गुरुदत्त की ज़िंदगी के रहस्य: ‘प्यासा’ फिल्म में छिपी थी उनकी मौत की भविष्यवाणी!

गुरुदत्त की ज़िंदगी का अनसुना सच: क्या ‘प्यासा’ में छिपा था उनका अपना ही अंत?

अरे भाई, गुरुदत्त का नाम सुनते ही दिमाग में क्या आता है? एक ऐसा कलाकार जिसने फिल्मों को नहीं, बल्कि फिल्मों ने उसे जी लिया। सच कहूं तो, उनकी ज़िंदगी उनकी फिल्मों से कहीं ज़्यादा ड्रामाई थी। सोचो, आज वो होते तो 100 साल के हो चुके होते… पर उन्होंने तो महज़ 39 साल की उम्र में ही पैक-अप कर लिया। और सबसे हैरान करने वाली बात? शायद उन्होंने अपनी मौत की भविष्यवाणी खुद अपनी ही फिल्म ‘प्यासा’ में कर दी थी। चलो, इस रहस्य को थोड़ा और गहराई से समझते हैं।

गुरुदत्त: जिसकी ज़िंदगी खुद एक स्क्रिप्ट थी

9 जुलाई 1925… बंगाल में पैदा हुआ एक बच्चा जो आगे चलकर भारतीय सिनेमा का सबसे मिसअंडरस्टुड जीनियस बनने वाला था। परिवार वैसे तो artistic था, लेकिन गुरुदत्त में कुछ अलग ही था। कविताएं लिखना, डांस करना – ये सब तो बचपन से ही उनके खून में था। और यही बात आगे चलकर उनकी फिल्मों की पहचान बनी।

मज़ेदार बात ये है कि उन्होंने तो शुरुआत choreographer के तौर पर की थी। पर जैसे कि अक्सर होता है, असली टैलेंट छुपता नहीं। ‘बाज़ी’ से लेकर ‘प्यासा’ तक – हर फिल्म में उनकी खुद की ज़िंदगी के टुकड़े बिखरे पड़े हैं। ऐसा लगता था मानो वो कैमरे के सामने नहीं, बल्कि अपनी डायरी के पन्ने पलट रहे हों।

‘प्यासा’: क्या ये गुरुदत्त का आईना था?

असल में देखा जाए तो ‘प्यासा’ सिर्फ़ एक फिल्म नहीं थी… वो तो गुरुदत्त का दर्द था जिसे उन्होंने रील पर उतार दिया। फिल्म का विजय और real life का गुरुदत्त – दोनों ही अपनी कला के लिए प्यासे थे, और दोनों को ही दुनिया से वही ठोकर मिली।

वो मशहूर गाना याद है? “ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है…” सुनते ही गालों पर आंसू आ जाते हैं। क्यों? क्योंकि ये गाना नहीं, गुरुदत्त का अपना ही दर्द था जो वो गा रहे थे। और सच कहूं तो, यही बात उनकी पूरी फिल्मोग्राफी पर लागू होती है।

10 अक्टूबर 1964: वो काली रात जिसने सबको झकझोर दिया

Depression, sleeping pills, और एक असमय मौत… गुरुदत्त ने जिस तरह से दुनिया को अलविदा कहा, वो भी किसी फिल्मी सीन से कम नहीं था। और हैरानी की बात ये कि ‘प्यासा’ का आखिरी सीन देखो – जहां विजय समुद्र की ओर चला जाता है – क्या ये गुरुदत्त के own exit का ही तो संकेत नहीं था?

उनके करीबी तो यही मानते हैं कि उन्होंने अपनी फिल्मों में ही अपना भविष्य लिख दिया था। थोड़ा डरावना लगता है न? पर क्या सच में ऐसा हो सकता है?

आज भी ज़िंदा हैं गुरुदत्त

साल हो गए उनके जाने को, पर उनकी कला आज भी हमारे बीच है। ‘प्यासा’ और ‘कागज़ के फूल’ की बातें आज भी उतनी ही सच हैं जितनी तब थीं। अगर वो आज होते… अरे, सोचकर ही मन दुख जाता है। इस commercialized film industry को देखकर शायद वो फिर से वही गाना गुनगुनाते – “ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है…”

अंतिम सवाल: क्या कलाकार की मौत उसकी कला में पहले से छिपी होती है?

सच तो ये है कि गुरुदत्त ने अपनी फिल्मों में ही अपनी ज़िंदगी की स्क्रिप्ट लिख दी थी। उनकी मौत रहस्य बनी हुई है, पर उनकी कला हमेशा ज़िंदा रहेगी। और ‘प्यासा’… वो तो सिर्फ़ एक फिल्म नहीं, एक आईना थी जिसमें गुरुदत्त ने खुद को ही देख लिया था।

एकदम सच। बिल्कुल।

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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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