पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने रिटायरमेंट के 8 महीने बाद भी क्यों नहीं खाली किया सरकारी बंगला? सुप्रीम कोर्ट का बड़ा एक्शन!

पूर्व CJI चंद्रचूड़ और सरकारी बंगला विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने क्या किया?

अरे भई, सुप्रीम कोर्ट ने तो इस बार एकदम सख्त रुख अपनाया है! पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ को सरकारी बंगला खाली करने का आदेश देकर कोर्ट ने साफ कर दिया है कि नियम सबके लिए बराबर हैं। सोचिए, रिटायरमेंट के बाद भी 8 महीने तक सरकारी आवास में रुके रहना… ये तो वैसा ही है जैसे कोई स्कूल छोड़ने के बाद भी क्लासरूम में बैठा रहे! सुप्रीम कोर्ट के नियम तो स्पष्ट हैं – रिटायरमेंट के 2 महीने के अंदर आवास खाली करना होता है।

अब चंद्रचूड़ साहब की बात सुनें तो उनका तर्क था कि “पहले भी तो ऐसा हुआ है”। सच कहूँ तो ये वही पुराना ‘दूसरे भी तो करते हैं’ वाला बहाना है। लेकिन कोर्ट ने इस बार इस तर्क को ठुकरा दिया। देखा जाए तो ये फैसला सिर्फ एक बंगले के बारे में नहीं, बल्कि सिस्टम में पारदर्शिता के बारे में है।

मजे की बात ये है कि पहले कोर्ट ने नोटिस भेजा था, जिसके जवाब में चंद्रचूड़ ने कहा कि वो नया घर ढूंढ रहे हैं। पर कोर्ट ने माना कि 8 महीने काफी लंबा वक्त होता है घर ढूंढने के लिए। एक तरफ तो हम आम आदमी को महीनों तक सरकारी क्वार्टर खाली करने के लिए धक्के मारते हैं, दूसरी तरफ… खैर, बात आगे बढ़ाते हैं।

इस पूरे मामले पर लोगों की राय क्या है? सुनिए:
– सरकारी बाबू: “नियम तो नियम होता है साहब!”
– कानूनविद: “सही फैसला, संपत्ति का दुरुपयोग रुकेगा”
– आम जनता: *दो खेमों में बंटी हुई* (कुछ कह रहे हैं “इन्हें सम्मान देना चाहिए”, तो कुछ बोल रहे हैं “ये तो VIP कल्चर है”)

असल में, ये केस सवाल खड़ा करता है कि क्या हमारे यहाँ ‘ऊँचे पद’ वालों के लिए अलग नियम होते हैं? कोर्ट ने तो जवाब दे दिया – नहीं!

अब आगे क्या? चंद्रचूड़ को तो बंगला खाली करना ही होगा। पर इसका बड़ा असर ये हो सकता है कि अब दूसरे पूर्व जज भी सावधान हो जाएँ। हो सकता है सरकारी आवासों के नियम और सख्त हों। सच तो ये है कि जब तक ऐसे केस सामने नहीं आते, सिस्टम में सुधार की कोई जरूरत ही नहीं समझी जाती।

तो दोस्तों, इस पूरे विवाद से एक बात तो साफ है – चाहे आप कितने भी बड़े पद पर क्यों न हों, कानून सबके लिए एक समान होना चाहिए। वैसे भी, जब सुप्रीम कोर्ट ही अपने पूर्व CJI के खिलाफ सख्त फैसला सुना दे, तो समझ जाना चाहिए कि न्यायपालिका की नजर में कोई ‘विशेष व्यक्ति’ नहीं होता। थोड़ा कड़वा सच है, पर सच तो सच ही होता है न?

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1. आखिर क्यों 8 महीने बाद भी पूर्व CJI नहीं छोड़ पाए सरकारी बंगला?

देखिए, मामला थोड़ा पेचीदा है। पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने official rules के हवाले से extended stay की मांग की थी। पर सच कहूं तो, यह उसी तरह का केस है जैसे कोई स्कूल की छुट्टी होने के बाद भी क्लासरूम में बैठा रहे! सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए साफ़-साफ़ खाली करने को कहा है।

2. कोर्ट ने क्या कदम उठाया? और क्यों?

अब यहां दिलचस्प बात यह है कि कोर्ट ने सिर्फ order ही नहीं दिया, बल्कि future के लिए एक मिसाल कायम की है। तो अब सवाल यह उठता है कि क्या अब retired judges के लिए rules और सख्त होंगे? शायद हां।

3. क्या वाकई में पूर्व CJI का यह बंगले पर कोई कानूनी हक था?

ईमानदारी से कहूं तो – बिल्कुल नहीं! यह तो वैसा ही है जैसे आपकी नौकरी खत्म होने के बाद भी आप office की चाबी रखें। Rules साफ़ हैं – service period तक ही सुविधाएं मिलती हैं। Point blank period.

4. इसका दूसरे retired judges पर क्या असर पड़ेगा?

असल में, यह केस एक तरह का वेक-अप कॉल साबित हो सकता है। अब शायद कोई भी retired judge सरकारी आवासों को अपनी personal property समझने की गलती नहीं करेगा। एक तरफ तो यह सही कदम है, लेकिन दूसरी तरफ क्या यह judges और सरकार के बीच तनाव पैदा करेगा? वक्त बताएगा।

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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