भारत रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार कैसे बना? और क्या यह फैसला सही था?
अरे भाई, क्या आपने भी नोटिस किया कि पिछले कुछ महीनों में भारत ने रूसी तेल खरीदने में कैसी जबरदस्त छलांग लगाई है? सच कहूं तो यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। हम दुनिया के सबसे बड़े खरीदार बन गए हैं – ये सुनकर थोड़ा अजीब लगता है ना? खासकर तब जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति Donald Trump ने इस मुद्दे को व्यापार वार्ता में उठाकर हंगामा खड़ा कर दिया। असल में, यह फैसला सिर्फ छूट की वजह से नहीं लिया गया। पूरी कहानी समझनी होगी…
पूरा माजरा क्या है?
यूक्रेन वाली पूरी लड़ाई के बाद जब पश्चिमी देशों ने रूस पर economic sanctions लगाए, तो क्या हुआ? रूसी तेल की कीमतें ऐसी गिरीं जैसे Diwali के बाद पटाखों की दुकान। और हम भारतीय? हमने तो मौके का फायदा उठाया ना! सस्ते दाम पर तेल खरीदा, अपना पेट भरा, और पेट्रोल-डीजल की कीमतों को भी काबू में रखा। स्मार्ट मूव था ये, है ना? हालांकि अमेरिका-यूरोप वाले थोड़े नाराज़ जरूर हुए, लेकिन हमारी सरकार ने साफ कह दिया – “पहले देश, फिर बाकी सब”।
अभी तक क्या हुआ?
पिछले छह महीने की बात करें तो… वाह! रूस से तेल आयात के मामले में हमने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। पर Donald Trump ने इसे लेकर जो बयानबाजी की, उससे तनाव तो बढ़ा ही। सच पूछो तो ये पूरा मामला राजनीति और अर्थव्यवस्था के बीच झूल रहा है। हमारी सरकार का कहना साफ है – ये फैसला देश के हित में लिया गया है, किसी को खुश करने के लिए नहीं।
किसने क्या कहा?
इस पूरे मामले पर तो हर कोई अपनी-अपनी राय दे रहा है। अमेरिका वाले कह रहे हैं “भारत को रूस से दूरी बनानी चाहिए”। हमारे विदेश मंत्रालय का जवाब? बिल्कुल स्पष्ट – “हमें अपनी जरूरतें पूरी करनी हैं”। आर्थिक एक्सपर्ट्स तो इस फैसले की तारीफ करते नहीं थक रहे। उनका कहना है कि इससे न सिर्फ तेल की कीमतें कंट्रोल में रहीं, बल्कि महंगाई पर भी लगाम लगाने में मदद मिली। सच कहूं तो जब तक आम आदमी को फायदा हो रहा है, बात समझ में आती है।
आगे की चुनौतियां
अब सवाल यह है कि आगे क्या होगा? अमेरिका और European Union तो लगातार दबाव बनाते रहेंगे। ये तनाव बढ़ा सकता है। लेकिन सच तो ये है कि हमें लंबे समय के लिए सोचना होगा। क्या सिर्फ एक ही देश पर निर्भर रहना ठीक है? शायद नहीं। हमें अपने ऊर्जा स्रोतों को diversify करना होगा – वरना भविष्य में फंस सकते हैं।
तो क्या सीख मिलती है?
देखिए, इस पूरे मामले से एक बात तो साफ है – भारत ने अपने हित में एक साहसिक फैसला लिया। फायदा हुआ? बिल्कुल। पर अब चुनौती ये है कि इस जटिल राजनीतिक खेल में संतुलन कैसे बनाए रखें। एक तरफ आर्थिक फायदा, दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय दबाव। असली टेस्ट तो अब शुरू होगा जब हमें ये दिखाना होगा कि हम वैश्विक राजनीति में भी स्मार्ट तरीके से खेलना जानते हैं। क्या हम ये कर पाएंगे? वक्त बताएगा। पर एक बात तो तय है – इस बार हमने अपनी जरूरतों को प्राथमिकता दी, और ये सही भी था।
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अब देखिए, यह मामला सिर्फ तेल खरीदने का नहीं है। भारत ने जो किया, उसमें एक तरह की स्ट्रीट-स्मार्ट diplomacy दिखती है। सोचिए, जब पूरी दुनिया रूस पर दबाव बना रही थी, हमने वहां से सस्ता तेल लेकर अपने फायदे की बाजीगरी की। और सच कहूं तो, यह कोई छोटी बात नहीं है!
अब सवाल यह है कि इससे हमें क्या मिला? पहला तो यह कि पेट्रोल-डीजल के दामों में थोड़ी राहत मिली – जो आम आदमी के लिए बड़ी बात है। दूसरा, हमने अमेरिका जैसे देशों को यह संदेश दे दिया कि भारत अपने हितों को सबसे ऊपर रखेगा। एकदम साफगोई से।
लेकिन असल मजा तो इस बात में है कि यह पूरा मामला हमारी बढ़ती global image को दिखाता है। पहले हम सिर्फ policy बनाते थे, अब उसे अंजाम तक पहुंचाने की ताकत भी रखते हैं। और हां, यह सब कुछ overnight नहीं हुआ – इसमें सालों की मेहनत और सोच-समझकर उठाए गए कदमों का असर है।
अंत में एक बात और – यह सिर्फ तेल की बात नहीं है। यह हमारे foreign policy के नए confidence को दिखाता है। जैसे कोई छोटा बच्चा पहली बार साइकिल पर बैलेंस बनाना सीख रहा हो… वैसा ही कुछ feeling है!
भारत और रूसी तेल की कहानी: छूट से लेकर आर्थिक राहत तक – FAQs
भारत रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार कैसे बना?
देखिए, पूरी बात समझनी हो तो यूक्रेन war के बाद का सीन याद कीजिए। रूस पर sanctions लगे, तेल बिकना मुश्किल हो गया। और हमारे भारत ने? साम-दाम-दंड-भेद सब भूलकर सिर्फ एक चीज देखी – भारी भरकम discounts! सच कहूं तो हमने उस वक्त जो किया, वो तो कोई भी समझदार देश करता। सस्ता crude oil मिल रहा है तो लिया ना? और यूं हम बन गए रूसी तेल के सबसे बड़े ग्राहक। असल में ये तो विन-विन सिचुएशन था – रूस को खरीदार मिला, हमें सस्ता तेल।
रूस ने भारत को तेल में कितनी छूट दी?
अरे भई, ये तो बड़ा मजेदार हिस्सा है! रिपोर्ट्स कह रही हैं कि हमें global rates से बैरल पर 30-35 डॉलर तक की छूट मिली। सोचिए, ये कोई छोटी-मोटी बात थोड़े न है! जैसे आजकल ऑनलाइन शॉपिंग में कोड डालकर 70% डिस्काउंट पाते हैं न, वैसा ही कुछ। इसका सीधा फायदा? हमारी oil import बिल कम हुई, और महंगाई पर थोड़ा काबू पाने में मदद मिली। बिल्कुल चाय के साथ समोसे जैसा कॉम्बो!
क्या भारत का रूसी तेल खरीदना पश्चिमी देशों को पसंद आया?
हाहा! ये सवाल तो बहुत ज़हीन है। सच बताऊं? USA और Europe वालों को ये बिल्कुल नहीं भाया। Objections पर objections… लेकिन हमारी सरकार ने बड़ी साफगोई से कह दिया – “दोस्तों, national interest सबसे ऊपर!” और सच मानिए, यही तो होना चाहिए था। जब आपके घर का बजट टाइट हो, और कोई सस्ते में चावल बेच रहा हो, तो आप क्या करेंगे? बिल्कुल, खरीदेंगे ना!
रूसी तेल खरीदने से भारत को क्या आर्थिक फायदे हुए?
लिस्ट तो लंबी है, लेकिन मुख्य बातें समझ लीजिए:
1) पेट्रोल-डीजल के दाम कुछ हद तक कंट्रोल में रहे – वरना तो हालात और खराब हो सकते थे
2) ट्रेड डेफिसिट में थोड़ी राहत मिली – जैसे महीने के आखिर में बोनस मिल जाए
3) रिफाइनरियों को सस्ता कच्चा तेल मिला – और उन्होंने एक्सपोर्ट्स बढ़ाकर दिखा दिया
4) फॉरेक्स रिजर्व्स पर प्रेशर कम हुआ – बिल्कुल वैसे जैसे EMI कम होने पर बैंक बैलेंस में राहत मिलती है
कुल मिलाकर? एकदम मास्टरस्ट्रोक! ऐसा मूव जिस पर हर कोई गर्व कर सकता है।
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com