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“हिंदी अरुणाचल को जोड़ने वाली भाषा, सीखने में नहीं कोई दिक्कत: CM पेमा खांडू”

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हिंदी अरुणाचल को जोड़ने वाली भाषा, सीखने में नहीं कोई दिक्कत: CM पेमा खांडू

अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने तो एकदम सही बात कही है! हाल ही में उन्होंने हिंदी को राज्य की “link language” बताते हुए एक बेहद अहम बयान दिया। असल में, उनका कहना है कि हिंदी सीखना कोई रॉकेट साइंस नहीं है – और यही भाषा अरुणाचल के अलग-अलग समुदायों को जोड़ने का काम कर सकती है। मजे की बात ये है कि यह बयान ऐसे वक्त आया है जब पूरे देश में भाषा और एकता को लेकर बहस चल रही है। तो क्या हिंदी वाकई में ये जादू कर पाएगी?

अब थोड़ा अरुणाचल की ग्राउंड रियलिटी समझ लेते हैं। देखिए, यहां तो 26 से ज्यादा बड़ी जनजातियां हैं, और उनकी 100 से ऊपर उप-जनजातियां! हर एक की अपनी भाषा, अपनी परंपराएं। ऐसे में हिंदी पहले से ही स्कूलों में पढ़ाई जाती रही है। पर सवाल ये है कि क्या ये सिर्फ किताबी भाषा बनकर रह गई है? मुख्यमंत्री साहब का मानना है कि नहीं – ये तो लोगों को जोड़ने का काम कर सकती है। वैसे, ये पहली बार नहीं है जब खांडू जी ने हिंदी के बारे में ऐसी बातें कही हैं।

पिछले दिनों एक कार्यक्रम में तो उन्होंने बिल्कुल साफ शब्दों में कह दिया – “हिंदी सीखने से कोई नुकसान नहीं, फायदा ही फायदा है!” उनका तर्क समझ में आता है – हिंदी आएगी तो स्थानीय भाषाएं थोड़े ही मर जाएंगी। बल्कि ये तो अलग-अलग समुदायों के बीच बातचीत को आसान बनाएगी। सरकारी sources के मुताबिक तो अब नई policies भी आने वाली हैं – टीचर्स को बेहतर training देना, syllabus को practical बनाना… पर क्या ये सब कागजों तक ही सीमित रहेगा?

अब जनाब, प्रतिक्रियाएं तो मिली-जुली आ रही हैं। कुछ लीडर्स ताली बजा रहे हैं, तो कुछ का कहना है कि पहले अपनी मातृभाषाओं को बचाओ। शिक्षाविदों की एक राय ये भी है कि हिंदी को रोजमर्रा की जिंदगी से जोड़ना होगा – वरना ये सिर्फ exam पास करने का जरिया बनकर रह जाएगी। युवाओं की सोच? वो तो हिंदी को job opportunities और देश के बाकी हिस्सों से जुड़ने का जरिया मानते हैं। पर कुछ लोगों को डर है – कहीं उनकी अपनी भाषाएं पीछे न छूट जाएं!

आगे की बात करें तो सरकार क्या करने वाली है? टीचर्स को train करना, syllabus को upgrade करना… पर सबसे बड़ी चुनौती होगी local languages और हिंदी के बीच balance बनाना। केंद्र की “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” योजना के तहत तो हिंदी को और बढ़ावा मिलेगा ही। पर क्या अरुणाचल अपनी खासियत बरकरार रख पाएगा?

सच कहूं तो, मुख्यमंत्री का बयान साफ दिखाता है कि सरकार हिंदी को लेकर गंभीर है। पर यहां की diversity को देखते हुए ये बहस लंबी चलने वाली है। local languages को बचाना और हिंदी को अपनाना – ये दोनों ही जरूरी हैं। अंत में बात यही आती है कि संतुलन कैसे बनेगा? क्योंकि अरुणाचल की पहचान तो उसकी विविधता में ही है, है न?

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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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