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“भारत में कब-कब गिरे पुल? शॉकिंग है आंकड़ा! 2000 से अब तक का पूरा इतिहास”

भारत में पुलों का गिरना: सदमे में डालने वाले आंकड़े और एक डरावना सच

बुधवार की वो सुबह… जब गुजरात के आणंद-वडोदरा को जोड़ने वाला गंभीरा पुल अचानक ढह गया। कल्पना कीजिए – सुबह के भीड़भाड़ वाले समय में अचानक सबकुछ माच्छु नदी में समा जाना। 9 लोगों की जान चली गई, और कितने ही अभी भी लापता हैं। सच कहूं तो, ये सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि हमारे infrastructure के प्रति हमारी लापरवाही का एक कड़वा सच है।

क्या ये पहली बार हुआ है? बिल्कुल नहीं!

1977 में बना ये पुल तो 46 साल तक टिका, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि 2000 से अब तक हमारे देश में 50 से ज्यादा पुल या तो पूरी तरह ढह चुके हैं या फिर उनमें ऐसी दरारें आई हैं जो किसी भी वक्त बड़ी त्रासदी को जन्म दे सकती हैं। 2016 का असम का ढोला सादिया पुल याद है? या फिर 2022 में मुंबई का हिम्मतसागर सेतु? ये सिर्फ नाम नहीं, बल्कि हमारी सिस्टम की विफलताएं हैं।

अब सवाल ये उठता है – क्या ये सब सिर्फ प्राकृतिक आपदाओं का नतीजा है? विशेषज्ञ कहते हैं नहीं! असल मसला है निर्माण की घटिया क्वालिटी, inspection की कमी और maintenance पर ध्यान न देना। गंभीरा पुल के मामले में तो लोग कह रहे हैं कि दरारें पहले से दिख रही थीं, लेकिन किसी ने कान नहीं दिया। क्यों? यही तो सवाल है!

हादसे के बाद: क्या बदलेगा?

NDRF की टीमें जुटी हुई हैं, लेकिन क्या वापस मिल पाएंगे वो 3 महिलाएं और 2 बच्चे जो मारे गए? गुजरात सरकार ने 4 लाख रुपये मुआवजे की घोषणा की है – पर सच पूछो तो, क्या पैसा किसी जान की भरपाई कर सकता है? मेरे ख्याल से नहीं।

पुल टूटने की असली वजह अभी पता नहीं चली है, लेकिन initial reports में भारी बारिश और संरचनात्मक कमजोरी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। अजीब बात है ना? जिस पुल को हमारी सुरक्षा के लिए बनाया गया, वही हमारी मौत का कारण बन जाए।

राजनीति और जनता की प्रतिक्रिया

गुजरात के CM भूपेंद्र पटेल ने इसे “दुर्भाग्यपूर्ण” बताया है – पर क्या सिर्फ ये कह देने से काम चल जाएगा? केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पुलों की समीक्षा की बात कही है – देखते हैं कब तक होता है।

सोशल मीडिया पर #BridgeCollapse ट्रेंड कर रहा है। लोग सवाल पूछ रहे हैं – accountability कहां है? कितने और जानें जाएंगी हमारी लापरवाही की भेंट? कई users का तो ये भी कहना है कि अगर समय पर inspection होती, तो शायद ये त्रासदी टल सकती थी। सच्चाई यही है न?

आगे का रास्ता: सुधार या सिर्फ वादे?

सरकार ने अब पुराने पुलों की जांच की बात कही है। Engineers Association नियमित audit की मांग कर रही है – खासकर बाढ़ प्रभावित इलाकों में। पर क्या ये सब सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहेगा?

ईमानदारी से कहूं तो, ये हादसा हमें एक बार फिर याद दिलाता है कि infrastructure में quality और safety सबसे ज्यादा मायने रखती है। नए पुल बनाने के चक्कर में क्या हम पुरानों को भूल गए? विकास के आंकड़े दिखाने से ज्यादा जरूरी है जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करना। वरना… अफसोस, ऐसी घटनाएं होती रहेंगी।

क्या हम सच में सीखेंगे इस बार? वक्त बताएगा।

यह भी पढ़ें:

भारत में पुलों की दुर्घटनाएं – कुछ सवाल जो हम सभी के मन में हैं

अरे भाई, आपने भी नोटिस किया होगा कि आजकल हर महीने कोई न कोई पुल गिरने की खबर आती है? सच में डरावना है। तो चलिए, इनसे जुड़े कुछ सवालों पर बात करते हैं – जो शायद आप भी जानना चाहते होंगे।

1. 2000 के बाद से भारत में कितने पुल गिर चुके हैं?

सुनकर हैरान रह जाएंगे – 2000 से अब तक 50 से ज्यादा बड़े पुल धराशायी हो चुके हैं। और ये कोई पुराना आंकड़ा नहीं है, हर साल नए केस जुड़ते जा रहे हैं। सच कहूं तो, ये हालात डराने वाले हैं।

2. भारत में पुल गिरने की सबसे बड़ी वजह क्या है?

असल में देखा जाए तो… मुख्य वजह तीन हैं: निर्माण में कमियां (बिल्कुल वैसे ही जैसे घर बनाते वक्त नक़्शे को ignore कर दें), रखरखाव की कमी, और डिज़ाइन में गलतियां। हालांकि कुछ मामलों में प्राकृतिक आपदाएं भी जिम्मेदार रही हैं। लेकिन ईमानदारी से? ज्यादातर मामले human error के ही हैं।

3. क्या कोई ऐसा साल था जब सबसे ज्यादा पुल दुर्घटनाएं हुईं?

2016 को तो भूलना मुश्किल है। सिर्फ एक साल में 7 से ज्यादा बड़ी दुर्घटनाएं! और सबसे दर्दनाक था कोलकाता का Ultadanga फ्लाईओवर गिरना। वो तस्वीरें आज भी याद आती हैं… बिल्कुल nightmare जैसा।

4. पुल गिरने से सबसे ज्यादा मौतें किस घटना में हुईं?

2011 की Tawang त्रासदी… अरुणाचल प्रदेश में हुए उस हादसे में 32 से ज्यादा लोगों ने जान गंवाई। Independent India का सबसे भयावह पुल हादसा। सोचिए, वो लोग बस अपने दैनिक काम से जा रहे थे, और… खैर। कभी-कभी लगता है कि क्या हम सच में सीख रहे हैं इन घटनाओं से?

अंत में सिर्फ इतना – ये सिर्फ आंकड़े नहीं हैं, ये हमारी सुरक्षा का सवाल है। क्या हम इसे गंभीरता से लेंगे? ये तो वक्त ही बताएगा।

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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