17 जुलाई: वो दिन जब महिलाओं के लिए IAS-IPS के सपने हकीकत बने!
क्या आप जानते हैं 17 जुलाई को हमारे देश में क्या खास हुआ था? साल 1948 का यह दिन सचमुच ऐतिहासिक था – जब पहली बार महिलाओं को IAS, IPS जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने का मौका मिला। सोचिए, आज से सिर्फ 75 साल पहले तक ये रास्ते उनके लिए बंद थे! सरकार के इस फैसले ने न सिर्फ लैंगिक समानता की नींव रखी, बल्कि हमारे समाज को एक नई दिशा दी। और ये कोई छोटी बात नहीं थी, है न?
जब बदलाव की जरूरत थी सबसे ज्यादा
अंग्रेजों के जमाने की बात करें तो… उस वक्त तो महिलाओं के लिए सिविल सर्विसेज में जाने का सवाल ही नहीं उठता था। सच कहूं तो उस दौर में तो ये माना जाता था कि “ये पुरुषों का क्षेत्र है”। लेकिन 1947 में आजादी मिलने के बाद संविधान ने सभी को बराबरी का हक दिया। और फिर? फिर तो 1948 में सरकार ने यह ऐतिहासिक फैसला ले ही लिया। देखा जाए तो ये सिर्फ एक नीति नहीं, बल्कि सोच में आमूलचूल परिवर्तन था!
पहली महिला IAS से लेकर किरण बेदी तक – एक सफर
और फिर क्या हुआ? 1951 में अन्ना राजम मल्होत्रा ने IAS क्रैक करके दिखा दिया कि महिलाएं भी किसी से कम नहीं। सच कहूं तो उस वक्त ये कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी। फिर 1972 में किरण बेदी आईं, जिन्होंने IPS जॉइन करके तो एक नया इतिहास ही लिख दिया। ये दोनों महिलाएं साबित कर गईं कि अब महिलाओं के लिए कोई सीमा नहीं। और ये सब संभव हुआ 17 जुलाई 1948 के उस फैसले से!
समाज ने कैसे लिया इस फैसले को?
सरकारी बयानों में तो इसे “लैंगिक समानता की दिशा में बड़ा कदम” बताया गया। लेकिन असल में? समाज में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आईं। कुछ लोगों को लगा कि “ये तो परंपराओं के खिलाफ है”, वहीं प्रगतिशील लोगों ने इसे “क्रांतिकारी बदलाव” बताया। आज की महिला अधिकारी सही कहती हैं – हम जहां हैं, उसकी शुरुआत तो इसी दिन से हुई थी। सचमुच गर्व की बात है!
आज कहां खड़े हैं हम?
सच तो ये है कि आज भी IAS-IPS में महिलाओं की संख्या पुरुषों से कम है। लेकिन अच्छी बात ये है कि ये संख्या लगातार बढ़ रही है। सरकार ने maternity leave और workplace safety जैसे कदम उठाए हैं। पर सिर्फ सरकार ही क्यों? समाज को भी तो अपनी सोच बदलनी होगी, है न? मेरा मानना है कि आने वाले सालों में और भी महिलाएं सिविल सर्विसेज में आएंगी, जो administration को और भी समृद्ध बनाएगी।
तो देखा आपने? 17 जुलाई 1948 सचमुच एक मील का पत्थर था। ये दिन उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा है जो देश की सेवा करना चाहती हैं। और साबित कर दिया कि अब कोई भी क्षेत्र “मेन्स ओनली” नहीं रहा। क्या आपको नहीं लगता कि ये हम सभी के लिए गर्व की बात है?
17 जुलाई – वो ऐतिहासिक दिन जब महिलाओं ने IAS, IPS जैसी परीक्षाओं में दस्तक दी | सवाल-जवाब
1. 17 जुलाई को आखिर क्या हुआ था जो इतना खास बना देता है?
देखिए, ये वो दिन था जब British India के दरवाज़े महिलाओं के लिए खुले। 17 जुलाई 1921 – Civil Services में पहली बार महिलाओं को entry मिली। वो भी ऐसी services जिन्हें आज हम IAS, IPS के नाम से जानते हैं। है न क्रांतिकारी बात? लेकिन सच तो ये है कि इससे पहले तो ये परीक्षाएं सिर्फ पुरुषों का हक समझी जाती थी।
2. क्या entry मिलते ही महिलाएं बन गईं IAS, IPS? सच्चाई जानकर हैरान रह जाएंगे!
अरे भई नहीं! बात तो सिर्फ दरवाज़ा खुलने की थी। असल में, entry तो मिल गई, लेकिन पूरी आज़ादी? वो नहीं। महिलाओं को कई restrictions के साथ ही रखा जाता था। पूरी बराबरी? वो तो आज़ादी के बाद मिली। है न मजेदार कि दरवाज़ा खुला तो था, पर पूरी तरह से नहीं?
3. ये ऐतिहासिक बदलाव हुआ कैसे? पीछे किसका हाथ था?
सुनिए, credit जाता है Montagu-Chelmsford reforms (1919) को। पर सिर्फ यही नहीं। उस ज़माने के social reformers की मेहनत भी कम नहीं थी। ये वो लोग थे जिन्होंने महिलाओं के लिए equal opportunities की आवाज़ उठाई। सोचिए, अगर ये लोग न होते, तो शायद आज का इतिहास कुछ और ही होता!
4. आज कितनी महिलाएं हैं IAS/IPS? क्या सच में बदलाव आया है?
अब तो हालात बदल चुके हैं! आज भारत में 1000+ से ज़्यादा महिला IAS/IPS officers हैं। और ये संख्या लगातार बढ़ भी रही है। कुछ नाम? Anna Rajam Malhotra – पहली महिला IAS। Sanjukta Parashar – असम की पहली महिला IPS। पर सच कहूं? अभी भी लंबा सफर बाकी है। लेकिन शुरुआत तो अच्छी हुई न?
एक बात और – ये सिर्फ numbers की बात नहीं है। ये उस सोच की कहानी है जो धीरे-धीरे बदली। सच में।
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com