गरीबी से $18.8 बिलियन की कंपनी तक: दिव्या सूर्यदेवरा की वो कहानी जो आपको हिला देगी
आजकल तो हर दूसरा शख्स ‘सक्सेज स्टोरी’ बेचता नज़र आता है, है न? लेकिन कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जो सच में दिल छू जाती हैं। दिव्या सूर्यदेवरा की कहानी उन्हीं में से एक है – एक ऐसी शख्सियत जिसने गरीबी की गलियों से निकलकर ऑप्टम इनसाइट एंड फाइनेंशियल जैसी $18.8 बिलियन की कंपनी की सीईओ बनकर दिखा दिया कि जुनून और मेहनत के आगे कुछ भी नामुमकिन नहीं। और हाँ, ये सिर्फ एक ‘महिला उद्यमी’ की कहानी नहीं, बल्कि हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है जो मुश्किल हालात में भी हार नहीं मानता।
बचपन की कहानी: जहाँ संघर्ष था पहला टीचर
देखिए, हम सब अपने बचपन की यादों को गुलाबी चश्मे से देखते हैं। लेकिन दिव्या के लिए तो बचपन ही एक चुनौती था। एक साधारण भारतीय परिवार, पैसों की तंगी – पर ये सब उन्हें रोक नहीं पाया। असल में, ये मुश्किलें ही उनकी सबसे बड़ी ताकत बन गईं। क्या आप जानते हैं? उन्होंने विदेश पढ़ने का सपना देखा तब जब घर में दो वक्त की रोटी का जुगाड़ मुश्किल था। लेकिन छात्रवृत्ति और जूनून ने मिलकर ये नामुमकिन सा लगने वाला सपना पूरा कर दिखाया। सच कहूँ तो, ये वो मिसाल है जो साबित करती है कि पैसा ही सब कुछ नहीं होता।
करियर: जब छोटी-छोटी सीढ़ियों ने बनाया बड़ा सफर
अब बात करते हैं उनके करियर की। शुरुआत तो finance और technology के क्षेत्र में हुई – वो भी बिल्कुल ग्राउंड लेवल से। लेकिन यहाँ एक दिलचस्प बात – हर छोटी भूमिका में उन्होंने कुछ न कुछ सीखा। और यही सीख आगे चलकर उनके लिए गेम-चेंजर साबित हुई। ऑप्टम में ज्वाइन करना तो जैसे उनकी किस्मत ही बदल गई। यहाँ उनकी खास बात क्या थी? innovation के प्रति उनका पागलपन और लीडरशिप का नैचुरल टैलेंट। धीरे-धीरे, कदम दर कदम, वो सीईओ के पद तक पहुँच गईं। मजे की बात ये कि ये सफर उन्होंने किसी की मदद के बिना, अपने दम पर तय किया।
$18.8 बिलियन का सफर: जब चुनौतियाँ बनीं सीढ़ियाँ
अब यहाँ आकर कहानी दिलचस्प हो जाती है। दिव्या के हाथ में जब ऑप्टम की कमान आई, तब शायद उन्हें भी नहीं पता था कि वो इसे $18.8 बिलियन की कंपनी बना देंगी। लेकिन उनकी स्ट्रेटजी ने कमाल कर दिया – नए business models, technology पर ज़ोर, data analytics की ताकत। और हाँ, global expansion तो जैसे चेरी ऑन द केक था। पर ये सब इतना आसान भी नहीं था। market के उतार-चढ़ाव, competition – इन सब के बीच उन्होंने अपनी टीम को इस तरह संभाला कि कंपनी लगातार आगे बढ़ती गई। एक तरह से कहें तो उन्होंने चुनौतियों को ही अपनी ताकत बना लिया।
सफलता का फंडा: 3 मंत्र जो बदल देंगे आपकी सोच
तो अब सवाल ये उठता है कि आखिर दिव्या की सक्सेज का राज क्या है? मैंने उनके इंटरव्यूज पढ़े तो तीन चीज़ें समझ आईं:
1. मेहनत पर उनका ऐसा यकीन जैसे कोई धर्म हो
2. सीखने की भूख जो कभी खत्म नहीं होती
3. और सबसे बड़ी बात – टीम को साथ लेकर चलने का हुनर
उनका मैसेज तो क्लियर है – “डरो मत, रिस्क लो”। और ये सिर्फ युवाओं के लिए नहीं, बल्कि उन सभी महिलाओं के लिए है जो सोचती हैं कि वो नहीं कर सकतीं। सच तो ये है कि दिव्या ने साबित कर दिया कि अगर इरादे फौलादी हों तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है।
आखिरी बात: ये कहानी सिर्फ एक कहानी नहीं
देखिए, हम अक्सर ऐसी सक्सेज स्टोरीज पढ़कर इंस्पायर होते हैं और फिर भूल जाते हैं। लेकिन दिव्या की कहानी इसलिए खास है क्योंकि ये हमें याद दिलाती है कि हमारी परिस्थितियाँ हमारी तकदीर नहीं बनातीं। एक वक्त था जब उनके पास पैसे नहीं थे, लेकिन हौसले थे। और आज? वो दुनिया को दिखा चुकी हैं कि सच्ची मेहनत क्या होती है। तो अगली बार जब आपको लगे कि कुछ नहीं हो सकता, तो दिव्या की इस जर्नी के बारे में सोचिएगा। क्योंकि ये सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि हर उस इंसान के लिए एक मैसेज है जो मुश्किल हालात में भी अपने सपनों को जीना चाहता है।
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गरीबी से $18.8 बिलियन की कंपनी तक – जानिए इस कामयाबी के पीछे की असली कहानी (FAQs)
1. ये किसकी कहानी है? और क्यों खास है?
सुनिए, ये कहानी है एक ऐसे शख्स की जिसने गरीबी की गलियों से निकलकर दुनिया को दिखा दिया कि मेहनत और जुनून क्या कर सकता है। अरे, नाम तो आपको आर्टिकल में पता चल ही जाएगा, लेकिन सच कहूँ तो ये कहानी सिर्फ पैसों की नहीं, हौसले की भी है।
2. कौन सी कंपनी खड़ी की इस शख्स ने?
देखिए, इस entrepreneur ने जो कंपनी बनाई, वो [industry/field] में तहलका मचा रही है। Global level पर बात हो रही है इसकी। पर सच पूछो तो शुरुआत में लोगों ने इसे पागलपन समझा था। कंपनी के बारे में और जानकारी? वो तो आर्टिकल में ही मिलेगी, है न?
3. गरीबी से यहाँ तक पहुँचने में कितना वक्त लगा?
अरे भाई, रातों-रात तो कोई कामयाब नहीं होता! इस सफर में लगभग [X] साल लगे। संघर्ष? वो तो ऐसा था जैसे पहाड़ चढ़ना। लेकिन जब मंज़िल मिली, तो सारी मेहनत सार्थक हो गई। सच कहूँ तो ये समय सिर्फ संख्या नहीं, एक सबक है।
4. हमें इस कहानी से क्या सीख मिलती है?
ईमानदारी से कहूँ तो ये कहानी सिर्फ पैसों के बारे में नहीं है। असली सबक तो ये है कि:
– हार मान लेना आसान है, लेकिन लड़ते रहना ज़रूरी है
– सपने देखो, पर उनके पीछे पागलपन से भागो
– और सबसे बड़ी बात? कभी भी अपनी जड़ों को मत भूलो
ये सफर साबित करता है कि अगर दिल में जुनून हो, तो कुछ भी नामुमकिन नहीं। सही ना कहा?
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com