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फेड के बैंकिंग सम्मेलन में सैम अल्टमैन, पूंजी नियम और जेरोम पॉवेल का ड्रामा

फेड का बैंकिंग सम्मेलन: सैम अल्टमैन, पूंजी के नए नियम, और पॉवेल का ‘टाइटरोप वॉक’

अमेरिकी वित्तीय दुनिया इन दिनों एक ही बात पर बहस कर रही है – फेड का ताजा बैंकिंग सम्मेलन। और भई, ड्रामा तो पूरा हुआ! OpenAI के सीईओ सैम अल्टमैन से लेकर फेड चेयरमैन जेरोम पॉवेल तक सब मौजूद थे। असल में देखा जाए तो यह सिर्फ एक फॉर्मल मीटिंग नहीं, बल्कि बैंकिंग सेक्टर के भविष्य पर एक जंग थी। मकसद? 2008 जैसे हालात फिर न बनें, इसके लिए नए नियम बनाना। लेकिन अरे, जब नीति बनाने वाले और बैंकिंग वाले एक मेज पर बैठेंगे, तो बहस तो होगी ही ना?

इस पूरे मामले को समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। 2008 का वो मंदी वाला दौर याद है न? उसके बाद से फेड ने बैंकों पर Capital Requirements को लेकर सख्ती बरतनी शुरू की। मतलब साफ था – बैंकों को ज्यादा स्टेबल बनाना। लेकिन यहां दिक्कत ये हुई कि बैंकिंग और FinTech वालों को ये नियम ‘जरूरत से ज्यादा’ लगने लगे। सैम अल्टमैन जैसे टेक गुरु तो सीधे कह रहे हैं कि ये Innovation को मार रहा है। सच कहूं तो, दोनों तरफ के तर्कों में दम है। एक तरफ सुरक्षा, दूसरी तरफ प्रगति।

सम्मेलन में तीन बड़े मुद्दे उभरे। पहला – सैम अल्टमैन का Artificial Intelligence वाला पॉइंट। उनका कहना था कि सख्त नियम AI के फायदों को लेकर आगे नहीं बढ़ने देंगे। दूसरा – बैंक और रेगुलेटर्स के बीच Capital Requirements को लेकर जमकर तू-तू मैं-मैं। American Bankers Association वाले तो बिल्कुल नाराज दिखे। और तीसरा? पॉवेल साहब का बैलेंस वाला स्टेटमेंट – “नियमों में लचीलापन लाएंगे, लेकिन सुरक्षा से समझौता नहीं।” मजेदार बात ये कि ये वही लाइन है जो हर नेता हर मुद्दे पर बोलता है!

अब जनता की क्या राय है? सोशल मीडिया पर तो माहौल बिल्कुल विभाजित है। कुछ लोग चिल्ला रहे हैं – “सख्त नियम जरूरी हैं वरना फिर से 2008 जैसा हाल होगा!” वहीं दूसरी तरफ कुछ का कहना है कि लोन लेना और मुश्किल हो जाएगा। टेक कम्युनिटी तो सैम अल्टमैन के साथ खड़ी दिख रही है। छोटे बैंक वाले? उनकी चिंता अलग है – “ये नए नियम हमें तो बर्बाद कर देंगे!”

तो अब सवाल यह है – आगे क्या? फेड अगले कुछ हफ्तों में फैसला करेगा। विश्लेषक कह रहे हैं कि बैंकिंग और टेक्नोलॉजी के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए नए गाइडलाइन्स आ सकते हैं। एक बात तो तय है – ये सम्मेलन सिर्फ आज के लिए नहीं, बल्कि आने वाले कई सालों की फाइनेंशियल पॉलिसी को प्रभावित करेगा। जैसे-जैसे बैंकिंग और टेक्नोलॉजी का रिश्ता गहरा हो रहा है, फेड के लिए ये टाइटरोप वॉक और मुश्किल होता जाएगा। बैलेंस बनाना ही सबसे बड़ी चुनौती होगी। क्या वो इसे संभाल पाएंगे? वक्त बताएगा।

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Source: Dow Jones – Social Economy | Secondary News Source: Pulsivic.com

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