हरिद्वार मंदिर में वो दर्दनाक पल: 6 श्रद्धालुओं की जान चली गई, 15 घायल – क्या यह सिर्फ एक ‘दुर्घटना’ थी?
सुबह-सुबह पूजा-अर्चना का वक्त… शांति और आस्था का माहौल… और फिर अचानक वो भयावह हादसा। हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर में आज सुबह जो हुआ, वो सुनकर रूह कांप जाती है। भगदड़ में 6 मासूम जिंदगियां चली गईं – चार महिलाएं और दो पुरुष। 15 से ज्यादा लोग घायल। सवाल यह है कि आखिर ये हादसा हुआ कैसे? असल में, सुबह 7 बजे आरती के वक्त अचानक भीड़ बढ़ गई। लोग एक साथ अंदर घुसने की कोशिश करने लगे। और फिर… वो हुआ जिसका अंदाजा शायद किसी को नहीं था।
अब थोड़ा मंदिर के बारे में बात कर लेते हैं। मनसा देवी मंदिर हरिद्वार का प्रमुख तीर्थ है – ये तो सब जानते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि weekend पर यहां क्या हालात होते हैं? दिल्ली, UP और आसपास के राज्यों से लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है। मंदिर में भीड़ नियंत्रण (crowd management) की हालत? सच कहूं तो बेहद खराब। आज जो हुआ, वो तो होना ही था। क्योंकि चेतावनी के संकेत तो बहुत पहले से मिल रहे थे।
हादसे के बाद: क्या कुछ हुआ अब तक?
मृतकों में ज्यादातर UP और हरियाणा के रहने वाले हैं। घायलों को नजदीकी अस्पतालों में भर्ती कराया गया है – तीन की हालत गंभीर बताई जा रही है। अब सवाल यह है कि जिम्मेदार कौन? मंदिर ट्रस्ट का कहना है, “हमने सारे इंतजाम किए थे…” लेकिन सच्चाई? जमीन पर हालात कुछ और ही बयां कर रहे हैं। परिजनों का गुस्सा देखिए: “सुरक्षा गार्ड्स ही नहीं थे!” एकदम सही कह रहे हैं न?
प्रशासन ने तुरंत कुछ कदम उठाए हैं – मुआवजे की घोषणा (5 लाख मृतकों के लिए, 50 हजार घायलों को), जांच समिति बनाई गई है। लेकिन क्या ये काफी है? जब जानें जा चुकी हैं तो ये सब करके क्या फायदा? सच तो ये है कि हम हर बार ऐसी घटनाओं के बाद ‘कड़े कदम’ की बात करते हैं, फिर भूल जाते हैं।
आगे क्या? क्या सबक मिलेगा इस बार?
प्रशासन ने कुछ योजनाएं बताई हैं – CCTV बढ़ाने की बात, crowd control force की बात। अच्छी बातें हैं। लेकिन असली सवाल ये है कि क्या इन्हें सही तरीके से लागू किया जाएगा? या फिर कुछ दिनों बाद सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा?
ईमानदारी से कहूं तो, ये सिर्फ हरिद्वार की कहानी नहीं है। हमारे देश के ज्यादातर धार्मिक स्थलों पर यही हालात हैं। भीड़, अराजकता, लापरवाही… और फिर ऐसी त्रासदियां। कितने और जानें जाएंगी इस व्यवस्था की भेंट? सोचकर ही दिल दहल जाता है।
आज कुछ परिवारों ने अपनों को खो दिया है। सिर्फ मुआवजा दे देने से क्या उनका दर्द कम हो जाएगा? शायद नहीं। बस उम्मीद करते हैं कि इस बार सच में कुछ सबक मिले। वरना… अगली बार किसकी बारी होगी? कोई नहीं जानता।
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हरिद्वार मंदिर भगदड़ – वो सवाल जो आप पूछना चाहते हैं
हरिद्वार मंदिर में भगदड़ की असली वजह क्या थी?
सुबह की आरती का वक्त था, और अचानक क्या हुआ? भीड़ इतनी बढ़ गई कि कंट्रोल ही खत्म हो गया। 6 लोगों की जान चली गई, 15 से ज्यादा घायल… बात सिर्फ numbers की नहीं है, बल्कि system की failure की है। Police का कहना है कि unexpected rush था, लेकिन सवाल तो यह है कि unexpected कैसे हो सकता है जब हर साल यही होता है?
क्या सच में मंदिर प्रबंधन के पास कोई योजना नहीं थी?
देखिए, कागजों पर तो सबकुछ था – crowd control, security staff, arrangements… पर असलियत? वही ढाक के तीन पात। Eyewitnesses बता रहे हैं कि संकरे रास्ते और अचानक की भगदड़ ने स्थिति को बर्बाद कर दिया। सच तो यह है कि हमारे यहाँ ‘जुगाड़’ से काम चलता है, proper planning से नहीं।
घायलों को कहाँ इलाज मिल रहा है?
तुरंत हरिद्वार के local hospitals में ले जाया गया, जहाँ emergency treatment शुरू हुआ। कुछ गंभीर मरीजों को देहरादून के बेहतर अस्पतालों में भेजा गया। अच्छी बात यह कि Uttarakhand सरकार ने फ्री treatment का ऐलान कर दिया। पर सवाल यह भी है कि क्या इलाज के बाद हम सिस्टम का इलाज करेंगे?
अब क्या बदलाव होने वाले हैं?
Authorities ने नए guidelines जारी किए हैं – more CCTV cameras, extra staff at entry points… सबकुछ वही जो हर बार हादसे के बाद कहा जाता है। असली बदलाव तो तब आएगा जब हम सब मिलकर discipline को अपनाएँगे। वैसे भी, क्या हमें हर बार दुर्घटना का इंतज़ार करना चाहिए सुधार के लिए?
एक बात और – ये सिर्फ guidelines की नहीं, execution की कहानी है। देखते हैं कि इस बार कितना अमल होता है। आपको क्या लगता है?
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com