संविधान से ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ हटाने की बात? हिमंत बिस्वा सरमा ने छेड़ा नया विवाद!
अरे भाई, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने तो एक ऐसा बम फोड़ दिया है जिसकी गूंज पूरे देश में सुनाई दे रही है। सीधे-सीधे कह दिया कि “अब समय आ गया है संविधान से समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता शब्द हटाने का!” वाह, बात तो बड़ी मजेदार है न? पर असल मसला क्या है? दरअसल, उनका आरोप है कि 1976 में इंदिरा गांधी ने 42वें संशोधन के जरिए ये शब्द जबरन ठूंस दिए थे। और अब? अब तो पूरा ट्विस्ट हो गया है!
पूरा माजरा क्या है? 42वां संशोधन और उसका सच
देखिए, बात समझनी है तो 1976 के उस 42वें संशोधन को समझना होगा। इतिहास की किताबें इसे “मिनी-कॉन्स्टिट्यूशन” कहती हैं – मतलब इतने बदलाव किए कि लगा जैसे नया संविधान ही बना दिया हो! है न मजेदार? और सबसे बड़ी बात – इसी में प्रस्तावना में “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्द जोड़े गए। पर सच तो ये है कि ये सब हुआ आपातकाल के दौरान… जब विपक्ष जेलों में बंद था। क्या आपको नहीं लगता कि ये थोड़ा… संदिग्ध लगता है?
हिमंत सरमा का पॉइंट: क्या सच में बदल गया था मूल ढांचा?
अब सरमा साहब क्या कह रहे हैं? उनका तो सीधा सा तर्क है – “भैया, ये तो बाद में जोड़ी गई चीजें हैं, असली संविधान में तो ये था ही नहीं!” सच कहूं तो उनकी बात में दम तो है। अंबेडकर और कंपनी ने तो इन शब्दों को रखा ही नहीं था। पर सवाल ये उठता है कि क्या सिर्फ इसलिए हटा देना चाहिए? ये तो वैसा ही हुआ जैसे कोई कहे – “अरे ये दीवार तो बाद में बनी है, तोड़ दो!” थोड़ा अजीब लगता है न?
राजनीति गरमाई: कौन क्या बोला?
और फिर शुरू हो गया तू-तू मैं-मैं! भाजपा वाले तालियां बजा रहे हैं – “हां हां, संविधान को वापस उसके मूल स्वरूप में लाओ!” वहीं कांग्रेस वाले आग बबूला – “अरे ये तो संविधान की आत्मा पर हमला है!” बीच में फंसे गरीब विधि विशेषज्ञ… जो सोच रहे हैं कि अगर ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो क्या होगा? एक तरफ तो संविधान की मूल भावना, दूसरी तरफ संशोधनों की वैधता। मुश्किल है भई, बहुत मुश्किल!
आगे क्या? 2024 का नया इश्य!
अब तो लगता है 2024 के चुनावों में ये नया मसला गरमाने वाला है। कल्पना कीजिए – “संविधान की प्रस्तावना बनाम मूल संविधान” पर पूरा चुनावी मैदान गरमा दिया जाएगा! और अगर सरकार ने हटाने की कोशिश भी की तो? फिर तो सुप्रीम कोर्ट में धमाल मच जाएगा। केजेडी… केस जिसने देश को दो हिस्सों में बांट दिया हो!
तो क्या सीखा आज? हिमंत सरमा का ये बयान कोई साधारण बयान नहीं है। ये तो एक नई बहस की शुरुआत है – संविधान के अतीत, वर्तमान और भविष्य को लेकर। अब देखना ये है कि दिल्ली की सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है। और हां… अगले कुछ महीनों में टीवी डिबेट्स देखने के लिए तैयार रहिए। पॉपकॉर्न का स्टॉक जमा कर लीजिए!
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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com