की थीं, लेकिन उनका जज़्बा देखिए – टेनिस कोच बनकर अपने पैरों पर खड़ी हो चुकी थीं। उनके students उन्हें प्यार से ‘राधू मैम’ कहते थे। लेकिन उनकी यही कामयाबी उनके पिता दीपक यादव को चुभ रही थी। अब दीपक की बात करें तो… एक ऐसा businessman जिसकी lifestyle किसी बॉलीवुड सेलिब्रिटी से कम नहीं थी। महीने का 17 लाख रुपये का खर्च? आलीशान farmhouse? Luxury cars का कलेक्शन? पर यार, पैसा तो था इनके पास, पर दिल कहाँ था? परिवार वाले बताते हैं दीपक को हर चीज़ पर कंट्रोल चाहिए था – बेटी के करियर से लेकर उसकी ज़िंदगी तक पर। और जब राधिका ने अपनी मर्ज़ी से जीना शुरू किया, तो ये दर्दनाक हादसा हो गया।

वो भयानक दिन: जब पिता बना कातिल

ये सब हुआ सेक्टर-50 के उसी शानदार farmhouse में जहां राधिका ने अपने students को टेनिस सिखाया था। सोचिए, जिस जगह उसने इतने सपने देखे, वहीं उसके अपने पिता ने अपने licensed revolver से पांच गोलियां दाग दीं। तीन सीधे निशाने पर… पुलिस ने दीपक को तुरंत गिरफ्तार कर लिया और IPC 302 के तहत केस दर्ज हो गया। Postmortem रिपोर्ट में तीन गोलियों के निशान मिले हैं। असल में सवाल ये है कि आखिर क्या वजह थी जो एक पिता को इतना जानलेवा बना देती है?

समाज की प्रतिक्रिया: गुस्सा, दर्द और सवाल

राधिका की माँ का दर्द देखिए – “दीपक हमेशा से ही हम पर हावी रहा। उसने मेरी बेटी के सपनों को कुचल दिया।” पड़ोसियों ने भी बताया कि अक्सर झगड़े की आवाजें आती थीं, पर किसने सोचा था कि ये हद पार कर जाएगा? वहीं महिला अधिकार कार्यकर्ता कविता कृष्णन का कहना है – “ये केस दिखाता है कि पैसे और पावर के बावजूद हमारी बेटियां सुरक्षित नहीं हैं।” सच कहूं तो, ये सिर्फ एक केस नहीं है… ये तो हमारे सिस्टम की पूरी विफलता है।

अब क्या? न्याय की उम्मीद

तो अब सवाल ये है कि आगे क्या होगा? पुलिस तो evidences जुटा रही है, पर क्या सिर्फ दीपक की सजा से राधिका को न्याय मिल जाएगा? उनके students एक memorial बनाने की मांग कर रहे हैं… शायद इसलिए कि राधिका की मेहनत और हौसला कभी न भुलाया जाए। पर सच तो ये है कि ऐसे केस सिर्फ याद दिलाते हैं कि हमें घरेलू हिंसा के खिलाफ और सख्त होना पड़ेगा।

आखिरी बात: सिस्टम बदलना होगा

देखिए, राधिका सिर्फ एक नंबर नहीं है। वो उन हज़ारों लड़कियों की आवाज़ है जो आज भी पिता के अहंकार की भेंट चढ़ रही हैं। क्या हम सिर्फ खबर पढ़कर आगे बढ़ जाएंगे? या फिर इस बार कुछ सीखेंगे? वक्त आ गया है कि हम ऐसी घटनाओं के खिलाफ आवाज़ उठाएं… वरना कल कोई और राधिका इसी तरह मारी जाएगी। और फिर हम सब फिर से यही कहेंगे – “अरे, ऐसा कैसे हो गया?”

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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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