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मानसून जल्दी आया तो कहां मची तबाही और कहां मिली राहत? जानें पूरी अपडेट

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समय से पहले मानसून: कुछ को ठंडी हवा, कुछ को मुसीबत!

अरे भई, इस बार तो मानसून ने टाइमटेबल ही उलट-पलट दिया है! जहां दिल्ली-एनसीआर वाले 45 डिग्री की चिलचिलाती गर्मी से बचकर सांस ले रहे हैं, वहीं उत्तराखंड और केरल के लोग पानी-पानी हो रहे हैं। सच कहूं तो, ये मानसून अब किसी सरप्राइज पार्टी की तरह आता है – कभी जल्दी, कभी लेट, और कभी तो बिन बुलाए मेहमान की तरह!

क्यों बिगड़ रहा है मानसून का मिजाज?

देखिए न, आमतौर पर मानसून 1 जून को केरल पहुंचता है। लेकिन इस बार? 29 मई को ही दस्तक दे दी! और ये कोई पहली बार नहीं है। पिछले कुछ सालों से तो ये climate change वाली मार ने मानसून को पूरी तरह बिगाड़ दिया है। एक तरफ जहां कुछ इलाके सूखे से त्राहि-त्राहि कर रहे हैं, वहीं पहाड़ी राज्यों में बारिश का कहर… जैसे अभी उत्तराखंड में देखने को मिल रहा है। सच में, ये स्थिति किसी बुरे सपने से कम नहीं!

कहां क्या हाल है? एक नजर डालते हैं

दिल्ली वालों के लिए तो ये बारिश वरदान साबित हो रही है। 5-6 डिग्री तापमान कम हुआ है – जैसे एसी चल रहा हो! लेकिन उत्तराखंड? हद हो गई! चारधाम यात्रा रोकनी पड़ी, सड़कें बंद, और न जाने कितने लोग फंसे हुए हैं। और केरल की बात करें तो… अरे भगवान! लाल अलर्ट तक जारी हो चुका है। मौसम विभाग का कहना है कि महाराष्ट्र, गोवा वालों को भी अगले 24 घंटे में भीगने के लिए तैयार रहना चाहिए!

अधिकारी क्या कह रहे हैं?

उत्तराखंड के एक अधिकारी ने तो साफ कह दिया – “सबसे पहले लोगों की सुरक्षा।” NDRF की टीमें मौके पर पहुंच चुकी हैं। वहीं मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि अब तो मानसून पूरी तरह अनपेडिक्टेबल हो गया है। केरल के एक स्थानीय निवासी की बात सुनिए: “पिछले साल की त्रासदी के बाद अब डर लगता है। सरकार को कुछ सीखना चाहिए था!” सच कहूं तो, उनकी चिंता जायज है।

आगे क्या होगा?

मौसम विभाग के मुताबिक, अगले हफ्ते भी उत्तरी और पश्चिमी भारत में बारिश जारी रहेगी। उत्तराखंड में सड़कें साफ करने का काम जोरों पर है, वहीं केरल में relief camps तैयार किए जा रहे हैं। किसानों के लिए? ये दुविधा वाली स्थिति है – समय पर बारिश अच्छी, लेकिन ज्यादा पानी फसलों को बर्बाद कर देगा।

अंत में बस इतना कहूंगा – इस बार का मानसून किसी रोलरकोस्टर राइड से कम नहीं! कहीं लोग खुशी से झूम रहे हैं, तो कहीं जान-माल का नुकसान। सरकार और हम सबको मिलकर इससे निपटना होगा। वैसे भी, प्रकृति के सामने हम कितने भी तैयार क्यों न हो जाएं, वो हमेशा हमें सीख दे ही जाती है। है न?

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अरे भई, इस बार मानसून इतनी जल्दी क्यों आ गया?

देखिए, असल में ये पूरा मामला समुद्र के गर्म होने और हवा के अजीबो-गरीब मूड से जुड़ा है। IMD वालों का कहना है कि ऐसा हर साल नहीं होता – बस कभी-कभार ही nature ऐसा करतब दिखाती है। सच कहूं तो मौसम वालों को भी ये early arrival थोड़ी हैरान करने वाली लगी है!

कहां-कहां बरसात ने तबाही मचाई है?

अभी तक तो केरल, गोवा और महाराष्ट्र के coastal इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। कई जगह तो ऐसी बाढ़ आई कि लोगों को छतों पर भागना पड़ा। और हां, landslides तो जैसे मानो पहाड़ों से खेलने उतर आए हों! सेना और NDRF वाले लगातार rescue operations में जुटे हैं – इन्हें सलाम।

क्या किसी को इस early monsoon से फायदा भी हुआ है?

हां जी, कहानी का एक bright side भी है। राजस्थान और गुजरात जैसे इलाके जो पिछले कुछ महीनों से सूखे की मार झेल रहे थे, उनके लिए तो ये बारिश वरदान साबित हुई है। Dams और reservoirs में पानी का लेवल बढ़ा है – और किसान भाइयों के चेहरे पर भी मुस्कान लौट आई है। क्या कहें, कभी-कभी nature का ये early surprise अच्छा भी होता है!

किसान भाइयों के लिए ये early monsoon क्या मायने रखता है?

एक तरफ तो जल्दी बारिश का मतलब है early sowing और बेहतर irrigation। लेकिन दूसरी ओर, जहां बारिश ज्यादा हो रही है, वहां crops के damage होने का डर भी है। मेरे एक किसान दोस्त ने कल ही कहा था – “भैया, अब तो हमें मौसम का हर update ध्यान से देखना पड़ेगा।” Experts भी यही सलाह दे रहे हैं। सच तो ये है कि nature के साथ ये चौकसी का खेल हमेशा चलता रहेगा!

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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