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खच्चर चालक से IIT-एम के MSc स्टूडेंट तक: केदारनाथ के इस टट्टू वाले की अद्भुत सफलता की कहानी

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खच्चर चालक से IIT-मद्रास तक: केदारनाथ के इस टट्टू वाले ने कैसे लिखी अपनी किस्मत?

अगर कोई मुझे 5 साल पहले बताता कि केदारनाथ की खड़ी चढ़ाई पर टट्टू चलाने वाला एक लड़का एक दिन IIT में MSc करेगा, तो शायद मैं यकीन नहीं करता। लेकिन अतुल नाम के इस 21 साल के जांबाज ने यह कर दिखाया है। और सुनिए, यह सिर्फ एक सफलता की कहानी नहीं है – यह तो उस जुनून की मिसाल है जो पहाड़ों को भी हिला देता है!

वो दिन जब किताबें थीं खच्चरों की ‘साइड लोड’

असल में बात यह है कि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के एक छोटे से गाँव में जन्मे अतुल के पास कोई विकल्प ही नहीं था। परिवार की हालत देखकर उसे 10 साल की उम्र में ही केदारनाथ के रास्ते पर टट्टू चलाना शुरू करना पड़ा। लेकिन यहाँ मजेदार बात यह है कि इस लड़के ने अपनी किताबों को कभी ‘अनावश्यक सामान’ नहीं समझा। तीर्थयात्रियों के इंतजार के वक्त, खच्चरों के बीच, यहाँ तक कि चट्टानों पर बैठकर – हर जगह यह लड़का पढ़ता रहा।

और फिर क्या? 10वीं और 12वीं में पूरे जिले में दूसरा स्थान! लेकिन मजा तो तब आया जब JAM की परीक्षा की बात आई। सुनकर हैरान रह जाओगे – इस लड़के ने पहली बार में ही क्लियर कर लिया। है न कमाल की बात?

IIT-मद्रास का वो पहला दिन जब टट्टू वाला बना MSc स्टूडेंट

आज की तारीख में अतुल न सिर्फ IIT-मद्रास में पढ़ रहा है, बल्कि उसकी इस कामयाबी ने पूरे इलाके को हिलाकर रख दिया है। NGOs से लेकर educational institutions तक, सबके सब इस ‘टट्टू वाले’ को सपोर्ट करने के लिए दौड़ पड़े। और सच कहूँ तो, यह कहानी सिर्फ अतुल की नहीं है – यह तो हर उस लड़के-लड़की के लिए एक संदेश है जो मुश्किल हालात में जूझ रहा है।

अतुल खुद मुझसे बात करते हुए कहता है, “भैया, मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि IIT जैसी जगह पर कदम रख पाऊँगा। यह सब मेरे गुरुओं और परिवार के आशीर्वाद का नतीजा है।” और फिर वह मुस्कुराकर कहता है – “पहाड़ों पर टट्टू चलाने वाला भी अगर ठान ले तो IIT तक पहुँच सकता है!”

गाँव वालों के चेहरे पर वो मुस्कान

यहाँ सबसे दिलचस्प बात यह है कि अतुल की इस कामयाबी ने पूरे इलाके के नौजवानों को एक नई राह दिखाई है। स्थानीय स्कूल के एक टीचर ने तो मजाक में कहा, “अब तो बच्चे खच्चर चलाने वालों को भी गणित के सवाल पूछने लगे हैं!”

और हाँ, अब तो कई NGOs ने ग्रामीण इलाकों के होनहार बच्चों के लिए नई योजनाएँ बनानी शुरू कर दी हैं। क्या पता, अगले साल हमें और भी ऐसी कहानियाँ सुनने को मिलें!

आगे का सफर: PhD या टीचिंग?

अतुल अब अपने भविष्य को लेकर काफी उत्साहित है। वह या तो शोध करना चाहता है या फिर टीचिंग में जाना। मैं उससे पूछता हूँ – “क्या तुम्हें लगता है कि तुम फिर से पहाड़ों पर लौटोगे?” वह हँसकर जवाब देता है, “जरूर, लेकिन इस बार टट्टू चलाने के लिए नहीं, बल्कि वहाँ के बच्चों को पढ़ाने के लिए!”

सच कहूँ तो, अतुल की यह कहानी हम सभी के लिए एक सबक है। जिंदगी में चाहे कितनी भी ऊबड़-खाबड़ राहें क्यों न हों, अगर इरादे मजबूत हों तो मंजिल जरूर मिलती है। और हाँ, अगली बार जब आप केदारनाथ जाएँ और कोई टट्टू वाला किताब पढ़ता दिखे, तो हैरान न हों – हो सकता है वह अगला अतुल हो!

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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