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“भक्ति के नाम पर धोखा: 11 साल बाद सच्चाई से हुआ सामना!”

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भक्ति के नाम पर धोखा: 11 साल बाद भी जले निशान!

क्या आपको याद है वो नारायण साई? जी हाँ, वही जो अपने पिता आसाराम के साथ एक नाबालिग लड़की के साथ हुए जघन्य अपराध में आजीवन कारावास भुगत रहे हैं। अब ये खबर सुनकर आपका दिमाग चकरा जाएगा – गुजरात हाईकोर्ट ने इन्हें 5 दिन की parole दे दी है! और ये सीधे जोधपुर पहुँच गए हैं। सच कहूँ तो, ये मामला 11 साल पुराना हो चुका है, लेकिन आज भी इसकी गूँज से हमारी न्याय व्यवस्था का पूरा ढाँचा काँप उठता है। एक बच्ची की अस्मत लूटने वाले को parole? सोचिए ज़रा…

2013 का वो काला अध्याय जिसने झकझोर दिया था देश

याद कीजिए 2013 का वो दौर, जब सूरत से एक ऐसा केस सामने आया जिसने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। आसाराम और उनके बेटे पर एक नाबालिग से दुर्व्यवहार के गंभीर आरोप। असल में तो ये कोई पहला मामला भी नहीं था – आसाराम पर तो जैसे यौन शोषण के आरोपों की पूरी फाइल ही बन चुकी थी। 2018 में अहमदाबाद की कोर्ट ने इन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी। एक ऐतिहासिक फैसला, जिसने थोड़ी सी उम्मीद जगाई थी। पर अब?

Parole का नया विवाद: क्या है सच्चाई?

अब ये नया ड्रामा। नारायण साई को 5 दिन के लिए छूट मिल गई। हालाँकि कोर्ट ने कुछ शर्तें भी लगाई हैं – जैसे मीडिया से बात न करना, पुलिस की निगरानी में रहना। लेकिन सवाल तो ये है कि ऐसे गंभीर अपराध में दोषी को ये छूट मिलनी ही क्यों चाहिए? पीड़िता का परिवार तो जैसे फिर से उसी दर्द से गुज़र रहा है। उनकी आवाज़ में गुस्सा साफ झलकता है: “11 साल बाद भी न्याय अधूरा है, और अब ये parole?”

समाज का बँटा हुआ मन: कौन सही, कौन गलत?

देखिए ना इस मामले में समाज की प्रतिक्रिया। एक तरफ तो पीड़िता का परिवार है जिसके लिए ये parole एक तरह का धोखा है। वहीं दूसरी ओर, आसाराम के भक्त अब भी ये कहते नहीं थकते कि उनके “बापू” निर्दोष हैं! Human rights संगठनों की चिंता भी जायज़ है – क्या सच में प्रभावशाली लोगों के खिलाफ न्याय की गति इतनी धीमी होनी चाहिए?

आगे क्या? एक बार फिर उठते सवाल

तो अब सवाल ये है कि आगे का रास्ता क्या होगा? नारायण साई को तो 5 दिन बाद वापस जेल जाना ही है। लेकिन Supreme Court में उनकी अपील अभी लंबित है। और सामाजिक स्तर पर? ये मामला फिर से वही पुराने घाव खोल रहा है – धर्म के नाम पर, भक्ति के आड़ में हो रहे अपराधों के बारे में।

असल में ये केस सिर्फ़ एक क़ानूनी मामला नहीं रह गया है। ये हमारे समाज की नैतिकता, हमारी न्याय व्यवस्था और धार्मिक आस्था के दुरुपयोग पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न है। अब देखना ये है कि आने वाले दिनों में ये मामला किस दिशा में मुड़ता है। फिलहाल तो पूरा देश इसकी हर नई खबर पर नज़र गड़ाए बैठा है। सच कहूँ तो, ऐसे मामले हमें याद दिलाते हैं कि न्याय मिलना अभी भी कितना मुश्किल है।

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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