IIM में दाखिला लेने वाली ड्राइवर की बेटी: कैंसर को हराकर कैसे रचा इतिहास?
ज़िंदगी कभी-कभी ऐसे मोड़ ले आती है जहाँ सामान्य लोग टूट जाते हैं। लेकिन कुछ लोग? वो इन्हें चुनौती समझकर पार कर जाते हैं। अंजली भारती की कहानी ऐसी ही है – एक ऐसी लड़की जिसने Leukemia जैसी जानलेवा बीमारी को मात देकर IIM लखनऊ में दाखिला लिया। सच कहूँ तो, ये किसी फिल्म की स्क्रिप्ट जैसी लगती है, लेकिन ये सौ फीसदी हकीकत है!
28 साल की अंजली, जो एक प्राइवेट ड्राइवर की बेटी हैं, ने व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे IIM का पहला साल पूरा किया। सोचिए, 2022 में CAT क्लियर करने के बाद अचानक Leukemia का पता चलना… कितना बड़ा झटका होगा? लेकिन इस लड़की ने अपने भाई आशीष के बोन मैरो डोनेशन और अपनी जिद्द के दम पर बीमारी को हरा दिया। एकदम ज़बरदस्त, है न?
गाड़ी चलाने वाले पापा की बेटी ने कैसे पढ़ाई में मारी बाजी?
असल में देखा जाए तो अंजली की कहानी बताती है कि पैसा नहीं, हौसला मायने रखता है। उनके पिता एक साधारण ड्राइवर हैं – जिन्होंने पूरी ज़िंदगी गाड़ी चलाकर बच्चों को पढ़ाया। और अंजली? उसने बचपन से ही पढ़ाई को गंभीरता से लिया। CAT 2022 क्लियर करना तो जैसे उसकी मेहनत का नतीजा था।
पर ज़िंदगी ने यहाँ एक ट्विस्ट डाला। IIM में दाखिले के कुछ ही दिन बाद Leukemia का पता चला। कल्पना कीजिए – एक तरफ सपनों का इंस्टिट्यूट, दूसरी तरफ जानलेवा बीमारी। लेकिन अंजली ने हार नहीं मानी।
भाई का वो गिफ्ट जिसने बचाई जान
यहाँ सबसे मार्मिक हिस्सा आता है – अंजली के भाई आशीष का। सच पूछो तो भाई-बहन का रिश्ता तो सभी के होते हैं, लेकिन आशीष ने सच में अपनी बहन के लिए जान देने को तैयार हो गया। बोन मैरो डोनेशन करके उसने न सिर्फ अंजली की जान बचाई, बल्कि उसके सपनों को भी जीवित रखा।
दो साल के संघर्ष के बाद अंजली ने 2024 में फिर से पढ़ाई शुरू की। व्हीलचेयर पर रहकर भी IIM की पढ़ाई जारी रखना? ये कोई मामूली बात नहीं है। उसकी इस जिद ने पूरे कैंपस को प्रेरित कर दिया।
“मैं हार मानने वालों में से नहीं!” – अंजली की जुबानी
अंजली खुद कहती हैं, “ये मेरी जीत नहीं, हमारी जीत है। परिवार और दोस्तों के बिना मैं यहाँ तक नहीं पहुँच पाती।” उसके भाई आशीष की आँखें नम हो जाती हैं जब वो कहता है, “मेरी बहन ने मुझे सिखाया कि हिम्मत क्या होती है।”
IIM लखनऊ प्रशासन भी इस मिसाल के आगे नतमस्तक है। उनका कहना है, “अंजली ने साबित कर दिया कि इच्छाशक्ति के आगे कोई बाधा नहीं टिकती। हम उसे हर संभव सहायता दे रहे हैं।”
आगे का रास्ता: दूसरों की मदद करने का सपना
अंजली अब सामाजिक कार्यों में जुटना चाहती हैं। वो कैंसर सर्वाइवर्स के लिए मोटिवेशनल स्पीकर बनना चाहती हैं। सोचिए, जिसने खुद संघर्ष किया, वो दूसरों को हिम्मत देगी तो कितना असरदार होगा!
इस कहानी से प्रभावित होकर IIM लखनऊ ने दिव्यांग Students के लिए नई सुविधाएँ शुरू करने का फैसला किया है। अंजली की ये जीत सिर्फ उसकी नहीं, पूरे समाज के लिए एक संदेश है – चाहे कितनी भी बड़ी मुश्किल क्यों न हो, हार मान लेना कोई विकल्प नहीं है।
अंत में एक बात – अंजली जैसे लोग हमें याद दिलाते हैं कि ज़िंदगी में असली सफलता डिग्री या नौकरी नहीं, बल्कि अपने सपनों के लिए लड़ने का हौसला है। है न?
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com