SC में चुनाव आयोग पर बवाल: क्या वाकई आबादी से ज़्यादा निवास सर्टिफिकेट बांटे गए?
आज सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग (ECI) की खैर नहीं थी। सुनवाई के दौरान ADR (Association for Democratic Reforms) ने जो आरोप लगाए, उन्हें सुनकर तो लगा जैसे कोई बम फट गया हो। सीधे-सीधे कहें तो, आयोग पर आरोप है कि उसने आधार, Voter ID और राशन कार्ड जैसे बेसिक डॉक्यूमेंट्स को नज़रअंदाज़ करके बड़े पैमाने पर वोटर्स के नाम काट दिए। और तो और, कोर्ट भी इतना गंभीर मामला देखकर हैरान रह गया – तुरंत जवाब तलब कर लिया!
पूरा झगड़ा किस बात पर है?
कहानी शुरू होती है बिहार के SIR (Special Summary Revision) से। ADR का दावा है कि इस प्रोसेस में लाखों नाम वोटर लिस्ट से गायब कर दिए गए। अब यहां मज़ा आता है – राज्य में जारी किए गए Residence Certificate की संख्या तो वहां की आबादी से भी ज़्यादा निकली! यानी साफ़ है कि कुछ तो गड़बड़ है। शायद वोटर लिस्ट में घुसपैठिए नाम शामिल हो गए होंगे।
लेकिन असली मसला तो तब बना जब चुनाव आयोग ने आधार, Voter ID और राशन कार्ड को वैलिड डॉक्यूमेंट्स की लिस्ट से ही हटा दिया। नतीजा? गांव-देहात के गरीब और कम पढ़े-लिखे लोगों के नाम वोटर लिस्ट से गायब हो गए। क्या यह कोई संयोग है? शक की बात तो है…
SC ने लगाई लताड़: “कैसे हो सकता है ये संभव?”
सुनवाई के दौरान जस्टिस ने चुनाव आयोग से सीधा सवाल किया – “भई, क्या किसी राज्य में उसकी आबादी से ज़्यादा Residence Certificate जारी किए जा सकते हैं?” ADR के वकीलों ने तो आयोग पर जमकर हमला बोला – “ये तो पूरी तरह मनमानी है!” और सच कहूं तो, उनकी बात में दम भी लगता है।
चुनाव आयोग की तरफ से जवाब आया कि सब कुछ ट्रांसपेरेंट तरीके से हुआ है। उनका कहना है कि हर डॉक्यूमेंट को प्रॉपरली चेक करने के बाद ही किसी का नाम काटा गया। पर सवाल ये है कि फिर गलतियां कैसे हुईं? कहीं ये सिस्टम की खामी तो नहीं?
राजनीति गरमाई – कौन किसके पक्ष में?
इस मामले ने दिल्ली की राजनीति को भी हिला दिया है। विपक्षी दल तो मानो आयोग पर टूट पड़े हैं – आरोप लगा रहे हैं कि ये सरकार के दबाव में काम कर रहा है। ADR के वकीलों ने तो यहां तक कह दिया कि “Voter ID जैसे बेसिक डॉक्यूमेंट को रिजेक्ट करना डेमोक्रेसी के लिए खतरनाक है।”
वहीं दूसरी ओर, चुनाव आयोग अपने स्टैंड पर अड़ा हुआ है। उनका कहना है कि वोटर लिस्ट को साफ़ करना उनका काम है और वे सिर्फ़ डुप्लीकेट या फर्जी नाम हटा रहे हैं। पर सच्चाई क्या है? ये तो समय ही बताएगा।
अब सबकी नज़रें SC के फैसले पर
सुप्रीम कोर्ट का आने वाला फैसला सिर्फ़ बिहार ही नहीं, पूरे देश के लिए अहम होगा। अगर कोर्ट ADR की याचिका को मान लेता है, तो लाखों वोटर्स के नाम वापस लिस्ट में आ सकते हैं। सच कहूं तो, ये केस ECI की क्रेडिबिलिटी के लिए टेस्ट केस बन गया है।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये फैसला इंडियन डेमोक्रेसी में वोटर्स के राइट्स को नई परिभाषा देगा। और हां, अब तो पूरे देश की नज़रें SC पर टिकी हैं – क्या होगा अगला मूव? क्योंकि ये सिर्फ़ एक केस नहीं, बल्कि हमारे लोकतंत्र की बुनियाद से जुड़ा मामला है।
अंत में बस इतना कहूंगा – जब तक फैसला नहीं आता, तब तक ये डिबेट जारी रहेगी। और हमें? हमें बस इंतज़ार करना है और देखना है कि न्यायपालिका इस पेचीदा मामले में क्या फैसला सुनाती है।
SC में चुनाव आयोग विवाद: आबादी vs निवास सर्टिफिकेट – जानिए पूरा माजरा
अरे भाई, ये चुनाव आयोग वाला मामला तो हल्ला मचा रहा है न? सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया, सोचो! तो चलिए, बिना गोल-मोल बात किए सीधे मुद्दे पर आते हैं।
1. ये SC वाला पूरा झगड़ा क्या है?
देखिए, बात ये है कि SIR (State Information Report) में एक अजीबोगरीब चीज़ सामने आई है। किसी ने ध्यान दिया कि निवास सर्टिफिकेट की संख्या असली आबादी से ज़्यादा है! यानी… गड़बड़ तो है न? अब कोर्ट में ये तय होना बाकी है कि ये सिर्फ़ गलती है या फिर कोई गंदी चाल।
2. भईया, इतना हो-हल्ला क्यों? आखिर आबादी और सर्टिफिकेट में फर्क ही क्या है?
अच्छा सवाल पूछा! समझिए ना – निवास सर्टिफिकेट तो वोटर लिस्ट में नाम डलवाने का गोल्डन टिकट है। अगर ये ज़्यादा बन रहे हैं, तो समझ लीजिए कि कुछ लोगों के पास एक्स्ट्रा ‘टिकट’ हैं। और ये टिकट… हम सब जानते हैं कि किस काम आ सकते हैं। फर्जी वोटिंग का खेल शुरू हो जाए तो अचरज कैसा?
एक तरफ तो ये तकनीकी बात लगती है, लेकिन असल में ये हमारे वोट की कीमत को कम कर देती है। सच कहूँ तो…
3. इसमें चुनाव आयोग कहाँ फंस गया?
अरे, भईया! चुनाव आयोग का तो मुख्य काम है वोटर लिस्ट को साफ़-सुथरा रखना। जैसे कि आपके घर का चौकीदार। अब अगर चौकीदार की नज़र में धूल जम गई हो, तो सवाल तो उठेगा ही न? लोग पूछ रहे हैं कि आयोग ने ये गड़बड़ी कैसे मिस कर दी। या फिर… कहीं देखकर अनदेखा तो नहीं किया?
4. अच्छा, तो अब आगे क्या होगा?
देखिए, अगर SC ने सख्ती दिखाई तो… वाह! पूरा खेल बदल सकता है। शायद नए नियम बनें, वोटर लिस्ट की फिर से छानबीन हो। हाँ, प्रक्रिया थोड़ी धीमी होगी शायद। लेकिन अगर ईमानदारी से कहूँ तो, लंबी लाइन में खड़े होकर भी साफ़ पानी पीना बेहतर है न?
एक बात और – ये सिर्फ़ कानूनी मामला नहीं है। हमारे लोकतंत्र की साख का सवाल है। सोचिएगा ज़रूर…
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com