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“कांग्रेस नेता गोमेज का बड़ा आरोप: ICE ‘भूरे रंग के हर व्यक्ति’ को निशाना बना रहा है!”

कांग्रेस नेता गोमेज का बड़ा दावा: क्या ICE सच में ‘भूरे रंग के लोगों’ को टारगेट कर रहा है?

अमेरिकी राजनीति में फिर से एक ऐसा मुद्दा गरमाया है जो हर बार बहस तो खड़ी करता ही है – आप्रवासन और रंगभेद। कैलिफोर्निया के डेमोक्रेटिक नेता जिमी गोमेज ने तो इस बार बिल्कुल सीधा निशाना साधा है। उनका कहना है कि Immigration and Customs Enforcement (ICE) जान-बूझकर “हर भूरे रंग के इंसान” को निशाने पर ले रही है। CNN को दिए इंटरव्यू में ये बयान सुनकर मैं भी चौंक गया, और देखते ही देखते यह मामला सोशल मीडिया से लेकर वाशिंगटन के गलियारों तक छा गया।

जिमी गोमेज कौन हैं, और क्यों मायने रखती है उनकी बात?

असल में बात यह है कि गोमेज कोई नौसिखिया नेता नहीं हैं। कैलिफोर्निया के 34वें Congressional District से चुने गए ये डेमोक्रेटिक नेता तो जैसे आप्रवासन सुधार और अल्पसंख्यक अधिकारों की जिंदा मिसाल हैं। मैक्सिकन-अमेरिकन मूल के इस नेता ने हमेशा प्रगतिशील विचारों की आवाज उठाई है। और सच कहूं तो, जब ऐसा कोई नेता, जो खुद अल्पसंख्यक समुदाय से आता है, ऐसी बात कहता है – तो उसका वजन बढ़ जाता है। है न?

ICE का क्या रोल है, और क्यों है यह इतना विवादित?

देखिए, ICE का काम तो अवैध आप्रवासन रोकना और सीमा सुरक्षा है। लेकिन यहां दिक्कत यह है कि पिछले कुछ सालों में इस एजेंसी का हर कदम विवादों में घिरा रहा है। खासकर ट्रंप के जमाने में तो हालात इतने खराब हुए कि परिवारों को जबरन अलग किया गया, बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुईं। नतीजा? अल्पसंख्यक समुदायों का इस एजेंसी पर से भरोसा उठ गया। और अब गोमेज का यह बयान तो ऐसे आया है जैसे आग में घी डालने का काम कर गया।

क्या कहा गोमेज ने असल में?

CNN वाले इंटरव्यू में तो उन्होंने सीधे-सीधे कह दिया – “ICE agents किसी भी भूरे रंग के आदमी को पकड़ रहे हैं, बस इसलिए क्योंकि वह मेरी तरह दिखता है।” उनका यह बयान सुनकर मुझे लगा – अरे भई, यह तो खुला नस्लीय भेदभाव है! गोमेज ने इसे अमेरिकी आप्रवासन नीतियों की बड़ी विफलता बताया। मतलब साफ है – यहां रंग देखकर फैसले हो रहे हैं, न कि किसी के अपराधों के आधार पर।

क्या हो रहा है प्रतिक्रियाओं का तूफान?

इस बयान के बाद तो अमेरिकी राजनीति में ऐसा हंगामा मचा कि क्या बताऊं! एक तरफ डेमोक्रेट्स और अल्पसंख्यक संगठन गोमेज का साथ दे रहे हैं, इसे “सिस्टमैटिक रेसिज्म” का नमूना बता रहे हैं। वहीं दूसरी ओर रिपब्लिकन्स तो मानो आग बबूला हो गए हैं, सीधे इन आरोपों को झूठ बता रहे हैं। और ICE? उनका कहना है कि वे तो बस कानून का पालन कर रहे हैं, रंगभेद से उनका कोई लेना-देना नहीं। पर सवाल यह है – किसकी बात सही है?

आगे क्या होगा? क्या बदलाव आएगा?

अब यह मामला तो बयान से आगे निकल चुका है। राजनीतिक जानकार कह रहे हैं कि इससे कांग्रेस में ICE की कार्यशैली पर नई बहस छिड़ सकती है। डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन्स के बीच पहले से तनाव है, और यह मामला उसे और बढ़ा सकता है। वहीं कई संगठन ICE के आंकड़ों की स्वतंत्र जांच की मांग कर रहे हैं। सच तो यह है कि यह मुद्दा अब धीरे-धीरे एक बड़े राजनीतिक तूफान का रूप ले रहा है।

अंत में बस इतना कहूंगा – गोमेज का यह बयान सिर्फ आप्रवासन नहीं, बल्कि अमेरिका में गहराई तक जमे नस्लीय भेदभाव की ओर इशारा करता है। और हां, यह बहस अभी लंबी चलने वाली है – इसका असर आने वाले महीनों, शायद सालों तक दिखेगा। क्या आपको नहीं लगता कि यह सिर्फ अमेरिका की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर सवाल है?

कांग्रेस नेता गोमेज और ICE पर उनके आरोप – जानिए पूरा मामला

1. गोमेज ने ICE पर क्या उंगली उठाई है?

देखिए, मामला कुछ ऐसा है – कांग्रेस नेता गोमेज का दावा है कि ICE वालों को तो बस “भूरे रंग” दिखना चाहिए। सीधे शब्दों में कहें तो, उनका आरोप है कि ये एजेंसी Hispanic और दूसरे minorities को खास तौर पर निशाना बना रही है। Racial profiling का मामला है। अब आप ही बताइए, 21वीं सदी में ये कैसा तरीका?

2. ICE की तरफ से क्या जवाब आया?

अभी तक तो कोई official बयान नहीं आया है। लेकिन याद रखिए, ऐसे आरोप नए नहीं हैं। पहले भी ICE ने कहा है कि वे सिर्फ कानून का पालन कर रहे हैं, रंग-भेद नहीं। पर सवाल यह है कि ground reality क्या कहती है? कागजों पर सब कुछ अच्छा लगता है…

3. लोग और नेता क्या कह रहे हैं?

यहां दिलचस्प बात ये है कि reaction बिल्कुल divided है। एक तरफ तो civil rights groups और Democratic नेता गोमेज के साथ खड़े हैं। वहीं दूसरी तरफ Republican वाले इसे सिर्फ एक political drama बता रहे हैं। और Twitter पर तो माहौल ऐसा है जैसे कोई मैच चल रहा हो – हर कोई अपनी-अपनी राय दे रहा है!

4. असल में इससे क्या बदलाव आएगा?

असल बात ये है कि ऐसे मामले सिर्फ headlines बनकर नहीं रह जाते। Experts की मानें तो इससे immigration reforms की बहस फिर से गर्मा सकती है। Biden सरकार पर दबाव बढ़ेगा कि ICE के तरीकों पर नज़र डालें। Guidelines और सख्त करने की मांग उठ सकती है। पर सच तो ये है – कागजी नियम और जमीनी हकीकत में अक्सर फर्क होता है।

Source: NY Post – US News | Secondary News Source: Pulsivic.com

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