पिता ने 1000 रुपये देकर निकाला घर से, और बेटे ने बना डाला 100 करोड़ का साम्राज्य!
क्या आपने कभी सोचा है कि जिंदगी के सबसे कड़वे फैसले ही कभी-कभी सबसे मीठे नतीजे देते हैं? बसवराज एस की कहानी तो इसका जीता-जागता उदाहरण है। सुनिए न, एक वक्त था जब उनके पिता ने सिर्फ 1000 रुपये थमाए और घर से बाहर कर दिया। आज? वो एक ऐसे स्टार्टअप के मालिक हैं जिसका सालाना टर्नओवर 100 करोड़ को छू रहा है! और सबसे मजेदार बात? ये कंपनी पर्यावरण-फ्रेंडली गिफ्टिंग प्रोडक्ट्स बनाती है। सच कहूं तो ये कहानी सिर्फ पैसों की नहीं, बल्कि जिद और जुनून की भी है।
जब 1000 रुपये थे पूँजी, और सपने थे आसमान छूने के
बसवराज की कहानी तो हमारे आस-पास के किसी मिडिल क्लास लड़के जैसी ही शुरू होती है। घर वाले चाहते थे सरकारी नौकरी, पर दिल में तो कुछ और ही धड़क रहा था। जब उन्होंने बिजनेस आइडिया पिता को बताया तो… हुआ वही जो आमतौर पर होता है। झगड़ा, नाराजगी और फिर – “लो ये 1000 रुपये और घर से निकलो!”
अब सोचिए, आप होते तो क्या करते? गुस्से में पैसे फेंक देते? रोने लगते? पर बसवराज ने तीसरा रास्ता चुना – साबित करने का। शुरुआती दिनों में क्या-क्या नहीं किया – छोटे-मोटे काम, दिन-रात मेहनत… पर हार नहीं मानी। और यही जिद आज उन्हें इस मुकाम पर ले आई है।
कचरे से कंचन बनाने की कला
असल में बात ये है कि बसवराज ने संघर्ष के दिनों में ही अपनी यूनिक खूबी पहचान ली थी। उनका स्टार्टअप ऐसे इको-फ्रेंडली गिफ्ट आइटम्स बनाता है जो न सिर्फ प्लास्टिक-फ्री हैं, बल्कि पूरी तरह बायोडिग्रेडेबल भी। सोचिए, आप किसी को गिफ्ट दे रहे हैं और साथ ही पर्यावरण का भी ख्याल रख रहे हैं – दोनों बातें एक साथ!
और यही तो उनकी कामयाबी का राज है। आज उनके प्रोडक्ट्स न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों तक में धूम मचा रहे हैं। 100 करोड़ का टर्नओवर? वो तो बस एक शुरुआत है।
“पापा का गुस्सा ही मेरी सबसे बड़ी मोटिवेशन थी”
बसवराज आज जब अपने सफर के बारे में बात करते हैं तो कहते हैं, “उस वक्त तो लगा था दुनिया खत्म हो गई। लेकिन आज समझ आता है कि पिताजी ने जो किया, वो मेरे ही भले के लिए था।”
विशेषज्ञों की मानें तो “ये केस स्टडी तो बन गई है कि कैसे पर्यावरण और प्रॉफिट साथ-साथ चल सकते हैं।”
और ग्राहक? उनकी तो बात ही अलग है – “पहले तो हमें लगता था इको-फ्रेंडली मतलब बोरिंग। पर इनके प्रोडक्ट्स ने हमारी सोच ही बदल दी!”
अब तो निशाना विदेशों पर!
अब बसवराज की नजरें ग्लोबल मार्केट पर हैं। नए-नए इनोवेटिव प्रोडक्ट्स, और भी ज्यादा सस्टेनेबल सॉल्यूशंस… और टारगेट? अगले 5 साल में 500 करोड़ का टर्नओवर!
पर सबसे अच्छी बात ये है कि उनके लिए ये सिर्फ पैसा कमाने का जरिया नहीं है। जैसे वे कहते हैं, “हर प्रोडक्ट के साथ हम पर्यावरण को थोड़ा सा हेल्दी बना रहे हैं।”
सच कहूं तो बसवराज की कहानी साबित करती है कि अगर जुनून हो और हौसला हो, तो 1000 रुपये से भी 100 करोड़ का सफर तय किया जा सकता है। और हाँ, कभी-कभी पिता का गुस्सा भी आपकी सबसे बड़ी ताकत बन जाता है!
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यह कहानी तो वाकई कमाल की है, है न? सोचो, बस 1000 रुपये से शुरुआत और आज 100 करोड़ का साम्राज्य! लेकिन असल मसला यह नहीं कि यह कितना बड़ा आंकड़ा है, बल्कि यह कि छोटी-सी शुरुआत से भी क्या-क्या मुमकिन है। अरे भाई, मेहनत और लगन तो जैसे जादू की छड़ी होती है – सही दिशा में लगाओ, तो कमाल कर दिखाती है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या यह सिर्फ एक प्रेरणादायक कहानी है? नहीं यार, इससे बड़ी सीख मिलती है। देखा जाए तो यह उस बेसिक सिद्धांत को prove करती है जो हम बचपन से सुनते आए हैं – “लगे रहो, कुछ न कुछ तो होगा ही।” पर सच कहूं तो, सिर्फ लगे रहना काफी नहीं। दिशा भी सही चाहिए। वरना तो हम सब रिक्शा वाले की तरह पैडल मारते रह जाएंगे!
तो अगर आपके दिमाग में भी कोई idea घूम रहा है… क्या कर रहे हो भाई? कल पर टालने का कोई फायदा नहीं। शुरुआत तो करो, चाहे छोटी ही सही। क्योंकि यही तो वह पहला कदम है जो आपको उस 100 करोड़ के सफर पर ले जा सकता है। सच कहूं तो, मैं खुद इस कहानी से inspire हो गया हूं। आप क्या सोचते हो?
एक बात और – success का यह सफर online हो या offline, principles तो वही रहते हैं। मेरा विश्वास करो।
1000 रुपये से 100 करोड़ तक: एक ऐसी कहानी जिसमें हर सवाल का जवाब छुपा है
1. ये लड़का आखिर कौन सा बिजनेस शुरू कर बैठा?
देखिए, शुरुआत तो बिल्कुल छोटे से investment से हुई – ऐसा कोई बड़ा प्लान नहीं था। लेकिन इस लड़के ने एक ऐसा unique idea पकड़ा, जिस पर शायद ही किसी ने ध्यान दिया हो। और फिर? फिर तो जैसे सबकुछ खुद-ब-खुद चल निकला। Niche market से शुरू करके धीरे-धीरे पंख फैलाए, और आज? 100 करोड़ का empire! क्या बात है न?
2. पापा ने तो बाद में साथ दिया होगा न?
अरे भई, कहानी का सबसे emotional मोड़ यही है! शुरू में तो पिता जी भी शायद यकीन नहीं कर पा रहे थे। लेकिन जब उन्होंने देखा कि बेटा सच में अपने passion के साथ जुटा है, hard work कर रहा है… तो फिर क्या था? Emotional support तो दिया ही, साथ ही financial help भी करने लगे। पारिवारिक सपोर्ट का असली मतलब यही होता है, है न?
3. इस पूरी कहानी से हमें क्या समझना चाहिए?
ईमानदारी से कहूं तो ये कहानी हमें बस एक ही बात समझाती है – बड़े सपने देखने के लिए बड़े पैसे की जरूरत नहीं होती। छोटी सी शुरुआत, थोड़ा सा patience, और smart work… यही तो success का मंत्र है। लेकिन सच कहूं? Consistency ही असली गेम-चेंजर है। एक बार रफ्तार पकड़ लो, फिर तो…
4. संघर्ष तो जरूर रहा होगा, है न?
अरे भाई, संघर्ष न हो तो कहानी में मजा ही कहाँ! शुरुआती दिनों में तो ऐसा लगता था जैसे हर तरफ से problems ही problems आ रही हैं – पैसे की तंगी, market में बड़े-बड़े players, और failures के ढेर सारे मौके। लेकिन यहाँ वाली बात ये है कि इस लड़के ने हार मानने से इनकार कर दिया। Strong determination? हाँ, बिल्कुल। पर उससे भी बड़ी बात – problems को solve करने का जुनून। वो तो कहते हैं न – जहाँ चाह, वहाँ राह!
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