हाईकोर्ट जज बना आरोपी, महिला जज ने दिया इस्तीफा – क्या है पूरा ड्रामा?
सुनकर हैरानी होगी, लेकिन मध्य प्रदेश के शहडोल की जूनियर सिविल जज अदिति कुमार शर्मा ने इस्तीफा देकर न्यायपालिका में तूफान ला दिया है। असल में बात ये है कि जिस सीनियर जज पर उन्होंने उत्पीड़न के आरोप लगाए थे, उसे ही अब हाईकोर्ट का जज बना दिया गया! सोचिए, कैसा लगेगा पीड़िता को? ये केस सिर्फ कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा का सवाल नहीं उठाता, बल्कि सिस्टम की खामियों को भी बेनकाब करता है। और हां, ये सवाल तो उठना ही था – क्या हमारी न्यायिक व्यवस्था में जवाबदेही नाम की कोई चीज़ बची है?
क्या हुआ था असल में?
अदिति जी तो काफी समय से अपने सीनियर के खिलाफ शिकायत कर रही थीं – उत्पीड़न से लेकर अनुचित व्यवहार तक। उन्होंने आंतरिक शिकायत भी दर्ज कराई, पर जैसा अक्सर होता है – लटक गया मामला। और फिर क्या? जिस पर आरोप थे, उन्हें पदोन्नति मिल गई! अब इसे कहेंगे न्याय? ये तो वाकई में ‘अपराधी को इनाम, पीड़ित को सज़ा’ वाली कहावत चरितार्थ करता है। सच कहूं तो, ये पूरा प्रकरण न्यायपालिका की शिकायत निवारण प्रणाली की पोल खोल देता है।
ताज़ा अपडेट क्या है?
10 जुलाई को अदिति जी ने इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे के पत्र को पढ़ें तो साफ झलकता है दर्द – न्यायपालिका में महिलाओं के साथ भेदभाव और सिस्टम की विफलता पर सीधे-सीधे आरोप। पर हैरानी की बात ये है कि हाईकोर्ट प्रशासन अभी तक चुप्पी साधे हुए है। क्या ये चुप्पी सवालों को और नहीं बढ़ाती? मेरा मानना है कि ऐसे संवेदनशील मामलों में पारदर्शिता होनी ही चाहिए। वरना आम जनता का भरोसा कैसे बनेगा?
किसने क्या कहा?
अदिति जी का बयान दिल दहला देने वाला है – “न्यायपालिका में काम करने का सपना देखा था, पर सिस्टम ने ही हतोत्साहित किया।” वकील संघ के लोग भी इस मामले को लेकर गंभीर हैं और जांच की मांग कर रहे हैं। महिला अधिकार संगठनों की प्रतिक्रिया तो और भी सख्त है। उनका कहना है कि “ये मामला न्यायपालिका में महिलाओं की सुरक्षा पर सीधा प्रहार है।” सच कहूं तो, अब तो ये केस सिर्फ एक शिकायत से आगे बढ़कर सिस्टम के खिलाफ आवाज़ बन चुका है।
आगे क्या होगा?
अब तो लगता है सुप्रीम कोर्ट या महिला आयोग को हस्तक्षेप करना पड़ेगा। विशेषज्ञों की मानें तो इस घटना के बाद नए दिशा-निर्देश आ सकते हैं। पर सवाल ये है कि क्या कागजी नियम काफी हैं? अदिति जी के इस्तीफे ने न्यायिक सुधारों पर बहस को नया मोड़ दे दिया है। शायद अब कुछ बदलाव आएं। पर कब तक? और कितना?
देखिए, ये केस तो बस टिप ऑफ द आइसबर्ग है। न्यायपालिका में महिलाओं की स्थिति, कार्यस्थल उत्पीड़न और जवाबदेही की कमी जैसे मुद्दे तो बरसों से चले आ रहे हैं। शायद अब वक्त आ गया है कि हम इन समस्याओं को गंभीरता से लें। वरना… अदिति जी जैसे और भी सपने टूटते रहेंगे। और ये किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्म की बात होगी। सच कहूं तो!
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हाईकोर्ट जज बना आरोपी – जानिए पूरा मामला और उससे जुड़े सवाल
1. पूरा मामला क्या है? समझिए आसान भाषा में
देखिए, मामला कुछ ऐसा है – एक हाईकोर्ट जज जिस पर आरोप लगे हैं, उसे नियुक्ति मिल गई। और यहाँ तो बात खत्म नहीं हुई! साथ ही एक महिला जज ने इस्तीफा दे दिया। अब सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ एक सामान्य नियुक्ति थी या इसमें कुछ और ही चल रहा था?
2. महिला जज का इस्तीफा – क्या है पूरी कहानी?
असल में बात ये है कि महिला जज को ये नियुक्ति बिल्कुल पसंद नहीं आई। ईमानदारी से कहूँ तो, उन्होंने सवाल उठाए कि क्या यह फैसला नैतिक था? और जब आपके सिद्धांतों से समझौता करना पड़े, तो इस्तीफा देना ही बेहतर होता है। है न?
3. आरोपी जज पर लगे आरोप – कितने गंभीर हैं?
अब यहाँ बात थोड़ी गंभीर हो जाती है। भ्रष्टाचार और पद का दुरुपयोग जैसे आरोप कोई हल्की बात तो हैं नहीं। लेकिन सच्चाई ये है कि अभी तक सब कुछ साफ-साफ सामने नहीं आया है। क्या यह सिर्फ अफवाहें हैं या कुछ सच्चाई भी है? वक्त ही बताएगा।
4. न्यायपालिका पर क्या असर पड़ेगा? एक बड़ा सवाल
देखा जाए तो ये मामला सिर्फ एक नियुक्ति तक सीमित नहीं है। इससे judicial system की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। transparency और accountability की बहस फिर से शुरू हो गई है। क्या हमारी न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की जरूरत है? शायद इस घटना के बाद ये सवाल और जोर से उठेंगे।
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com