फेडरल रिजर्व में तूफान: क्या ट्रम्प के टैरिफ अमेरिकी अर्थव्यवस्था को डुबो देंगे?
भईया, अमेरिकी इकोनॉमी इन दिनों ऐसे उछल-कूद कर रही है जैसे कोई बच्चा रेड बुल पीकर ट्रैम्पोलीन पर हो। फेड के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने हाल ही में ब्याज दरों में कटौती का इशारा तो किया है, पर साथ ही एक बड़ा “लेकिन” भी जोड़ दिया है – मुद्रास्फीति। और अब तो ट्रम्प साहब ने अपने नए टैरिफ प्रस्तावों के साथ पूरी पारी ही पलट दी है। सच कहूं तो, ये सब मिलकर फेड की योजनाओं पर सवालिया निशान लगा रहे हैं।
पहले थोड़ा पीछे चलते हैं…
देखिए, फेडरल रिजर्व यानी Fed – अमेरिका का वो दिल है जो पूरी इकोनॉमी की धड़कन को कंट्रोल करता है। पर पिछले कुछ सालों में ये दिल बुरी तरह धड़का है। पहले COVID ने जमकर हल्ला मचाया, फिर यूक्रेन वॉर ने सप्लाई चेन्स को तहस-नहस कर दिया। नतीजा? महंगाई ने आसमान छू लिया। फेड ने तो ब्याज दरें बढ़ा-बढ़ाकर स्थिति संभालने की कोशिश की, पर अब इकोनॉमिक ग्रोथ सुस्त पड़ रही है। तो अब सवाल यह है कि क्या दरों में कटौती सही फैसला होगा?
और फिर आते हैं हमारे डोनाल्ड ट्रम्प! उनका नया टैरिफ प्रस्ताव तो ऐसा है जैसे पहले से उबलते हुए दूध में मिर्ची डाल दी हो। चीन समेत कई देशों पर एक्स्ट्रा टैरिफ? भई, इससे तो न सिर्फ ग्लोबल ट्रेड प्रभावित होगा, बल्कि महंगाई और भी भड़क सकती है। क्या फेड इस नई चुनौती के लिए तैयार है?
अभी की कहानी – गर्मागर्म अपडेट!
पॉवेल साहब कह रहे हैं कि अगर महंगाई और कम हुई और जॉब मार्केट स्थिर रहा, तो गर्मियों तक दरों में कटौती हो सकती है। पर एक मिनट… अप्रैल में CPI 3.4% रहा है! जबकि फेड का टारगेट तो महज 2% है। साफ है कि महंगाई अभी भी सरदर्द बनी हुई है।
और अब ट्रम्प के टैरिफ ने तो पूरी पिक्चर ही बदल दी है। एक्सपर्ट्स की मानें तो ये टैरिफ लागू हुए तो अमेरिकी उपभोक्ताओं की जेब पर सीधा असर पड़ेगा। सोचिए, आपका पसंदीदा iPhone और कपड़े महंगे हो जाएं तो? फेड के लिए ये नई मुसीबत खड़ी कर सकता है।
कौन क्या कह रहा है?
एक्सपर्ट्स की राय बंटी हुई है। कुछ का कहना है कि फेड की दर कटौती सही कदम है, पर ट्रम्प के टैरिफ से हालात बिगड़ सकते हैं। वहीं राजनीति के मैदान में तो माहौल और भी गर्म है। डेमोक्रेट्स इसे “इकोनॉमिक मैडनेस” बता रहे हैं, जबकि रिपब्लिकन का दावा है कि इससे अमेरिकन इंडस्ट्री को फायदा होगा।
बिजनेस वालों की चिंता और भी ज्यादा है। कई कंपनियां पहले ही आगाह कर रही हैं कि टैरिफ बढ़ने से उनकी कॉस्ट बढ़ेगी – और ये कॉस्ट तो आखिरकार हम जैसे ग्राहकों को ही उठानी पड़ेगी। क्या फेड इस नई चुनौती से निपट पाएगा?
आगे क्या होगा?
अगले कुछ महीने बेहद अहम होने वाले हैं। जून-जुलाई में फेड की मीटिंग्स में बड़े फैसले होंगे। अगर महंगाई काबू में आई तो दरों में कटौती की उम्मीद है। पर ट्रम्प के टैरिफ पर बहस तो चलती रहेगी, खासकर 2024 के चुनावों को देखते हुए।
सच तो ये है कि फेड के सामने अब बेहद मुश्किल चुनौती है। एक तरफ इकोनॉमिक ग्रोथ को बनाए रखने के लिए दरें कम करनी होंगी, तो दूसरी ओर महंगाई और ट्रम्प के टैरिफ जैसे फैक्टर्स खतरा बनकर खड़े हैं। अब देखना ये है कि फेड इन सभी धाराओं के बीच कैसे संतुलन बनाता है। एकदम टाइटरोप वॉक जैसा मामला है, है न?
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Source: Dow Jones – Social Economy | Secondary News Source: Pulsivic.com