“ईश्वर की कृपा रही तो…” – धनखड़ के इस्तीफे के संकेत 10 दिन पहले ही मिल गए थे!
मामला कुछ ऐसा है कि देश के 14वें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार रात अचानक ही इस्तीफा दे दिया। हैरानी की बात ये कि उनका कार्यकाल तो अगस्त 2027 तक चलना था! स्वास्थ्य कारण बताया गया, लेकिन असल में 10 दिन पहले ही एक public event में उन्होंने “ईश्वर की कृपा रही तो…” जैसे शब्द कहे थे। अब देखिए न, क्या ये कोई संयोग है? शायद नहीं।
राजनीति का वो पुराना सच: ‘आज नहीं तो कल…’
धनखड़ साहब ने 11 अगस्त 2022 को उपराष्ट्रपति पद संभाला था। पहले वे पश्चिम बंगाल के governor रह चुके हैं – और एक बेहद काबिल वकील भी। हालांकि पिछले कुछ महीनों से उनके स्वास्थ्य को लेकर फुसफुसाहटें चल रही थीं। पर सरकार की तरफ से कोई official statement? बिल्कुल नहीं। तो अब सवाल ये उठता है कि क्या सच में सिर्फ स्वास्थ्य ही वजह है? राजनीति के पंडितों को लगता है कि कहानी कुछ और ही है।
इस्तीफे के पीछे की कहानी: क्या-क्या चल रहा है?
धनखड़ ने इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंपा, जो तुरंत मंजूर हो गया। लेकिन opposition leaders तो मानो मौके की तलाश में ही बैठे थे! उनका कहना है कि सिर्फ “स्वास्थ्य कारण” बताना काफी नहीं। और सच कहूं तो, उनकी बात में दम भी लगता है। वहीं government की तरफ से नए उपराष्ट्रपति के selection process को लेकर कोई हलचल नहीं। Political analysts की एक बड़ी संख्या इसे सत्ता और संवैधानिक पदों के बीच की खींचतान मान रही है। सोचने वाली बात है, है न?
राजनीति का पारा चढ़ा: किसने क्या कहा?
इस मामले पर political parties के reactions देखकर लगता है मानो दो अलग-अलग देशों की बात हो रही हो! विपक्ष के एक senior leader ने तो सीधे government को घेरते हुए कहा, “ये पारदर्शी नहीं है, सफाई दी जानी चाहिए।” वहीं ruling party के एक minister ने धनखड़ की तारीफों के पुल बांध दिए। social media पर तो जैसे माहौल गरमा गया – कुछ लोग genuine concern दिखा रहे थे, तो कुछ इसे पूरी तरह political conspiracy बता रहे थे। क्या आपको नहीं लगता कि आजकल हर चीज में ‘conspiracy theory’ ढूंढने का चलन बढ़ गया है?
अब आगे क्या? राजनीति का नया अध्याय
अब सबकी नजरें government के अगले move पर हैं। नए उपराष्ट्रपति का चुनाव तो संवैधानिक प्रक्रिया है, लेकिन असल सवाल ये है कि क्या इसके पीछे कोई larger issue छुपा है? विपक्ष parliament में इस मुद्दे को उठा सकता है – और फिर देखिए, political temperature कैसे बढ़ती है! एक बात तो तय है – ये घटना देश के constitutional history में एक दिलचस्प chapter के रूप में दर्ज होगी।
अंत में इतना ही कहूंगा – धनखड़ का इस्तीफा भले ही अचानक लगे, पर उनके पुराने statements देखें तो लगता है कि ये फैसला sudden नहीं था। अब political circles में नए उपराष्ट्रपति के चयन और इस पूरे episode के पीछे के real reasons को लेकर चर्चा लंबे समय तक चलने वाली है। और हां, social media पर तो ये debate शायद कभी खत्म ही न हो! क्या आपको नहीं लगता?
देखिए, धनखड़ का इस्तीफा कोई आकस्मिक घटना नहीं थी। असल में, अगर आपने गौर किया हो तो उनके पहले के बयानों में ही इसके संकेत छिपे हुए थे। “ईश्वर की कृपा रही तो…” वाली लाइन तो बस एक छोटा सा हिस्सा था। मतलब साफ है न? राजनीति में कोई भी कदम बिना गहरी सोच के नहीं उठाया जाता।
और सच कहूं तो, ये सारी घटनाएं एक बड़े बदलाव का संकेत दे रही हैं। पर क्या वाकई? हमें इंतज़ार करना होगा। अभी के लिए, आप इस मामले की पूरी जानकारी यहां से पढ़ सकते हैं। एकदम विस्तार से।
‘ईश्वर की कृपा रही तो…’ – धनखड़ के इस्तीफे पर वो सवाल जो आप भी पूछ रहे हैं
क्या धनखड़ ने पहले ही इशारा कर दिया था इस्तीफे का?
देखिए, दस दिन पहले उस public event में धनखड़ ने जो कहा, वो सुनकर लगा नहीं कि ये कोई सामान्य बात है। “ईश्वर की कृपा रही तो…” – ये वाक्य अब बिल्कुल अलग मायने रखता है। असल में, ये उनका तरीका था resignation की बात को gently रखने का। बिल्कुल राजनीतिक लोगों जैसा, है न?
इस्तीफा कब से लागू होगा? अभी क्या स्थिति है?
सच कहूं तो अभी तक सरकार की तरफ से कोई official बयान नहीं आया है। लेकिन जो sources बता रहे हैं, उनके मुताबिक इसे जल्द accept कर लिया जाएगा। पर याद रखिए – भारत सरकार के processes… उनमें ‘जल्द’ का मतलब कभी-कभी एक हफ्ता भी हो सकता है!
क्या ये सच में personal decision है? या फिर…
अब यहां बात दिलचस्प हो जाती है। Experts तो कह रहे हैं personal reasons, लेकिन दिल्ली की गलियों में क्या चल रहा है? कम से कम तीन अलग-अलग theories तो मैंने अभी तक सुन ही ली हैं। Official word आने तक सब अटकलें ही हैं, पर मानिए, राजनीति में कभी-कभी अटकलें ही सच साबित होती हैं!
अब सबसे बड़ा सवाल – आगे क्या? कौन लेगा जिम्मेदारी?
Successor की बात करें तो… वैसे तो अभी तक कोई name सामने नहीं आया। लेकिन ये government है भाई – कुछ भी हो सकता है! क्या पता कोई dark horse candidate सामने आ जाए? या फिर usual suspects में से ही किसी को चुन लिया जाए। एक बात तय है – decision लेने में थोड़ा वक्त तो लगेगा ही। Indian bureaucracy की speed, आप समझ ही रहे होंगे!
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com