दिल्ली की धुआँ उगलती गाड़ियां अब टूरिस्ट स्पॉट्स पर टैक्सी बनकर धमाल मचा रही हैं!
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण कम करने के नाम पर बने नियम अब खुद ही मुसीबत बनते दिख रहे हैं। सरकार ने पुरानी गाड़ियों पर रोक लगाई थी न? 10 साल से ज्यादा पुरानी डीजल और 15 साल से ऊपर की पेट्रोल कारों पर बैन। लेकिन असल मजा तो अब शुरू हुआ है! पता चला है कि यही प्रतिबंधित गाड़ियां एनओसी (NOC) लेकर दूसरे राज्यों में जा रही हैं। और वहाँ? टूरिस्ट स्पॉट्स पर टैक्सी बनकर नए सिरे से पर्यावरण को हलाक कर रही हैं। पर्यावरणविदों का तो सिर दर्द बढ़ गया है।
ये प्रतिबंध वाली कहानी कहाँ से शुरू हुई?
2018 की बात है जब दिल्ली सरकार ने हवा साफ करने के चक्कर में ये नियम बनाया। सोचा था न कि पुरानी गाड़ियां बंद होगी तो धुआँ कम होगा। लेकिन देखिए मजाक – नियम में एक छोटा सा लूपहोल छोड़ दिया। Transport Department से एनओसी लेकर इन्हें दूसरे राज्यों में रजिस्टर करवाया जा सकता था। और अब? यही छूट बन गई है पूरे सिस्टम की आँख में धूल झोंकने का रास्ता।
क्या हो रहा है इन गाड़ियों के साथ? बड़ा मजेदार गेम चल रहा है!
हाल की जांच से पता चला है कि राजस्थान, हरियाणा और उत्तराखंड जैसी जगहों पर ये पुरानी गाड़ियां हिट हो रही हैं। खासकर जयपुर, माउंट आबू और मसूरी जैसे टूरिस्ट प्लेस पर तो ये टैक्सी बनकर छा गई हैं। कारण? इन राज्यों में उत्सर्जन नियम दिल्ली जितने सख्त नहीं हैं। तो जो गाड़ियां दिल्ली में बैन, वहीं दूसरी जगह धड़ल्ले से चल रही हैं। पर्यावरण एक्सपर्ट्स की चिंता समझिए – प्रदूषण तो बढ़ेगा ही, साथ ही दिल्ली का जहरीला धुआँ अब दूसरे इलाकों में फैल रहा है। एक तरह से प्रदूषण का रिलोकेशन हो रहा है!
कौन क्या बोल रहा है? सबके अपने-अपने तर्क!
इस मामले पर सबकी अलग-अलग राय सामने आई है। पर्यावरण मंत्रालय वालों का कहना है कि वे जाँच कर रहे हैं। Transport Department वाले एनओसी प्रक्रिया को और टाइट करने की बात कर रहे हैं। वहीं टैक्सी वालों का कहना है – “भाई, नई गाड़ियों के दाम देखे हैं आपने? हमारे पास कोई चारा नहीं!” लेकिन पर्यावरण एक्टिविस्ट्स सही कह रहे हैं – ये तो बस प्रदूषण को एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट करने का खेल है। समस्या का समाधान नहीं, बस टेम्पररी फिक्स!
आगे क्या हो सकता है? कुछ संभावित रास्ते
अब सवाल यह है कि इस गड़बड़ को कैसे ठीक किया जाए? कुछ संभावनाएं:
- अंतर-राज्यीय वाहन ट्रांसफर के नए नियम बनाए जा सकते हैं
- सभी राज्यों में प्रदूषण नियमों को एक जैसा बनाने की मांग तेज हो सकती है
- टैक्सी वालों को इलेक्ट्रिक वाहनों या कम प्रदूषण वाली गाड़ियों की तरफ ले जाने के लिए सब्सिडी दी जा सकती है
मुद्दा साफ है – प्रदूषण कोई लोकल प्रॉब्लम नहीं है। जब तक पूरे देश में एक जैसे सख्त नियम नहीं बनेंगे, तब तक ये धुआँ बस एक शहर से दूसरे शहर में ट्रेवल करता रहेगा। और हम? बस देखते रह जाएंगे!
क्या आपको नहीं लगता कि ये पूरा मामला हमारे पर्यावरण नीतियों की खामियों को उजागर करता है? कमेंट में बताइए!
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दिल्ली की सड़कों पर धुआं उगलते वाहनों को देखकर क्या आपने कभी सोचा है कि ये पुराने टैंकर और टैक्सियां आखिर जाती कहाँ हैं? हैरानी की बात ये है कि दिल्ली से बाहर निकलकर यही गाड़ियां दूसरे राज्यों में टैक्सी के रूप में धड़ल्ले से चल रही हैं। सच कहूं तो, ये सिर्फ एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है – ये तो हमारे पर्यटन स्थलों की खूबसूरती पर सीधा हमला है।
अब सवाल यह उठता है – क्या हम वाकई इस समस्या की गंभीरता को समझ पा रहे हैं? एक तरफ तो दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के लिए नए-नए नियम बनाए जा रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ ये पुराने वाहन दूसरे राज्यों में ‘second life’ पा रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे हम समस्या को सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट कर रहे हैं।
मेरे हिसाब से तो ये स्थिति एक ticking time bomb की तरह है। अभी नहीं संभले तो आने वाले कुछ सालों में हालात और भी बदतर हो जाएंगे। सरकारी आंकड़े तो अपनी जगह, पर असल सच्चाई ये है कि आम जनता को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है – स्वास्थ्य से लेकर tourism तक, हर चीज पर इसका असर दिख रहा है।
तो फिर समाधान क्या है? मेरा मानना है कि सिर्फ कड़े नियम बनाने से काम नहीं चलेगा। जरूरत है एक ऐसी policy की जो पूरे देश में एक समान रूप से लागू हो। वैसे भी, पर्यावरण की बात करें तो state borders तो सिर्फ नक्शे पर ही होते हैं, हवा तो सबको एक जैसी ही जहरीली मिलेगी न?
एक last point – क्या हम वाकई अपनी आने वाली पीढ़ियों को ऐसा gift देना चाहते हैं? सोचने वाली बात है…
दिल्ली की धुआं-उगलती गाड़ियों का टूरिस्ट टैक्सी बनना – जानिए पूरी कहानी
अरे भाई, दिल्ली का प्रदूषण तो हम सबकी आँखों में चुभता है ना? लेकिन क्या आप जानते हैं कि अब वही पुरानी, प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियां टूरिस्टों को घुमाने का ज़रिया बन रही हैं? चलिए, इसके बारे में गहराई से बात करते हैं।
1. असल में ये ‘प्रदूषण वाली गाड़ियां’ आखिर हैं कौन-सी?
देखिए, अगर सीधी बात करें तो ये वो बेचारी पुरानी गाड़ियां हैं जिन्हें देखकर आपकी नाक अपने आप बंद हो जाती है। वो डीजल वाले ठठ्ठे-बस, BS-III से पहले के ट्रक, और वो स्कूल वैन जिनका धुआं काला होता है। सच कहूं तो ये दिल्ली की हवा को जहरीला बनाने में बड़ा रोल अदा करती हैं।
2. मजेदार बात – ये गाड़ियां अब टूरिस्ट्स को कैसे घुमा रही हैं?
असल में कुछ चालाक दिमागों ने सोचा – “क्यों न इन्हें फेंकने की बजाय कुछ क्रिएटिव किया जाए?” तो अब ये पुरानी गाड़ियां इलेक्ट्रिक या CNG में तब्दील होकर हेरिटेज राइड्स बन रही हैं। सोचिए, एक पुरानी एम्बेसडर जो पहले धुआं छोड़ती थी, अब बिना शोर किए आपको दिल्ली के ऐतिहासिक स्थलों पर घुमाएगी। क्या बात है न?
3. सवाल यह है कि क्या यह सच में पर्यावरण के लिए अच्छा है?
ईमानदारी से कहूं तो – हां, बशर्ते कन्वर्ज़न ठीक से हुआ हो। जैसे आप पुराने घर को रेनोवेट करके नया बना देते हैं, वैसे ही इन गाड़ियों को भी ग्रीन टेक्नोलॉजी से अपग्रेड किया जा रहा है। एक तरफ तो ये प्रदूषण कम करता है, दूसरी तरफ पुरानी चीज़ों को नया जीवन देता है। Win-win situation!
4. और सरकार? क्या वो भी इस खेल में शामिल है?
बिल्कुल! दिल्ली सरकार तो जैसे इस पर पूरी तरह उतर आई है। EV पॉलिसी से लेकर ग्रीन फंड तक – हर तरह की मदद दी जा रही है। कुछ NGOs भी इसमें जमकर लगे हुए हैं। सच पूछो तो ये एक तरह का सोशल एक्सपेरिमेंट है जो अगर कामयाब रहा, तो दूसरे शहरों के लिए भी मिसाल बनेगा।
तो क्या सोच रहे हैं? अगली बार जब दिल्ली आएं, तो इन रेट्रो-इको टैक्सियों में सवारी जरूर करें। फन भी और ग्रीन भी!
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com