हरिद्वार में 5 करोड़ कांवड़ियों का ‘गिफ्ट’? ज़हरीला कचरा और प्रशासन की सिरदर्दी!
क्या आपने कभी सोचा है कि इंसान एक दिन में कितना कचरा पैदा कर सकता है? हरिद्वार में कांवड़ मेले ने इसका जीता-जागता उदाहरण पेश किया है। अभी-अभी यात्रा समाप्त हुई है, और शहर लाखों टन प्लास्टिक, थर्मोकोल और भगवान जाने क्या-क्या से पटा पड़ा है। असल में, 5 करोड़ कांवड़ियों ने जो ‘यादगार’ छोड़ी है, उसे साफ करने में नगर निगम के पसीने छूट रहे हैं। हर की पैड़ी की हालत तो देखकर लगता है जैसे किसी ने सारा कचरा यहीं उड़ेल दिया हो!
आखिर ये हालात क्यों बने?
देखिए, हरिद्वार में कांवड़ यात्रा तो हर साल होती है। लेकिन इस बार? अरे भई, रिकॉर्ड तोड़ संख्या में श्रद्धालु आए! और साथ लाए प्लास्टिक की बोतलों, पूजा सामग्री और खाने-पीने के पैकेटों का अंबार। मजे की बात ये कि पिछले साल भी यही हुआ था, पर इस बार तो मामला बिल्कुल हाथ से निकलता दिख रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो अगर अभी नहीं संभले, तो गंगा मैया की हालत और खराब हो जाएगी। सच कहूं तो ये स्थिति वाकई डराने वाली है।
प्रशासन ने क्या किया?
तो जनाब, नगर निगम ने 1000 से ज्यादा सफाई कर्मचारियों को झोंक दिया है मैदान में। हर की पैड़ी को पहले साफ करने की कोशिश चल रही है। साथ ही कचरे को बायोडिग्रेडेबल और नॉन-बायोडिग्रेडेबल में बांटा जा रहा है – जो कि अच्छी बात है। लेकिन यहां तो कचरा इतना ज्यादा है कि… खैर। और हां, एनजीटी (National Green Tribunal) भी अब इस मामले में कूद पड़ी है। प्रशासन पर दबाव बढ़ता ही जा रहा है।
कौन क्या कह रहा है?
नगर निगम वाले तो हाथ खड़े कर चुके हैं – उनका कहना है “भई, हम 24 घंटे काम कर रहे हैं, पर ये कचरा तो कम होने का नाम ही नहीं ले रहा!” वहीं पर्यावरणविद् डॉ. राजीव नैयर सीधे चेतावनी दे रहे हैं: “अगर यही हाल रहा, तो गंगा का पूरा इकोसिस्टम चौपट हो जाएगा।” और स्थानीय लोगों की मांग? बिल्कुल साफ – “सिंगल-यूज प्लास्टिक पर पूरी तरह बैन लगाना होगा!”
आगे की राह क्या है?
अब प्रशासन अगले साल के लिए सख्त नियम बनाने की सोच रहा है। प्लास्टिक-मुक्त कांवड़ यात्रा का अभियान चलाया जाएगा। एनजीटी की रिपोर्ट के आधार पर नए निर्देश भी आ सकते हैं। पर सच पूछो तो ये पूरा मामला एक बड़ा सवाल खड़ा करता है – क्या हम धर्म और पर्यावरण के बीच संतुलन बना पाएंगे?
अंत में एक सवाल जो मन में कौंधता है – क्या हरिद्वार जैसे पवित्र शहर में भक्ति और स्वच्छता साथ-साथ चल सकती है? जवाब तो समय ही देगा, लेकिन फिलहाल तो प्रशासन और आम जनता को मिलकर इस गंदगी से निपटना होगा। वरना… खैर, आप समझ ही गए होंगे!
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हरिद्वार में कांवड़ यात्रा के बाद का नज़ारा कुछ ऐसा है कि देखकर दिल दहल जाता है। सिर्फ़ 5 करोड़ कांवड़ियों ने जो कचरा छोड़ दिया, वो सिर्फ़ गंदगी नहीं, बल्कि ज़हर बन चुका है। और सच कहूँ तो, ये सिर्फ़ पर्यावरण की बात नहीं – प्रशासन के पसीने छुड़ा देने वाली मुसीबत खड़ी हो गई है।
अब सवाल यह है कि क्या हम सच में इतने बेपरवाह हो गए हैं? Sustainable practices की बात करें तो वो सिर्फ़ किताबों तक ही सीमित क्यों रह गई? अगर अभी नहीं चेते, तो आने वाले सालों में हालात और भी भयानक हो सकते हैं। सच कहूँ तो, ये घटना हमें जगाने के लिए काफ़ी है… लेकिन क्या हम सुनेंगे?
(थोड़ा कड़वा सच, पर सच तो सच होता है न?)
हरिद्वार में कचरा प्रदूषण – जानिए वो सवाल जो आप पूछना चाहते हैं
1. क्या सच में 5 करोड़ कांवड़ियों ने हरिद्वार को कचरे का पहाड़ बना दिया?
अरे भाई, आंकड़े तो चौंकाने वाले हैं! इस बार के कुंभ में लगभग 5000 टन से ज़्यादा कचरा पीछे छूट गया – प्लास्टिक की बोतलें, पॉलीथीन के ढेर, और पूजा के बाद फेंकी गई सामग्री। सोचिए, ये सब कुछ हमारी पवित्र गंगा के किनारे ही तो जमा हुआ है। क्या हम सच में ऐसी ‘भेंट’ देना चाहते हैं?
2. गंगा मैया पर ये कचरा क्या असर डाल रहा है?
देखिए, बात सिर्फ पानी के दिखने में गंदा होने की नहीं है। असल में तो:
– मछलियाँ और दूसरे जलीय जीव दम तोड़ रहे हैं
– पानी की quality इतनी खराब हुई कि नहाने लायक भी नहीं रहा
– नदी किनारे का पूरा इकोसिस्टम बिगड़ रहा है
और सबसे बड़ी बात – हम खुद ही अपनी माँ गंगा को मार रहे हैं। विडंबना देखिए!
3. सरकारी दावे बनाम हकीकत – क्या कर रहा है प्रशासन?
सच कहूँ तो डस्टबिन लगाने और awareness campaigns चलाने से काम नहीं चलने वाला। हाँ, कुछ कोशिशें हुई हैं:
✓ ज़्यादा कर्मचारी लगाए गए
✓ कचरा उठाने की फ्रीक्वेंसी बढ़ाई
✓ कांवड़ियों को समझाया गया
लेकिन यार, जब तक हमारी सोच नहीं बदलेगी, स्थिति वैसी की वैसी रहेगी। सच नहीं?
4. आप और मैं – छोटे-छोटे कदम जो बड़ा बदलाव ला सकते हैं
अब सवाल यह है कि हम क्या कर सकते हैं? कुछ आसान उपाय:
– हमेशा reusable bottle साथ रखें – एक बार की बचत भी मायने रखती है
– पॉलीथीन की जगह कपड़े के थैले अपनाएँ
– कचरा कहीं भी फेंकने के बजाय डस्टबिन तक चलकर जाएँ
– दूसरों को भी समझाएँ – शेयर करें, पोस्ट करें, बताएँ
याद रखिए, हर छोटी कोशिश मायने रखती है। आखिर गंगा हमारी माँ है न?
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com