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गंगा जल संधि में बदलाव: भारत की चिंता, बांग्लादेश के लिए खतरा? मोहम्मद यूनुस की पाकिस्तान दोस्ती पर सवाल!

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गंगा जल संधि पर नया विवाद: क्या बदलेगा भारत-बांग्लादेश का पानी का फॉर्मूला? यूनुस का पाक कनेक्शन चिंता बढ़ाएगा?

जानिए क्यों है ये मुद्दा इतना गर्म

दोस्तों, गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है – ये भारत और बांग्लादेश के रिश्तों की धड़कन है। 1996 में हुई ये जल संधि अब 2026 में खत्म होने वाली है, और भारत इसके नए वर्जन पर काम कर रहा है। पर सवाल ये है कि क्या ये बदलाव हमारे पड़ोसी के लिए मुसीबत बन जाएगा? और फिर वो मोहम्मद यूनुस का पाकिस्तान से पुराना रिश्ता… चलिए समझते हैं पूरा मामला!

गंगा जल संधि: क्या था पहले का डील?

1996 का गेम चेंजर समझौता

याद कीजिए 1996 का वक्त… तब फरक्का बैराज पर हुई ये डील ने दोनों देशों के बीच पानी बाँटने का तरीका तय किया था। 30 साल के लिए बनी इस संधि के मुताबिक, बांग्लादेश को सूखे के मौसम में भी न्यूनतम पानी मिलेगा, वहीं भारत ने अपनी जरूरतों के लिए कुछ लचीलापन रखा था। सच कहें तो ये समझौता उस वक्त की बड़ी कूटनीतिक कामयाबी थी।

क्यों है गंगा इतनी अहम?

हमारे लिए गंगा सिर्फ पानी नहीं, आस्था है। लेकिन सच ये भी है कि उत्तर और पूर्वी भारत की खेती-बाड़ी इसी पर टिकी है। वहीं बांग्लादेश के लिए तो ये जीवनरेखा है – खेतों से लेकर पीने के पानी तक, सब कुछ इसी पर निर्भर। अगर पानी कम हुआ तो उनके दक्षिण-पश्चिम के इलाके सूखे की मार झेलेंगे।

क्यों चाहता है भारत बदलाव?

हमारी क्या है दिक्कत?

देखिए, अब हालात बदल गए हैं। Climate change की वजह से गंगा का प्रवाह पहले जितना नहीं रहा। हमारी अपनी जरूरतें भी बढ़ रही हैं। Experts की मानें तो नए डेटा और वॉटर मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी को देखते हुए संधि को अपडेट करना जरूरी हो गया है। असल में, अब पुराने फॉर्मूले से काम नहीं चलेगा।

बांग्लादेश क्यों है परेशान?

हमारे पड़ोसी को डर है कि नए नियमों से उनका हिस्सा कम हो जाएगा। उनके Officials खुलकर कह रहे हैं कि अगर खेती और पीने के पानी पर असर पड़ा तो स्थिति गंभीर हो सकती है। सच तो ये है कि ये मामला राजनीतिक तनाव तक पहुँच सकता है अगर दोनों तरफ से समझदारी न दिखाई गई।

मोहम्मद यूनुस का क्या है रोल?

पाकिस्तान कनेक्शन पर सवाल

नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस की पाकिस्तानी नेताओं से दोस्ती नया मोड़ ले सकती है। बांग्लादेश की राजनीति में ये मुद्दा अक्सर उठता रहा है। कुछ Critics तो यहाँ तक कहते हैं कि यूनुस का रुख भारत के प्रति नरम नहीं है, और ये जल संधि जैसे मामलों में दखल दे सकता है।

क्या बदल सकता है यूनुस की वजह से?

यूनुस का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव तो है ही, लेकिन Government sources के मुताबिक जल संधि जैसे फैसले तकनीकी आधार पर ही होंगे। पर सच ये भी है कि कूटनीति में कभी-कभी बाहरी दबाव काम कर जाते हैं। देखना ये है कि क्या यूनुस इस मामले में सक्रिय भूमिका निभाएँगे?

आगे का रास्ता: क्या हो समाधान?

बातचीत ही एकमात्र रास्ता

इस गंभीर मुद्दे का हल सिर्फ और सिर्फ खुली बातचीत से निकलेगा। Technical committees बनाकर दोनों देशों को जल प्रवाह के नए डेटा शेयर करने चाहिए। Trust-building के लिए संयुक्त रिसर्च प्रोजेक्ट्स भी अच्छा विकल्प हो सकते हैं।

टेक्नोलॉजी हो सकती है गेम चेंजर

समस्या का हल नई Technologies में छिपा हो सकता है – जैसे वर्षा जल संचयन या फिर ड्रिप इरिगेशन। अगर दोनों देश मिलकर वॉटर मैनेजमेंट प्रोजेक्ट्स पर काम करें तो गंगा का पानी और बेहतर तरीके से इस्तेमाल हो सकेगा।

अंत में…

दोस्तों, गंगा जल संधि का मामला सिर्फ पानी बाँटने तक सीमित नहीं है – ये हमारे रिश्तों की परीक्षा है। हमें आपकी राय जानना दिलचस्प लगेगा: क्या आपको लगता है कि संधि में बदलाव जरूरी है? नीचे कमेंट में अपनी बात जरूर रखें – चलिए एक स्वस्थ बहस शुरू करते हैं!

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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